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जाति जनगणना का मसला सुप्रीम कोर्ट में

नई दिल्ली। जाति जनगणना पर रोक लगाने के पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। बिहार में जाति जनगणना का दूसरा चरण चल रहा है, लेकिन चार मई को पटना हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई के लिए गर्मी की छुट्टियों के बाद तीन जुलाई की तारीख तय की। बिहार सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पटना हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि किसी भी राज्य सरकार को जनगणना कराने का अधिकार नहीं है।

राज्य सरकार का कहना है कि अगर जाति जनगणना को रोका गया तो बहुत बड़ा नुकसान होगा। पटना हाईकोर्ट के चार मई के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दी गई याचिका में बिहार सरकार ने कहा है कि स्थगन से पूरी प्रक्रिया पर नकारात्मक असर पड़ेगा। बिहार सरकार ने कहा है कि जातिगत गणना संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत संवैधानिक रूप से अनिवार्य है। गौरतलब है कि संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है कि राज्य धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या अन्य आधारों पर किसी नागरिक के खिलाफ भेदभाव नहीं करेगा, जबकि अनुच्छेद 16 के मुताबिक सभी नागरिकों को रोजगार या राज्य के अधीन किसी कार्यालय में नियुक्ति देने के मामले में समान अवसर प्रदान किया जाएगा।

बिहार सरकार की याचिका में कहा गया है- राज्य ने पहले ही कुछ जिलों में 80 प्रतिशत से अधिक सर्वेक्षण का कार्य पूरा कर लिया है। कई जगह 10 प्रतिशत से भी कम काम लंबित है। पूरी मशीनरी जमीनी स्तर पर काम कर रही है। इसमें कहा गया है कि वाद पर अंतिम निर्णय आने तक पूरी प्रक्रिया को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है- सर्वेक्षण प्रक्रिया पूरी करने में समय का अंतर होने पर पूरी प्रक्रिया पर नाकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यह सम-सामायिक आंकड़ा नहीं है।

सरकार ने याचिका में कहा है- आंकड़ों को इकट्ठा करने पर रोक से ही राज्य को भारी नुकसान होगा। अंत में राज्य के निर्णय को कायम रखा जाता है, तो उसे लॉजिस्टिक के साथ अतिरिक्त खर्च करना होगा, जिससे राजकोष पर बोझ पड़ेगा। गौरतलब है कि कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को तत्काल जाति आधारित सर्वेक्षण को रोकने का आदेश दिया था। अदालत ने यह सुनिश्चित करने को कहा था कि अब तक इकट्ठा किए गए आंकड़े सुरक्षित किए जाए और अंतिम आदेश आने तक उसे किसी से साझा नहीं किया जाए।

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