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पूर्व जजों की बातों का सहारा!

उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति, तबादले और प्रमोशन की व्यवस्था में शामिल होने की केंद्र सरकार की बेचैनी बढ़ती जा रही है। पहले तो सरकार की ओर से खूब प्रयास हुआ कि कॉलेजियम सिस्टम को बदल दिया जाए। कानून भी लाया गया लेकिन कामयाबी नहीं मिली। फिर न्यायपालिका की साख बिगाड़ने का काम शुरू हुआ। सरकार के मंत्री इस काम में लगे। फिर संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से भी बयान दिलवाए गए। इसके बाद चिट्ठी लिखी गई कि किसी तरह से कॉलेजियम में जगह मिले। अब पूर्व जजों की इधर उधर कही गई बातों का सहारा लेकर सरकार न्यायपालिका को निशाना बना रही है और जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल होने की कोशिश कर रही है।

सबसे दिलचस्प बात केंद्रीय कानून मंत्री का प्रमाणपत्र बांटना है। वे सर्टिफिकेट बांट रहे हैं कि किस पूर्व जज की बात समझदारी भरी है। उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आरएस सोढ़ी के इंटरव्यू का एक वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को हाईजैक कर लिया है। उन्होंने जजों की नियुक्ति में सरकार को शामिल करने की बात भी कही है। कानून मंत्री ने जस्टिस सोढ़ी की बात को समझदारी वाली बात का सर्टिफिकेट दिया है। इससे पहले उन्होंने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रूमा पॉल की बात का हवाला देकर कहा था कि कॉलेजियम में सरकार का भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए।

सोचें, इधर उधर से पूर्व जजों की वीडियो और इंटरव्यू जुगाड़ करके सरकार न्यायपालिका पर दबाव बना रही है कि न्यायिक नियुक्तियों में उसको शामिल किया जाए। सवाल है कि अगर थोड़े से पूर्व जजों ने कॉलेजियम सिस्टम में सरकार के प्रतिनिधित्व की बात कही है या मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना की है तो ढेर सारे जजों और पूर्व जजों ने इस सिस्टम का समर्थन किया है। न्यायिक बिरादरी में बड़ा तबका ऐसा है, जो कुछ बदलाव के साथ मौजूदा सिस्टम का समर्थन करता है। लेकिन सरकार उनकी बात नहीं सुन रही है। क्या उनकी बात नासमझी वाली है?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने दो टूक अंदाज में कहा है कि जब तक दूसरी कोई व्यवस्था नहीं होती है, तब तक कॉलेजियम ही देश का कानून है और इसे मानना होगा। सरकार ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग यानी एनजेएसी का जो बिल पेश किया था उसे पांच जजों की बेंच ने खारिज कर दिया था। जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस एमबी लोकुर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस एके गोयल शामिल थे। इनमें से चार जजों ने इसे असंवैधानिक बताया और जस्टिस चेलामेश्वर ने खारिज करने का अलग कारण बताए। पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने भी कहा था कि बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था बनाए कॉलेजियम की आलोचना करने से कुछ हासिल नहीं होगा।

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