भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश सरकार ने आरक्षण बढ़ाने की पहल की है। राज्य सरकार ने अन्य पिछड़ी जातियों यानी ओबीसी का आरक्षण 14 से बढ़ा कर 27 फीसदी करने का फैसला किया है। गौरतलब है कि यह प्रस्ताव बहुत समय से बन कर तैयार है, जिसे राज्य सरकारों ने पहले लागू करने का फैसला किया। परंतु कामयाबी नहीं मिली। अब मोहन यादव की सरकार इसे लागू करना चाहती है। अगर सरकार ओबीसी आरक्षण में 13 फीसदी की बढ़ोतरी करती है तो सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगाई गई 50 फीसदी आरक्षण की सीमा टूटेगी। आरक्षण की सीमा बढ़ाने का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। वहां मध्य प्रदेश सरकार ने हलफनामा देकर इसको जस्टिफाई किया है और कहा है कि पिछली सरकारों ने लंबे समय में कई सारे आंकड़े जुटाए हैं, जिनसे पता चलता है कि पिछड़ी जातियां राज्य में कई तरह के पिछड़ेपन का शिकार हैं और इसलिए उनका आरक्षण बढ़ाने की जरुरत है।
सवाल है कि क्या प्रदेश की भाजपा सरकार ने पार्टी नेतृत्व की सहमति से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है? अगर ऐसा है तो यह आरक्षण को लेकर भाजपा की सोच में बड़े बदलाव का संकेत है। अब तक भाजपा विरोधी पार्टियों की सरकारें आरक्षण की सीमा बढ़ाने की मांग कर रही थीं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया है। छत्तीसगढ़ की पिछली भूपेश बघेल सरकार ने आरक्षण बढ़ा कर 75 फीसदी से ऊपर करने का प्रस्ताव विधानसभा से पास कराया था। बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सरकार ने भी ओबीसी और एससी, एसटी आरक्षण 75 फीसदी करने का प्रस्ताव विधानसभा से पास कराया था। झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार भी ऐसा ही एक प्रस्ताव विधानसभा से पास करा चुकी है। अगर मध्य प्रदेश के बहाने सुप्रीम कोर्ट में बहस आगे बढ़ती है और आरक्षण बढ़ाने की मंजूरी मिलती है तो देश की राजनीति में नाटकीय बदलाव आएगा। झारखंड, बिहार से लेकर छत्तीसगढ़ और कर्नाटक, तेलंगाना तक आरक्षण बढ़ाने को मंजूरी मिलेगी। अगर ऐसा होता है तो विपक्ष का एक बड़ा एजेंडा उसके हाथ से निकल जाएगा।