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कानून बनाने में राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं

New Delhi, May 22 (ANI): A view of the Supreme Court of India, in New Delhi on Thursday. (ANI Photo/Rahul Singh)

नई दिल्ली। देश के कई गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राज्यों में कानून बनाने का अधिकार विधानसभा का होता है और उसमें राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं होती है। राज्यों ने विधानसभा से पास विधेयकों को महीनों और बरसों तक लटका कर रखने की राज्यपालों की मनमानी का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में यह बात कही। राज्यों ने विधानसभा से पास विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समय सीमा तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट के रेफरेंस भेजा है। इस मामले में बुधवार को लगातार सातवें दिन सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने विधेयकों को रोक कर रखने की विवेकाधिकार शक्ति का विरोध किया। राज्यों ने कहा कि कानून बनाना विधानसभा का काम है, इसमें राज्यपालों की कोई भूमिका नहीं है। वे केवल औपचारिक प्रमुख होते हैं। राज्यों ने कहा, ‘केंद्र सरकार कोर्ट के डेडलाइन लागू करने के फैसले को चुनौती देकर संविधान की मूल भावना को कमजोर करना चाहती है’।

चीफ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इससे पहले कोर्ट ने मंगलवार को कहा था कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते। अगली सुनवाई नौ सितंबर को होगी। बुधवार की सुनवाई में पश्चिम बंगाल के वकील कपिल सिब्बल ने कहा, ‘अगर विधानसभा से पास बिल गवर्नर को भेजा जाता है, तो उन्हें उस पर हस्ताक्षर करना ही होगा’।

सिब्बल ने सुनवाई के दौरान कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्यपाल के संतुष्ट होने जैसी कोई शर्त नहीं है। उन्होंने कहा, ‘या तो वे बिल पर हस्ताक्षर करें, या उसे राष्ट्रपति को भेज दें। लगातार रोके रखना संविधान की भावना के खिलाफ है। अगर गवर्नर मनमर्जी से बिल अटका दें तो यह लोकतंत्र को असंभव बना देगा’। हिमाचल सरकार के वकील आनंद शर्मा ने कहा, ‘संघीय ढांचा भारत की ताकत है और यह संविधान के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है। अगर राज्यपाल बिल रोकेंगे तो इससे केंद्र व राज्य के संबंधों में टकराव बढ़ेगा और यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा’। कर्नाटक सरकार के वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि राज्यपाल को मंत्रिपरिषद की सलाह से ही काम करना है। वहां दोहरी व्यवस्था नहीं हो सकती है।

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