भारत में दूरसंचार क्षेत्र में दो कंपनियों का एकाधिकार है। जियो और एयरटेल के पास ही ज्यादातर ग्राहक हैं। भारत के संचार बाजार के 74 फीसदी हिस्से पर इनका कब्जा है। बहुत बड़े अंतर के साथ तीसरे स्थान पर वोडाफोन आइडिया है और उसके बाद बीएसएनएल का नंबर आता है। अब तीसरे नंबर की कंपनी वोडाफोन आइडिया की हालत बहुत खराब है।
कंपनी ने सरकार से मदद मांगी है और कहा है कि अगर मदद नहीं मिली तो कंपनी अगले साल बंद हो जाएगी। उसने दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने की बात कही है। ध्यान रहे कुछ समय पहले ही भारत सरकार ने कंपनी पर बकाए को इक्विटी में कन्वर्ट किया था, जिससे कंपनी में भारत सरकार की हिस्सेदारी बढ़ कर 49 फीसदी हो गई। सो, कह सकते हैं कि यह भारत सरकार की ही कंपनी है।
वोडाफोन आइडिया संकट का असर
लेकिन इससे कंपनी का संकट खत्म नहीं हुआ है। उसके ऊपर एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू यानी एजीआर का बकाया, बकाए पर ब्याज व जुर्माना और जुर्माने पर ब्याज की रकम बढ़ कर 45 हजार करोड़ रुपए हो गई है। इसके अलावा स्पेक्ट्रम का शुल्क एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का है। अगर यह कंपनी दिवालिया होती है तो सरकार का सब कुछ डूब जाएगा। न स्पेक्ट्रम की फीस मिलेगी और न एजीआर का बकाया मिलेगा। तभी सवाल है कि कंपनी का क्या होगा?
अगर सरकार को कंपनी चलानी होती तो वह बीएसएनएल और एमटीएनएल को ही बेहतर ढंग से चलाती। लेकिन जब ये दो कंपनियां नहीं चलीं तो वोडाफोन आइडिया कैसे चलेगी। सो, इसका अंत नतीजा यह दिख रहा है कि ये कंपनी मुकेश अंबानी की जियो या सुनील मित्तल के एयरटेल को मिले। अगर ऐसा होता है तो संचार क्षेत्र में दो कंपनियों का एकाधिकार और मजबूत होगा। सरकार और बैंकों का पैसा डूबना लगभग तय दिख रहा है।
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