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राज्यसभा, राज्यपालों के बाद आगे क्या?

जाति

केंद्र सरकार लंबित काम निपटाने में लगी है। संसद के मानसून सत्र से पहले कई पेंडिंग काम निपटाए जा रहे हैं। राज्यसभा में मनोनीत श्रेणी की चार सीटें खाली थीं, जिन पर चार लोगों का मनोनयन हो गया है। आगे होने वाले विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिहाज से मनोनयन किया गया है। इसके तुरंत बाद दो राज्यों, हरियाणा और गोवा में नए राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में नए उप राज्यपाल की नियुक्ति हुई। अगले कुछ दिन में कुछ और राज्यपालों और उप राज्यपालों की स्थिति में परिवर्तन होना है। दिल्ली, पश्चिम बंगाल और जम्मू कश्मीर की चर्चा है। उसके बाद क्या? क्या उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल करेंगे?

मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा कई महीनों से चल रही है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने मंत्रिमंडल में बड़ा बदलाव करेंगे। लेकिन यह कब होगा इसका किसी को अंदाजा नहीं है। कहा जा रहा है कि इस साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव और अगले साल के पांच राज्यों के चुनाव के लिहाज से फेरबदल होनी है। मुश्किल यह है कि संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होने वाला है, जो 21 अगस्त तक चलेगा। उससे पहले सरकार को कई काम करने होते हैं। विधायी कामकाज की तैयारियां होती हैं तो सर्वदलीय बैठक भी होती है। इसलिए सत्र शुरू होने से पहले मंत्रिमंडल में बड़ी फेरबदल के लिए बहुत कम समय बचा है। अगर सरकार में फेरबदल 21 जुलाई से पहले नहीं होती है तो मंत्री बनने की आस लगाए नेताओं को अगस्त के अंत तक इंतजार करना पड़ेगा।

जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा को सबसे ज्यादा चिंता बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर है। असल में नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में बिहार कोटे का असंतुलन दिखता है। बिहार से किसी राजपूत सांसदों को केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया है, जबकि दो भूमिहार कैबिनेट मंत्री हैं। भाजपा की दूसरी चिंता कुशवाहा वोट को लेकर है। पिछले लोकसभा चुनाव में कुशवाहा वोट राजद और सीपीआई माले के साथ भी गया था। एनडीए के बड़े कुशवाहा नेता उपेंद्र कुशवाहा चुनाव हार गए थे। बाद में उनको राज्यसभा में भेजा गया। तभी कहा जा रहा है कि कुशवाहा एक बार फिर केंद्रीय मंत्री बनाए जा सकते हैं। अगर मध्य और दक्षिण बिहार के कुशवाहा वोट को साधने के लिए उनको मंत्री बनाया जाता है तो यह अनिवार्य होगा कि किसी राजपूत को भी मंत्री बनाया जाए। राजपूत नेताओं में राजीव प्रताप रूड़ी, जनार्दन सिंह सिगरीवाल और राधामोहन सिंह के नाम की चर्चा है।

बिहार के अलावा भाजपा का फोकस पश्चिम बंगाल पर है। पश्चिम बंगाल से दो लोग मोदी मंत्रिमंडल में सदस्य हैं। सुकांत मजूमदार औरर शांतनु ठाकुर। लेकिन दोनों राज्यमंत्री हैं। बंगाल से एक भी कैबिनेट मंत्री नहीं है। राज्य में भाजपा के 12 सांसद हैं। तभी संभव है कि वहां से किसी और को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए या सुकांत मजूमदार को प्रमोशन मिले। तमिलनाडु और केरल में भी अगले साल चुनाव है। मुश्किल यह है कि तमिलनाडु से राज्यसभा या लोकसभा में एक भी सांसद एनडीए का नहीं है। अभी तुरंत किसी को राज्यसभा भेजना भी मुमकिन नहीं है। उधर केरल में एकमात्र लोकसभा सांसद सुरेश गोपी पहले से मंत्री हैं। भाजपा ने राज्य के अपने पुराने नेता सी सदानंदन मास्टर को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। उनके अलावा तिरूवनंतपुरम से कांग्रेस के सांसद शशि थरूर भी भाजपा में जाने के लिए हाथ पैर मारते दिख रहे हैं। उनके साथ भी मुश्किल है कि उनको इस्तीफा देना पड़ेगा।

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