उप राष्ट्रपति पद का विपक्षी उम्मीदवार अभी नहीं तय होगा। सत्तापक्ष की ओर से उम्मीदवार का नाम तय होने के बाद ही विपक्ष अपना उम्मीदवार तय करेगा। जानकार सूत्रों का कहना है कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की पार्टियों के बीच इस पर सहमति बन गई है। अभी सभी पार्टियां मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के मुद्दे से ध्यान नहीं भटकने देना चाहती हैं। विपक्षी पार्टियों का कहना है कि एक बार उप राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो गई तो फिर एसआईआर का मुद्दा हाशिए में चला जाएगा। उनको लग रहा है कि सत्तापक्ष ऐसा चाह रहा है। ध्यान रहे पिछले दिनों एनडीए के सभी घटक दलों की बैठक हुई थी, जिसमें उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर चर्चा हुई और अंत में सभी घटक दलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को उम्मीदवार का नाम तय करने के लिए अधिकृत कर दिया। हालांकि उधर भी उम्मीदवार का नाम स्वतंत्रता दिवस के बाद ही तय होगा।
बहरहाल, पिछले दिनों विपक्षी पार्टियों की एक बैठक राहुल गांधी के नए सरकारी आवास पर हुई। इसमें राहुल गांधी ने कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट पर एक लाख से ज्यादा वोट की चोरी के अपने आरोपों का प्रजेंटेशन दिया। यह प्रजेंटेशन वे उसी दिन दोपहर में मीडिया के सामने दे चुके थे। इसे लेकर विपक्षी पार्टियों में नाराजगी भी है। इसके अलावा इसका भी विवाद हुआ कि उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे को सबसे पीछे की कतार में बैठाया गया। कहा जा रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्र और उनके बेटे रेहान वाड्रा ने बैठक की सारी तैयारी की थी। बहरहाल, इस बैठक में मुख्य रूप से राहुल के आरोपों और एसआईआर के मसले पर चर्चा हुई। लेकिन इसके अलावा संसद सत्र के बचे हुए हिस्से की रणनीति और उप राष्ट्रपति चुनाव को लेकर भी बातचीत हुई। बताया जा रहा है कि उसी कार्यक्रम में यह तय किया गया कि सत्तापक्ष के उम्मीदवार को देखने के बाद ही विपक्ष अपना उम्मीदवार तय करेगा।
जानकार सूत्रों का कहना है कि बैठक में कुछ सहयोगी दल संभावित उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा करने की बात कर रहे थे लेकिन नाम की बजाय उम्मीदवार की क्वालिटी पर बातचीत हुई। विपक्षी पार्टियों ने तय किया कि उनका उम्मीदवार ऐसा होगा, जिसकी वैचारिक प्रतिबद्धता असंदिग्ध हो और संविधान व लोकतंत्र बचाने की लड़ाई में जिसकी भागीदारी रही हो। एक खास पृष्ठभूमि वाला उम्मीदवार चुनने पर सहमति बनी। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि विपक्षी पार्टियां राजनीतिक पृष्ठभूमि वाला उम्मीदवार ही चुनने पर जोर नहीं देंगी। हो सकता है कि उम्मीदवार अकादमिक जगत का हो सामाजिक सेवा से जुड़ा रहा हो। गोपाल कृष्ण गांधी या हामिद अंसारी जैसे उम्मीदवार की भी संभावना है। विपक्षी पार्टियां दलित उम्मीदवार की संभावना पर भी विचार कर रही हैं। इसका एक कारण तो यह है कि पिछले कुछ दिनों से भारतीय राजनीति में दलित उभार सबसे बड़ी परिघटना के तौर पर दिख रहा है। मायावती और उनकी पार्टी के कमजोर होने के बाद से कांग्रेस, सपा, राजद जैसी तमाम पार्टियां दलित वोट पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। इसके अलावा एक कारण यह भी है कि पिछले तीन दशक में उप राष्ट्रपति के चुनाव में किसी भी विपक्षी गठबंधन को सबसे ज्यादा वोट तब मिला था, जब 2002 में भाजपा के भैरोसिंह शेखावत के मुकाबले कांग्रेस ने दलित नेता सुशील शिंदे को उम्मीदवार बनाया था। उनको 40 फीसदी के करीब वोट मिले थे। बहरहाल, सत्तापक्ष भी दलित या पिछड़े नेता को उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रहा है। दोनों तरफ से क्षेत्रीय संतुलन साधने पर भी खास ध्यान दिया जाएगा।
