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आतंकवाद और अमेरिका

इस्लामाबाद में हुए बम धमाके में 12 मौतें हुईं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तुरंत इसके लिए भारत को दोषी बता दिया। और उतनी ही फुर्ती से इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास ने इस पर अपना बयान जारी किया।

सुरक्षा एजेंसियों ने 10 नवंबर को आतंकवाद के एक बड़े मॉड्यूल का भंडाफोड़ करने का दावा किया और उसके कुछ घंटे बाद ही दिल्ली में लाल किला मेट्रो स्टेशन के बाहर कार विस्फोट हो गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे साजिश का नतीजा बताया है। इस घटना से पूरा भारत हिला हुआ है। मगर अमेरिका ने उस पर प्रतिक्रिया जताने में लगभग 24 घंटे लगा दिए। फिर भारत स्थित अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर का बयान आया, जिसमें हताहत लोगों के लिए हमदर्दी जताई गई। 11 नवंबर को पाकिस्तान में इस्लामाबाद में एक जिला कोर्ट के बाहर हुए बम धमाके में 12 मौतें हुईं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने तुरंत इसके लिए भारत को दोषी बता दिया।

और उतनी ही फुर्ती से इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास ने इस पर अपना बयान जारी किया। उसमें इस घटना की “निंदा” की गई और कहा गया- ‘आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में अमेरिका पाकिस्तान के साथ एकजुट खड़ा है।.. अपने देश में शांति और स्थिरता लाने के पाकिस्तान सरकार के प्रयासों का हम समर्थन करते हैं।’ तो अंतर साफ है। इस फर्क को हमें ध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि इससे इस क्षेत्र की स्थितियां प्रभावित हो रही हैं। विशेषज्ञों ने अंदेशा जताया है कि अमेरिका और चीन के साथ अपने अनुकूल संबंधों से उत्साहित पाकिस्तान भारत में आतंकवाद फैलाने की कोशिशों में नई ऊर्जा के साथ जुट सकता है।

उधर बांग्लादेश की खुफिया एजेंसियों के साथ गहराते रिश्तों के कारण पाकिस्तान के लिए भारत विरोधी साजिश रचना और आसान हो गया है। साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक भारत में इस वर्ष अब तक आतंकवाद से संबंधित साजिश के आरोप में 82 लोग गिरफ्तार हुए हैं। इसे इस बात का संकेत समझा गया है कि आतंक का नेटवर्क फिर फैल रहा है, जो हाल के वर्षों में कमजोर पड़ा हुआ था। इसके पीछे पाकिस्तान संचालित गुटों के हाथ का संदेह है। इसके बावजूद पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता बढ़ी है, तो उसके पीछे डॉनल्ड ट्रंप के दौर में अमेरिका का रुख एक प्रमुख कारण है। चीन का समर्थन तो हमेशा पाकिस्तान के साथ रहा ही है।

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