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पाकिस्तान अदालत की शरण में

भारत और पाकिस्तान के बीच अब ऐसे मामले पर विवाद उठ खड़ा हुआ है, जिसे सारी दुनिया के देश एक आदर्श संधि मानते रहे हैं। अब से 62 साल पहले जवाहरलाल नेहरु और अयूब खान के प्रयत्नों से सिंधु नदी के पानी को लेकर दोनों देशों के बीच सिंधु जल संधि हुई थी, उसका पालन कई युद्धों के दौरान भी होता रहा लेकिन भारत ने अब संधि के नियमों का हवाला देते हुए इसके प्रावधानों को बदलने की पहल की है। भारत ने पाकिस्तान को 90 दिन का नोटिस दिया है कि दोनों देश मिलकर अब संधि के मूलपाठ में संशोधन करें। संशोधन क्या-क्या हो सकते हैं, यह भारत सरकार ने अभी स्पष्ट नहीं किया है लेकिन जाहिर है कि वह ऐसे नियम अब बनाना चाहेगी कि जैसा तूल इस संधि ने अभी पकड़ा है, वैसा भविष्य में दोहराया न जाए। अभी भारत और पाकिस्तान के बीच जो विवाद चला है, वह इस बात पर है कि पाकिस्तान ने भारत की शिकायत हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय को कर दी है और उससे आग्रह किया है कि दोनों के मतभेद पर वह अपना पंच फैसला दे या मध्यस्थता करे। मूल संधि के अनुसार किसी भी आपसी विवाद को लेकर अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाना तीसरा विकल्प है। पहले दो विकल्प हैं- या तो सिंधु आयोग में जाना या फिर किसी तटस्थ मध्यस्थ की सहायता लेना। भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद छिड़ा, दो बांधों को लेकर, जो भारत बनवा रहा था। भारत उन नदियों पर, जिनका ज्यादातर पानी पाकिस्तान जाता है, दो बांध बनवा रहा है।

किशनगंगा और रातले पनबिजली योजनाओं से पाकिस्तान अपने लिए बड़ा खतरा महसूस कर रहा है। ये दोनों पनबिजली परियोजनाएं झेलम और चिनाब नामक नदियों पर बन रही हैं। पाकिस्तान को डर है कि इन बांधों के जरिए पाकिस्तान को जानेवाले पानी को न केवल भारत रोकेगा बल्कि बांधों को अचानक खोलकर पाकिस्तान को बाढ़ में डुबाने की कोशिश भी करेगा। पाकिस्तान ने जब यह आपत्ति की तो सिंधु आयोग कोई फैसला नहीं कर सका। इस आयोग में दोनों देशों के अफसर शामिल हैं। तब पाकिस्तान ने पहल की कि कोई तीसरा तटस्थ व्यक्ति मध्यस्थता करे। पाकिस्तान की यह पहल सिंधु जल संधि के अनुकूल थी लेकिन 2015 में की गई इस पहल को अचानक 2016 में उसने वापस ले लिया। इसका कोई कारण भी उसने नहीं बताया। यह तो संधि की धारा 9 का उल्लंघन है। अब भारत की सहमति के बिना ही पाकिस्तान हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की शरण में चला गया है। इसी से नाराज होकर भारत ने अब पाकिस्तान को 90 दिन का नोटिस दे दिया है लेकिन आश्चर्य है कि हमारे विदेश मंत्रालय ने हेग के न्यायाधीशों को अभी तक संधि के नियमों के इस उल्लंघन के बारे में क्यों नहीं बताया? बेहतर तो यह होगा कि भारत हेग न्यायालय की मध्यस्थता को ही अस्वीकार कर दे। हेग के न्यायाधीशों ने क्या सिंधु जल-संधि के नियमों को पढ़े बिना ही इस मामले पर विचार करना स्वीकार कर लिया है? विचित्र यह भी है कि एक तरफ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ भारत से सीधा संवाद करने की बात कहते हैं और दूसरी तरफ संवाद की राह से भटककर वे अदालत की शरण में जा रहे हैं।

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