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ममता की है दबाव की राजनीति

पश्चिम बंगाल की मुख्मयंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी क्या दबाव की राजनीति कर रही है या सचमुच उनका इरादा पश्चिम बंगाल में अकेले लड़ने का है? उन्होंने बुधवार को मीडिया के सामने आकर कहा कि वे राज्य की सभी 42 सीटों पर अकेले लड़ेंगी। उससे पहले उनकी ओर से कहा जा रहा था कि वे कांग्रेस को दो सीटें दे सकती हैं। उन्होंने कांग्रेस को उसकी जीती हुई बहरामपुर और माल्दा दक्षिण की सीट देने का प्रस्ताव दिया था, जिसे प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को ममता बनर्जी की दया की जरुरत नहीं है। कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि अधीर रंजन चौधरी ने पार्टी आलाकमान को बताया कि पांच-छह सीटें तो वे अपने दम पर कांग्रेस को मजबूती से लड़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि पिछली बार जब भाजपा और तृणमूल के बीच आमने सामने की लड़ाई थी तब लेफ्ट का सफाया हो गया लेकिन कांग्रेस दो सीट जीतने में कामयाब रही। इस बार वे कांग्रेस की स्थिति बेहतर मान रहे हैं।

यही कारण है कि कांग्रेस घुटने नहीं टेक रही है। वह ममता बनर्जी की ओर से दिए जा रहे दो सीटों के प्रस्ताव को नहीं मानेगी। तभी कहा जा रहा है कि ममता ने दबाव की राजनीति के तहत आखिरी दांव चला है कि वे सभी सीटों पर लड़ेंगी। असल में उनके बयान से एक दिन पहले मंगलवार को सीपीएम ने कहा था कि अगर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में तृणमूल कांग्रेस के नेता शामिल होंगे तो सीपीएम उसमें हिस्सा नहीं लेगी। इसके बाद ही ममता ने नाराजगी जताई और यहां तक कह दिया कि कांग्रेस की ओर से उनको राहुल की यात्रा की सूचना नहीं दी गई है। हकीकत यह है कि मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी दोनों ने ममता बनर्जी को आधिकारिक रूप से सूचना दी थी। लेकिन ममता को दबाव बनाना था तो उन्होंने कह दिया। जानकार सूत्रों का कहना है कि यह तय हो गया है कि लेफ्ट मोर्चा बंगाल में गठबंधन में नहीं रहेगा लेकिन कांग्रेस के साथ चार या पांच सीटों पर समझौता हो सकता है। असल में ममता बनर्जी को भी लग रहा है कि मुस्लिम मतदाताओं का रूझान इस बार कांग्रेस की ओर है। इसलिए वे वोट का बंटवारा नहीं चाहती हैं। सो, संभव है कि दोनों पार्टियां अपने अपने स्टैंड से पीछे हटें और समझौता कर लें।

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