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उप राष्ट्रपति से राजनीति साधने का प्रयास

उप राष्ट्रपति का चुनाव बहुत जल्दी होगा। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद से चुनाव की टाइमिंग को लेकर कयास लगाए जा रहे थे। याद दिलाया जा रहा था कि संविधान में चुनाव कराने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इस आधार पर ऐसा दावा किया जा रहा था कि चुनाव टला रह सकता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि चुनाव टलेगा नहीं, बल्कि बहुत जल्दी होगा। चुनाव आयोग ने इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। प्रक्रिया शुरू करने का पहला चरण इलेक्टोरल कॉलेज का गठन करना है। वह ऑलरेडी है। उप राष्ट्रपति के चुनाव में दोनों सदनों के चुने हुए और मनोनीत सांसद मतदान करते हैं और उनके साधारण बहुमत से उप राष्ट्रपति चुना जाता है। आयोग ने अपनी प्रक्रिया शुरू कर दी है तो दूसरी ओर कहा जा रहा है कि सत्तापक्ष यानी भाजपा के यहां भी सब कुछ बहुत स्पष्ट है। भाजपा को इस मौके का इस्तेमाल करना है और अपनी राजनीति साधनी है।

बिल्कुल शुरुआत में राष्ट्रपति पद के लिए जो प्रमुख नाम चर्चा में आए हैं, उनसे ऐसा लग रहा है कि भाजपा पिछड़ा या दलित राजनीति साधने का दांव चलेगी। ध्यान रहे आदिवासी राष्ट्रपति बनाने का भाजपा का दांव बहुत कारगर रहा है। देश के आदिवासी बहुल तीन राज्यों में से दो में भाजपा की सरकार बन गई है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के गृह प्रदेश ओडिशा में तो पहली बार भाजपा का मुख्यमंत्री बना है। छत्तीसगढ़ में भी भाजपा की सरकार बन गई है। दोनों राज्यों में भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया है। उसी तरह अब कहा जा रहा है कि उप राष्ट्रपति से पिछड़ा या दलित को मैसेज किया जा सकता है। तभी जो नाम चर्चा में आए हैं उनमें से दो नाम बहुत अहम हैं। पहला है कि दलित समाज के नेता और कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत का और दूसरा है अति पिछड़ा समाज के बिहार के सांसद और केंद्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर का। तीन दिन पहले रामनाथ ठाकुर के साथ भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की बैठक भी हुई है, जिसमें भाजपा और जदयू के और भी नेता शामिल हुए। ध्यान रहे रामनाथ ठाकुर के पिता कर्पूरी ठाकुर को पिछले ही साल केंद्र सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया। उसका लाभ भी भाजपा और जदयू को पिछले साल के लोकसभा चुनाव में मिला। किसी दलित नेता को उप राष्ट्रपति बनाने की चर्चा इसलिए तेज हुई है क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सहारे दलित राजनीति साधने के कांग्रेस के प्रयास को कमजोर किया जा सके।

जाति के अलावा उप राष्ट्रपति के जरिए उत्तर और दक्षिण के विवाद को भी साधने का प्रयास हो सकता है। इसी राजनीति के तहत पिछले कुछ दिनों से विदेश मंत्री एस जयशंकर के नाम की चर्चा हो रही है। ध्यान रहे जयशंकर तमिलनाडु के हैं, जहां अगले साल अप्रैल में चुनाव होना है। अगर उनको या दक्षिण भारत के किसी अन्य व्यक्ति को उम्मीदवार बनाया जाता है तो दक्षिण भारत की पार्टियों के लिए उसका विरोध करना मुश्किल होगा। अगर तमिलनाडु का उम्मीदवार होगा तो एमके स्टालिन के लिए बड़ी मुश्किल होगी। बहरहाल, थावरचंद गहलोत और रामनाथ ठाकुर के अलावा ओम माथुर के नाम की भी चर्चा है और जयशंकर का नाम तो है। आने वाले दिनों में कुछ और नाम सामने आएंगे।

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