पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले आखिरी दुर्गापूजा मनाई जा रही है। इस बार दुर्गापूजा की तैयारियां चुनावी हिसाब से हुई थीं पर बारिश की छाया भी रही। ममता बनर्जी की सरकार ने इस बार हर पंजीकृत दुर्गापूजा समिति को पंडाल बनाने के लिए पहले से ज्यादा पैसे दिए थे। यह सिर्फ बंगाल की बात नहीं है। खबर है कि बिहार में भी सरकार की ओर से दुर्गापूजा के दौरान शहरों की सफाई और सजावट के लिए अतिरिक्त पैसे भेजे गए हैं। वहां अगले महीने चुनाव होने वाले हैं। बहरहाल, अगर पश्चिम बंगाल में इस बार दुर्गापूजा पंडालों की थीम देखें तो उनसे अगले साल के विधानसभा चुनाव का कुछ कुछ अंदाजा हो जाता है।
दुर्गापूजा के वैसे तो हजारों पंडाल बने हैं लेकिन जो महत्वपूर्ण जगहों पर बने हैं या जिनका पुराना इतिहास रहा है उनमें से बहुत से पंडालों की थीम बांग्ला अस्मिता से जुड़ी है। बांग्ला भाषा और अस्मिता पर गर्व के भाव को दिखाया गया है तो साथ ही बंगाल से बाहर प्रवासी बंगालियों के उत्पीड़न को भी दुर्गापूजा पंडालों की थीम बनाया गया है। साथ ही बंगाल के विभाजन से पहले के इतिहास और विभाजन की त्रासदी को भी पंडालों में दिखाया गया है।
पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा के पंडालों की थीम मोटे तौर पर वहां के इतिहास और संस्कृति की झलक लिए हुए है। याद करें पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले की दुर्गापूजा में यानी 2023 की दुर्गापूजा में एक पंडाल में महात्मा गांधी को महिषासुर की तरह दिखाया गया था। उसके बाद क्या नतीजे आए यह सबने देखा। बहरहाल, इस साल के पूजा पंडालों की थीम भारतीय जनता पार्टी की नींद उड़ाने वाली है। कई पंडाल प्रवासी मजदूरों का उत्पीड़न दिखाने वाले हैं। गौरतलब है कि बांग्ला प्रवासी मजदूरों के साथ उत्पीड़न की खबरें भाजपा शासित राज्यों से ही आई हैं। दिल्ली और हरियाणा में सबसे ज्यादा उत्पीड़न की खबर आई। हरियाणा के गुरुग्राम में और राजधानी दिल्ली में बांग्ला बोलने वालों को पकड़ा गया और उनको बांग्लादेशी बता कर निकालने का प्रयास हुआ या निकाला गया। दिल्ली पुलिस ने तो बंग भवन को ही चिट्ठी लिख कर कहा कि उसने कुछ लोग पकड़े हैं, जो बांग्लादेशी भाषा बोल रहे हैं। बांग्ला को बांग्लादेशी भाषा बताने पर ममता बनर्जी की पार्टी ने कड़ा ऐतराज जताया था।
अब यह मुद्दा पश्चिम बंगाल की लोकप्रिय धारणा को प्रदर्शित कर रहा है। इस बार भाजपा का नैरेटिव नहीं चल पाया है। आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना जैसी किसी घटना की थीम पर पंडाल नहीं हैं। सांप्रदायिक विभाजन बढ़ाने वाली किसी घटना की थीम पर भी पंडाल होने की खबर नहीं है। हो सकता है कि ऐसे पंडाल भी कहीं बने हों लेकिन वे मुख्यधारा की चर्चा में नहीं हैं। इसकी जगह बांग्ला अस्मिता, बांग्ला भाषा, प्रवासी बंगालियों के उत्पीड़न की थीम पर पंडाल बने हैं। यह एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर भाजपा नेतृत्व कमजोर पड़ जाता है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मुकाबले ममता बनर्जी अपना चेहरा पेश करती हैं और बाहरी बनाम बंगाली का मुद्दा बना देती हैं। भाजपा के सामने संकट यह है कि इतने बरसों के बाद भी वह पश्चिम बंगाल में कोई नेता खड़ा नहीं कर पाई है। अब भी उसका काम ममता बनर्जी की पार्टी से आए सुवेंदु अधिकारी के सहारे चल रहा है। तभी अगर बांग्ला अस्मिता और भाषा का मुद्दा बनता है तो फिर ममता बनर्जी के लिए लड़ाई आसान हो जाएगी।