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संविधान पर आरएसएस से विवाद

राहुल

नई दिल्ली। संविधान की प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्द हटाने की आरएसएस की बात पर विवाद बढ़ गया है। इस प्रस्ताव के विरोध में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोर्चा खोला है तो भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसका समर्थन किया है। आरएसएस के नंबर दो पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबाले के दिए बयान का विरोध करते हुए लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को कहा कि आरएसएस और भाजपा को संविधान नहीं, मनुस्मृति चाहिए।

राहुल गाधी ने आरएसएस पर हमला बोलते हुए यह भी कहा कि, ‘संविधान इन्हें चुभता है, क्योंकि वो समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की बात करता है’। इससे पहले, होसबाले ने 26 जून को दिल्ली में हुए ‘आपातकाल के 50 साल’ कार्यक्रम में कहा था, ‘मूल संविधान में धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी शब्द नहीं थे। इमरजेंसी के समय देश में संसद और न्यायपालिका दोनों काम नहीं कर रही थीं। इस दौरान इन दो शब्दों को जोड़ दिया गया। ये शब्द रहें या नहीं, इस पर बहस होनी चाहिए’।

संघ के सरकार्यवाह होसबाले के इस बयान पर जवाब देते हुए राहुल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स लिखा, ‘भाजपा और आरएसएस बहुजनों और गरीबों से उनके अधिकार छीनकर उन्हें दोबारा गुलाम बनाना चाहते हैं। संविधान जैसा ताकतवर हथियार उनसे छीनना इनका असली एजेंडा है। होसबाले ने गुरुवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम में कांग्रेस या राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहा था, ‘इमरजेंसी के समय संविधान की हत्या की गई थी और न्यायपालिका की स्वतंत्रता खत्म कर दी गई थी। इमरजेंसी के दौरान एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया, 250 से ज्यादा पत्रकारों को कैद किया गया, 60 लाख लोगों की जबरन नसबंदी करवाई गई। अगर ये काम उनके पूर्वजों ने किया था तो उनके नाम पर माफी मांगनी चाहिए’।

शुक्रवार को इस विवाद में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हो गए। उन्होंने वाराणसी में एक कार्यक्रम में कहा, ‘सर्वधर्म सद्भाव भारतीय संस्कृति का मूल है। धर्मनिरपेक्ष हमारी संस्कृति का मूल नहीं है और इसलिए इस पर जरूर विचार होना चाहिए कि आपातकाल में जिस धर्मनिरपेक्ष शब्द को जोड़ा गया उसको हटाया जाए’। समाजवाद पर बोलते हुए शिवराज सिंह ने कहा कि, ‘समाजवाद की आत्मवत सर्वभूतेषु अपने जैसा सबको मानो ये भारत का मूल विचार है। मतलब हर किसी को अपने जैसा मानना ही भारत का मूल विचार है’।

गौरतलब है कि ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवादी’ शब्द 1976 में 42वें संशोधन के जरिए शामिल किए गए थे। इस दौरान देश में आपातकाल था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल की घोषणा की थी। यह 21 मार्च 1977 यानी 21 महीने तक लागू रहा था। भाजपा ने इमरजेंसी के 50 साल पूरे होने पर इसे ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया।

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