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क्या राहुल आदिवासी नेताओं को महत्व देंगे?

rahul gandhi

पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी पार्टी के आदिवासी नेताओं से मिलें। ध्यान रहे राहुल गांधी से जब भी कोई मिलता है तो वह एक अलग अनुभव लेकर जाता है क्योंकि कोई न कोई ऐसी बात जरूर करते हैं, जिसकी उम्मीद सामने वाले नहीं की होती है। आदिवासी नेताओं का भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा। जानकार सूत्रों के मुताबिक मुलाकात के दौरान राहुल गांधी ने आदिवासी नेताओं से पूछा कि उनकी सबसे बड़ी समस्या क्या है? यह सवाल आदिवासी जीवन की समस्याओं के बारे में नहीं था, बल्कि पार्टी के अंदर उनकी समस्याओं के बारे में थे। आदिवासी नेता कुछ जवाब दें उससे पहले खुद राहुल ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि पार्टी के अंदर उनको महत्व नहीं मिलता है। वहां मौजूद सारे नेता हैरान थे। हालांकि सबने सिर हिला कर इस पर सहमति दी।

अब सवाल है कि क्या राहुल गांधी कांग्रेस के अंदर आदिवासी नेताओं को महत्व देंगे या एक सचाई बयान करनी थी, जो उन्होंने बयान कर दी और आगे सब कुछ पहले जैसा चलता रहेगा? हिंदी के महान कथाकार निर्मल वर्मा ने अपनी कहानी ‘कौवे और काला पानी’ में एक जगह लिखा है, ‘कुछ सत्य इतने अनावश्यक होते हैं, जिनके कहने या नहीं कहने से कोई अंतर नहीं पड़ता’। राहुल गांधी ऐसे अनावश्यक सत्य हर जगह कहते रहते हैं और कह कर फिर भूल जाते हैं। आदिवासी नेताओं को कांग्रेस में महत्व नहीं मिलता है यह एक अनावश्यक सत्य था, जिसको कहने की जरुरत नहीं थी। अगर राहुल गांधी इस सत्य से आहत होते तो अब तक पार्टी के अंदर आदिवासियों को महत्व मिलना शुरू हो गया होता। आखिर वे 21 साल से कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं। वे डेढ़ साल कांग्रेस के अध्यक्ष थे। तो क्या उस अवधि में उन्होंने कांग्रेस में आदिवासी नेताओं को महत्व दिया था? ध्यान नहीं आ रहा है कि उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस संगठन या सरकार में किसी आदिवासी नेता को बहुत महत्व मिला।

अभी कांग्रेस में सारे फैसले राहुल गांधी या उनके करीबी संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेस संगठन में किसी आदिवासी को कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं मिली है। कांग्रेस के 13 महासचिवों में कोई आदिवासी नहीं है अब आगे देखना होगा कि राहुल गांधी ने आदिवासी नेताओं से मुलाकात में जो सचाई बयान की है उसके हिसाब से कब वे काम करना शुरू करेंगे? वैसे कई और मामले हैं, जहां राहुल ने इस तरह की बातें कही हैं लेकिन उन पर अमल नहीं हुआ है। गुजरात का मामला मिसाल है, जहां राहुल ने कहा था कि गुजरात में पार्टी के अनेक नेता ऐसे हैं, जो भाजपा के लिए काम करते हैं और 30 से 40 ऐसे नेताओं को पहचान करके पार्टी से निकालना होगा। इस बात के करीब तीन महीने हो गए। इस बीच पार्टी ने जिला संगठन बनाया है और 40 नए जिला अध्यक्षों की नियुक्ति हुई है। दो सीटों के उपचुनाव में हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल का इस्तीफा हो गया है लेकिन भाजपा के लिए काम करने वाले या कथित बारात के घोड़ों की पहचान करके उनको पार्टी से निकालने की एक भी मिसाल नहीं है। ध्यान रहे ऐसी बातें करके राहुल सोशल मीडिया के हीरो तो बन जाते हैं लेकिन पार्टी को उसका फायदा होने की बजाय नुकसान हो जाता है।

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