कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा ने पार्टी नेतृत्व से नाराजगी जाहिर कर दी है। उन्होंने कांग्रेस के विदेश प्रकोष्ठ के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। वे कांग्रेस में बने रहेंगे लेकिन विदेश प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी नहीं संभालेंगे। असल में विदेश प्रकोष्ठ संभालने का कोई मतलब नहीं रह गया था। उनकी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व किसी भी मसले पर उनसे सलाह मशविरा नहीं करता था। कई बड़े अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम इस समय चल रहे हैं लेकिन पार्टी ने इस पर अपना स्टैंड तय करने के लिए आनंद शर्मा से राय नहीं ली। इस बात का हवाला देते हुए उन्होंने विदेश प्रकोष्ठ के प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया है।
अब सवाल है कि क्या कांग्रेस का नेतृत्व उनकी इस नाराजगी का नोटिस लेगा? ध्यान रहे आनंद शर्मा से अभी कांग्रेस नेतृत्व की बहुत दूरी नहीं बढ़ी थी। तभी ऑपरेशन सिंदूर के बाद जब सरकार विदेश भेजने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल तैयार कर रही थी तो कांग्रेस की ओर से आनंद शर्मा के नाम का प्रस्ताव किया गया था। कांग्रेस ने चार नाम भेजे थे, जिनमें एक नाम आनंद शर्मा का था। उनका नाम गौरव गोगोई और सैयद नासिर हुसैन जैसे पार्टी नेतृत्व के करीबी नेताओं के साथ शामिल किया गया था। तभी ऐसा लग रहा था कि उनके लिए चीजें ठीक हो सकती हैं। लेकिन उनके इस्तीफे के बाद इस पर सवाल हैं। अगले साल अप्रैल में राज्यसभा के दोवार्षिक चुनाव हैं। अगर आनंद शर्मा को इस बार मौका नहीं मिलता है तो उनकी संभावना स्थायी रूप से समाप्त हो सकती है। वैसे भी उनकी उम्र 72 साल हो चुकी है।