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इनसे छीनो, उनको दो!

हाल के वर्षों में बिजली की किल्लत घटी है और अच्छी सड़कें बनी हैं। मगर बिजली सस्ती नहीं हुई है और टोल-टैक्स से सड़क परिवहन महंगा बना हुआ है। ये सभी लागतें आखिरकार उत्पाद की कीमत में ही शामिल होती हैं।

महाराष्ट्र सरकार ने व्यापारिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं के लिए बिजली पर अतिरिक्त कर को दोगुना कर दिया है। इस तरह ऐसे उपभोक्ताओं को अब प्रति यूनिट बिजली के उपभोग पर 9 रुपये 90 पैसे की अधिक रकम चुकानी होगी। जाहिर है, ये बड़ी वृद्धि है। इस बढ़ोतरी के जरिए राज्य सरकार सालाना 834 करोड़ रुपये जुटाएगी। देवेंद्र फड़णवीस सरकार ने कहा है कि इस रकम का इस्तेमाल किसानों को सोलर पंप देने के लिए किया जाएगा। राज्य सरकार के मुताबिक प्रधानमंत्री कुसुम योजना के तहत किसानों को सोलर पंप दिए जाएंगे, मगर इसके लिए राजकोष में पैसा नहीं है। पैसे की कमी का कारण “कल्याण योजनाओं” पर बढ़े बजट को बताया गया है।

साधारण भाषा में कहें, तो विधानसभा चुनाव से पहले राज्य सरकार ने रेवड़ियों को जो झड़ी लगाई थी, उस कारण आगे और “कल्याण” करने की उसकी क्षमता नहीं बची। तो अब उद्योगपतियों और कारोबारियों पर बोझ डालने का फैसला किया गया है। ‘इनसे छीनो, उनको दो’ का यह मॉडल कितना हानिकारक है, इसका अंदाजा इसके नतीजों के गंभीर विश्लेषण से ही लगाया जा सकता है। यह शिकायत पहले से ही है कि भारतीय उत्पाद विश्व बाजार की प्रतिस्पर्धा में इसलिए पिछड़ जाते हैं, क्योंकि लागत ज्यादा होने के कारण वे महंगे पड़ते हैं। इन्फ्रास्ट्रक्चर लागत का महंगा होना इसका एक बड़ा पहलू है।

भारत में हाल के वर्षों में बिजली की किल्लत घटी है और अच्छी सड़कें बनी हैं। मगर बिजली सस्ती नहीं हुई है और टोल-टैक्स से सड़क परिवहन महंगा बना हुआ है। ये सभी लागतें आखिरकार उत्पाद की कीमत में ही शामिल होती हैं। चूंकि व्यापारियों को भी बिजली आदि जैसी सुविधाएं महंगी मिलती हैं, तो वे जो चीजों की जो बिक्री वे करते हैं, उस पर अपनी लागत जोड़ते हैं। इस कारण उद्योग-धंधों का वैसा प्रसार नहीं होता, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ें। नतीजतन, कृषि पर आबादी की निर्भरता जस की तस बनी हुई है। यह एक दुश्चक्र है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था निकलती नजर नहीं आती। इसकी वजहों में झांकें, तो सरकारों की वोट-जुटाऊ प्राथमिकता भी, उसमें खास भूमिका निभाती नजर आएगी। महाराष्ट्र इसकी नायाब मिसाल है।

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