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विपक्षी एकता में बड़ा मोलभाव होगा

देश की तमाम बड़ी विपक्षी पार्टियों ने कांग्रेस की कश्मीर रैली से दूरी बना कर यह संदेश दे दिया है कि भाजपा के खिलाफ विपक्षी पार्टियों की एकता आसान नहीं होगी। अगर कांग्रेस इसकी पहल करती है तो उसे बहुत मोलभाव करना होगा। राहुल गांधी ने कहा कि विपक्षी पार्टियों में मतभेद हैं लेकिन उनका लक्ष्य एक है और वे एक होंगे। लेकिन उनका एक होना आसान नहीं होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि विपक्षी पार्टियां कांग्रेस की बड़ी ताकत या लोकप्रियता से चिंता में हैं। उनको लग रहा है कि राहुल गांधी की यात्रा से ताकतवर हुई कांग्रेस उनसे ज्यादा हिस्सेदारी मांगेगी और ज्यादा हिस्सा देने का खतरा यह है कि कांग्रेस का मूल वोट बैंक उसके पास वापस भी लौट सकता है।

तभी ज्यादातर विपक्षी पार्टियां श्रीनगर की रैली में नहीं गईं। उनको पता था कि उनके जाने से यह मैसेज बनेगा कि विपक्ष की धुरी कांग्रेस है और समूचा विपक्ष उसके झंडे के नीचे आ गया। उनको यह भी पता था कि उनके जाने से कांग्रेस की रैली ग्रैंड बनेगी, जिससे कांग्रेस को मीडिया में ज्यादा स्पेस मिलेगी और राज्यों में भी कांग्रेस की मजबूती का मैसेज जाएगा। तभी शिव सेना से लेकर एनसीपी और राजद से लेकर जदयू तक सभी बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों ने इस रैली से दूरी बनाई। महाराष्ट्र में कांग्रेस, एनसीपी और शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट का औपचारिक गठबंधन है और बिहार में राजद, जदयू के साथ कांग्रेस का औपचारिक गठबंधन है। फिर भी इसके नेता रैली में नहीं गए।

सीपीएम के नेता भी नहीं गए तो सपा, बसपा, टीएमसी, बीजद, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, जेडीएस आदि ने भी दूर बनाई। कश्मीर की दोनों पार्टियों- नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के अलावा सिर्फ एक बड़ी पार्टी डीएमके ने रैली में हिस्सा लिया। कांग्रेस की बड़ी सहयोगियों में जेएमएम ने अपना प्रतिनिधि भेजा था। किसी सहयोगी पार्टी का बड़ा नेता शामिल नहीं हुआ। सीपीआई, वीसीके, आईयूएमएल, आरएसपी आदि के नेता शामिल हुए तो उनका कोई मतलब नहीं है।

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