Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

कर्नाटक के जनादेश का बड़ा मतलब

कर्नाटक में मतदान के दिन यानी 10 मई को मैंने इसी कॉलम में ‘कर्नाटक का चुनाव रास्ता दिखाएगा’ शीर्षक से लेख लिखा था और सचमुच कर्नाटक की जनता ने रास्ता दिखाने वाला जनादेश दिया है। इस जनादेश ने भाजपा के लिए दक्षिण का दरवाजा बंद किया है तो समूचे विपक्ष के लिए देश का दरवाजा खोल दिया है। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस और अगले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष का गठबंधन बनाने की कोशिश कर रहे नेताओं को इस नतीजे से संजीवनी मिली है। यह भरोसा मिला है कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एजेंडे को हराया जा सकता है। यह विश्वास बना है कि नरेंद्र मोदी का जो तिलिस्म बना है उसे तोड़ा जा सकता है। यह उम्मीद बंधी है कि जनता को जितना बौराया हुआ माना या बताया जाता है वह उतनी बौराई नहीं है। लोगों में इतनी समझदारी बची है कि वे अपना भला-बुरा समझ सकें। यह धारणा भी मजबूत हुई है कि सामाजिक न्याय का मुद्दा अब भी हिंदुत्व के मुद्दे की काट हो सकता है।

यह जनादेश कई मायने में ऐतिहासिक है और इसकी व्याख्या सिर्फ इस नजरिए से नहीं की जा सकती है कि कर्नाटक में हर पांच साल पर सत्ता बदलने का रिवाज रहा है, इसलिए इस बार भी बदल गया। ऐसा नहीं है। यह सिर्फ सत्ता विरोधी लहर का प्रकटीकरण नहीं है, बल्कि कर्नाटक की जनता ने निर्णायक रूप से भाजपा को पराजित किया है। भाजपा अपना 36 फीसदी का आधार वोट बचाए रखने में जरूर कामयाब हो गई है लेकिन उसके और कांग्रेस के वोट में सात फीसदी का फर्क है। भाजपा जहां पिछले साल के वोट पर ही खड़ी रही वहीं कांग्रेस के पक्ष में पांच फीसदी का पॉजिटिव स्विंग हुआ। यह पांच फीसदी वोट नतीजों को बदलने वाला साबित हुआ। यह सकारात्मक वोट था, जो कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए दिया गया था। इसलिए यह जनादेश सिर्फ भाजपा को हराने के लिए नहीं है, बल्कि कांग्रेस की एक स्थिर सरकार बनाने के लिए है। ध्यान रहे पिछले 25 साल में यह तीसरी बार है, जब किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला है और हर बार पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली पार्टी कांग्रेस ही रही है।

बहरहाल, इस चुनाव के कुछ खास सबक और संदेश हैं। सबसे पहला तो यह कि सकारात्मक एजेंडे से ध्रुवीकरण के एजेंडे को हराया जा सकता है। यह बड़ा संदेश है। ध्यान रहे कर्नाटक में भाजपा ने ध्रुवीकरण कराने वाले कई मुद्दों को आजमाया। चुनाव से पहले लव जिहाद रोकने के नाम पर धर्मांतरण विरोधी कानून लाया गया। स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पर पाबंदी लगाई गई। टीपू सुल्तान बनाम सावरकर की बहस बनवाई गई। मुस्लिम समुदाय को मिला चार फीसदी आरक्षण खत्म किया गया। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई पर पाबंदी का प्रचार किया गया। चुनाव घोषणापत्र में वादा किया गया कि भाजपा की सरकार बनी तो समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी। चुनाव के बीच जब कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में वादा किया कि पीएफआई से लेकर बजरंग दल तक नफरत फैलाने वाले सभी संगठनों पर पाबंदी लगाई जाएगी तो भाजपा ने तुरंत इसे लपका और बजरंग दल को बजरंग बली से जोड़ कर कांग्रेस पर हमला शुरू किया। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी 19 रैलियों में से 12 रैलियों में जय बजरंग बली के नारे से भाषण शुरू किया और इसी नारे से भाषण खत्म किया।

सोचें, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने के कितने मुद्दे थे और इनका कैसे प्रचार किया गया। इसके बावजूद भाजपा के वोट में जरा सा भी इजाफा नहीं हुआ। कोई नया मतदाता उसके साथ नहीं जुड़ा। इसके उलट भाजपा के एजेंडे को खारिज करने के लिए 43 फीसदी लोगों ने कांग्रेस को वोट किया। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस का घोषणापत्र कर्नाटक में किसी बड़े संरचनात्मक बदलाव की बात करने वाला है। लेकिन अच्छी बात यह रही कि कांग्रेस ने राज्य के लोगों की समस्याओं को समझा और वहां का सबसे पिछड़ा या गरीब तबका क्या चाहता है उस पर फोकस किया। इसके लिए कांग्रेस ने कई चीजें मुफ्त में बांटने की घोषणा भी की, जिसे मुफ्त की रेवड़ी बांटना कहा गया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कर्नाटक का खजाना खाली हो जाएगा फिर भी कांग्रेस के वादे नहीं पूरे होंगे। लेकिन कांग्रेस के वादे, जिसे पार्टी ने ‘पांच गारंटी’ की शक्ल में पेश किया वह लोगों को पसंद आया। इसका कारण यह था कि ये पांचों गारंटी आम लोगों के जीवन से जुड़ी थी। चाहे हर परिवार को दो सौ यूनिट बिजली देने की गारंटी हो, महिलाओं को बस में मुफ्त यात्रा और घर ही महिला मुखिया को दो हजार रुपए महीना देने का वादा हो या बेरोजगार युवाओं को तीन हजार और डेढ़ हजार रुपया महीना देने का वादा हो। इन वादों ने एक बड़े तबके को कांग्रेस के साथ जोड़ा। इन वादों, गारंटियों और सकारात्मक एजेंडे से भाजपा के ध्रुवीकरण कराने वाले एजेंडे को हरा दिया।

हिंदुत्व के एजेंडे के अलावा भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका राष्ट्रीय नेतृत्व है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के लिए गेम चेंजर हैं। उन्होंने डबल इंजन की सरकार का ऐसा नैरेटिव बनवाया है कि वे किसी भी राज्य में प्रचार के लिए जाते हैं और आखिरी दो हफ्ते में तस्वीर बदल देते हैं। इस बार यह मिथक भी टूटा है कि आखिरी दौर में मोदी आकर खेल पलट देंगे। पांच साल तक अगर किसी राज्य में कमजोर और नाकाम सरकार चलती है तो फिर वहां कोई जादू नहीं चल सकता है। तभी हैरानी है कि क्या मोदी और उनकी टीम ने कर्नाटक को लेकर इस बात को नहीं समझा? या कहीं ऐसा तो नहीं है कि यह समझते हुए भी मोदी को अपने पर भरोसा था और उन्होंने अपने को पूरी तरह से दांव पर लगाया? जो भी हो यह प्रमाणित हुआ है कि स्थानीय स्तर पर भाजपा को मजबूत नेता की जरूरत है, जो लोकप्रिय हो और जनाधार वाला हो। यह मैसेज कांग्रेस के लिए भी है। कर्नाटक में कांग्रेस आलाकमान ने प्रादेशिक क्षत्रप नेताओं को अपने हिसाब से चुनाव प्लान करने दिया और बिल्कुल स्थानीय मुद्दों पर प्रचार करके चुनाव लड़ने दिया, जिसका नतीजा सबके सामने है।

इस जनादेश का एक और बड़ा पहलू यह है कि संभवतः पहली बार भ्रष्टाचार का मुद्दा भाजपा के गले की हड्डी बना। इससे पहले भ्रष्टाचार का मुद्दा भाजपा पर नहीं चिपकता था। उलटे एक  राष्ट्रीय नैरेटिव के जरिए कांग्रेस और बाकी विपक्षी पार्टियों को भ्रष्ट साबित किया गया है। कर्नाटक में यह दांव नहीं चला, उलटे भाजपा पर लगे आरोप को लोगों ने सही माना। इसका कारण यह है कि कर्नाटक में भाजपा पर आरोप लगाने का काम कांग्रेस के प्रवक्ता नहीं कर रहे थे, बल्कि यह काम स्थानीय संगठनों ने किया था। कर्नाटक के कांट्रैक्टर एसोसिएशन ने चिट्ठी लिख कर 40 फीसदी कमीशन मांगे जाने के आरोप लगाए थे तो स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन के लोगों ने भी ऐसे ही आरोप लगाए थे। इसलिए लोगों को इन आरोपों पर यकीन हुआ। यह एक बड़ा घटनाक्रम है, जिसका विपक्ष पूरे देश में इस्तेमाल कर सकता है।

Exit mobile version