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वायनाड का उत्साह कहां चला गया?

केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर महज 64.72 फीसदी मतदान हुआ है। सोचें, छह महीने पहले जब लोकसभा चुनाव हुआ था तब इस सीट पर 72.54 फीसदी लोगों ने वोट डाला था। यानी छह महीने में आठ फीसदी की गिरावट आ गई। आमतौर पर उपचुनाव में मतदान प्रतिशत कम होता है। अगर किसी सरकार या पार्टी की सेहत पर नतीजों से असर नहीं होना हो तो मतदाताओं में उदासीनता रहती है। लेकिन अगर कोई हाई प्रोफाइल उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा हो तो आमतौर पर मतदान बढ़ जाता है। वायनाड में उलटा हुआ है। कांग्रेस पार्टी ने सीट को लेकर बहुत हाइप बनाई। राहुल गांधी जून 2019 में लगातार दूसरी बार चुनाव जीते और बाद में इस्तीफा दिया क्योंकि वे रायबरेली से भी जीते थे और परिवार की पारंपरिक सीट से सांसद रहने का विकल्प चुना। फिर तमाम किस्म के इमोशनल ड्रामे हुए, जिसके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा को वायनाड से उम्मीदवार बनाया गया। फिर भी वहां के मतदाताओं में जोश नहीं लौटा।

सोचें, 2019 में जब राहुल गांधी पहली बार वायनाड लड़ने गए थे तब क्या जोश था? राहुल गांधी अमेठी के साथ साथ वायनाड से चुनाव लड़ रहे थे और लोगों में इतना उत्साह और उम्मीदें थीं कि इस सीट पर 80.33 फीसदी मतदान हुआ था। इससे पहले 2014 के चुनाव में वायनाड में 73 फीसदी वोटिंग हुई थी। यानी सात फीसदी मतदान बढ़ गया। लेकिन जब राहुल दूसरी बार 2019 में लड़ने उतरे तो मतदान 80 से आठ फीसदी कम होकर 72 फीसदी रह गया और उसके बाद प्रियंका लड़ने उतरीं तो उससे भी आठ फीसदी कम होकर 64 फीसदी रह गया, जबकि राहुल गांधी ने चार दिन सभाएं कीं। वे मतदान के दिन भी वही थे। सोनिया गांधी नामांकन कराने गई थीं। सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ कि केरल की हाई वोटिंग परसेंटेज वाली वायनाड सीट पर 2024 में 2004 के मुकाबले भी कम मतदान हुआ? इसका उत्तर चुनाव के दौरान वोट डालने जा रहे या वोट डाल कर निकल रहे लोगों की बातों से कुछ हद तक मिला। लोगों ने कहा कि हाई प्रोफाइल सांसद चुनने का कोई फायदा नहीं हुआ। सासंद से किसी की मुलाकात नहीं होती थी और कोई काम भी नहीं होता था। ध्यान रहे केरल में सांसद, विधायक आमतौर पर लोगों के बीच ही रहते हैं। लेकिन राहुल से वह परंपरा टूटी। तभी लोगों को प्रियंका से भी कोई खास उम्मीद नहीं है। वे बड़े अंतर से जीतेंगी लेकिन लोगों में उनको चुनने का कोई उत्साह नहीं था।

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