Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

भरोसे की चिंता नहीं

आज चुनाव प्रक्रिया को लेकर विपक्ष और सिविल सोसायटी के एक बड़े हिस्से में संदेह का माहौल है। ऐसे शक और सवालों को निराधार साबित करना आयोग की जिम्मेदारी है, जिसे संविधान ने स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व सौंपा है।

निर्वाचन आयोग के रुख से यह साफ हो गया है कि उसे चुनाव प्रक्रिया में संबंधित सभी पक्षों के यकीन की कोई फिक्र नहीं है। मतदान से संबंधित फॉर्म 17-सी का सकल आंकड़ा आयोग की वेबसाइट पर डालने की मांग के खिलाफ उसने जिस तरह के तर्क दिए हैं, उसका सीधा निष्कर्ष यही है। इस फॉर्म में यह बताया जाता है कि किसी बूथ पर कुल कितने मतदाता दर्ज हैं और उनमें से असल में कितनों ने वोट डाले। सुप्रीम कोर्ट में इस प्रश्न पर पेश अपने हलफ़नामे में आयोग ने कहा है कि फॉर्म 17-सी की मूल कॉपी स्ट्रॉन्ग रूम और उन पोलिंग एजेंडों के पास है, जिनके दस्तखत फॉर्म पर हैं।

“इस तरह यह हर फॉर्म और जिसके पास वो मौजूद है, उसके बीच प्रत्यक्ष संबंध का मामला है।” इसका क्या अर्थ है, इसे समझना अनेक लोगों के लिए कठिन हो सकता है। आयोग ने कहा है कि इन कॉपियों को वेबसाइट पर डाला गया, तो उसकी तस्वीर लेकर उसमें हेरफेर की जा सकती है और इसके जरिए जनता में व्यापक अशांति और अविश्वास पैदा किया जा सकता है। मगर प्रश्न है कि ये आशंकाएं 2019 तक बेबुनियाद थीं (जब इस फॉर्म को जारी करना आम चलन था), तो अब ऐसा क्या हो गया है, जिससे आयोग इतना भयाक्रांत है?

आयोग का यह तर्क भी गले नहीं उतरता कि कानूनन वह ये सूचना जारी करने के लिए बाध्य नहीं है। साधारण बात है कि कानून का तकाजा ना होने पर भी अगर आबादी का एक हिस्सा चाहता हो, तो कोई ऐसी सूचना जारी करना सार्वजनिक विश्वास के लिए अनिवार्य हो जाता है, बशर्ते उस सूचना का संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा से ना हो। आज हकीकत यह है कि देश की चुनाव प्रक्रिया को लेकर विपक्ष और सिविल सोसायटी के एक बड़े हिस्से में संदेह का माहौल बना हुआ है। ऐसे शक और सवालों को निराधार साबित करना आयोग की जिम्मेदारी है, जिसे संविधान ने स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व सौंपा है। आशा है, आज जब इस हलफनामे पर सुनवाई होगी, तो सुप्रीम कोर्ट इस व्यापक सार्वजनिक हित को ध्यान में रखेगा।

Exit mobile version