भारत में आईटी ऐक्ट को लेकर मतभेद हैं, तो उसकी वजह इस कानून में शामिल कुछ प्रावधानों के दुरुपयोग की शिकायतें हैं। यहां सरकारों ने असहमति को नियंत्रित करने के लिए ऐसे प्रावधानों का अक्सर इस्तेमाल किया है।
कर्नाटक हाई कर्ट ने कहा है कि सोशल मीडिया विचारों का आधुनिक अखाड़ा है, जिसे अराजक स्वतंत्रता के हाल में नहीं छोड़ा जा सकता। अतः इस पर मौजूद कंटेंट को अवश्य विनियमित किया जाना चाहिए- खासकर अगर उसका संबंध महिलाओं से हो। कोर्ट ने कहा कि ऐसा ना करने का मतलब गरिमा के नागरिकों के अधिकार का हनन होगा। कोर्ट ने कहा- ‘जो भी मंच हमारे राष्ट्र के अधिकार-क्षेत्र में काम करता है, उसे स्वतंत्रता के साथ-साथ जिम्मेदारी को भी स्वीकार करना होगा। विशेषाधिकार के साथ उत्तरदायित्व का निर्वाह अनिवार्य है।’ न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता की आड़ में अनियमित अभिव्यक्ति अराजकता का स्रोत बन जाती है। इस निर्णय का व्यावहारिक पक्ष यह है कि सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स को सूचना तकनीक अधिनियम की धारा 79 को मानना पड़ेगा।
इस धारा को सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स (जो पहले ट्विटर था) ने चुनौती दी थी। लेकिन हाई कोर्ट ने उसकी यायिका खारिज कर दी है। हाई कोर्ट ने जो समझ सामने रखी है, उससे असहमत होने की कम ही गुंजाइश है। दरअसल, भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ‘विवेकपूर्ण सीमाओं’ के अंदर ही दी गई है। कोर्ट की ये बात भी सही है कि हर संप्रभु देश अब सोशल मीडिया का विनियमन कर रहा है। जैसाकि अदालत ने ध्यान दिलाया कि अमेरिका में भी सोशल मीडिया को विनियमित करने वाले कानून हैं, जहां एक्स का मुख्यालय है। बहरहाल, भारत में आईटी ऐक्ट को लेकर मतभेद रहे हैं, तो उसकी वजह इस कानून में शामिल कुछ प्रावधानों के दुरुपयोग की शिकायतें हैं।
यहां सरकारों ने असहमति या विपक्षी राय को नियंत्रित करने के लिए ऐसे प्रावधानों का अक्सर इस्तेमाल किया है। आरोप है कि आंदोलन या प्रतिरोध से संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट्स को हटवाने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया कंपनियों पर दबाव डाला है। इसलिए सोशल मीडिया के विनियमन की बात से विपक्षी हलकों में आशंका पैदा हो जाती है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने अपना फैसला एक सामाजिक समस्या के संदर्भ में दिया है। मगर कोर्ट की व्याख्याएं राजनीतिक दायरों में भी पहुंच सकती हैं। और यहां आकर बात जटिल हो जाती है।