नई दिल्ली। राज्यों की विधानसभाओं से पास विधेयक की मंजूरी के मामले में राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय करने के पुराने फैसले से सुप्रीम कोर्ट पीछे हट गई है। पांच जजों की बेंच ने कहा है कि इस मामले में राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समय सीमा तय नहीं की जा सकती है। हालांकि अदालत ने कहा कि बहुत ज्यादा देरी होने पर सीमित निर्देश जारी कर सकती है। इससे पहले अदालत ने कहा था कि राज्यपालों को तीन महीने के अंदर विधेयकों को मंजूरी देनी होगी।
अदालत ने समय सीमा में मंजूरी नहीं देने पर उस विधेयक को डीम्ड टू पास यानी पास हुआ मान लिए जाने का फैसला भी दिया था। अब वह उस फैसले से भी पीछे हट गई है। इस मामले में दायर याचिकाओं पर आठ महीने की सुनवाई के बाद फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक राय से कहा, ‘राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। न्यायपालिका भी ऐसे मामलों में अनुमानित स्वीकृति यानी डीम्ड असेंट नहीं दे सकती’।
हालांकि इसके साथ ही अदालत ने फैसले में कहा, ‘हमें नहीं लगता कि राज्यपालों के पास विधानसभाओं से पारित विधेयकों पर रोक लगाने की पूरी पावर है’। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘राज्यपालों के पास तीन विकल्प हैं। या तो मंजूरी दें या बिलों को दोबारा विचार के लिए भेजें या उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजें’। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिलों की मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती। लेकिन अगर देरी होगी तो ‘हम दखल दे सकते हैं’।
गौरतलब है कि यह मामला तमिलनाडु के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। वहां राज्यपाल ने राज्य सरकार के बिल रोककर रखे थे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आठ अप्रैल को फैसला सुनाया था कि राज्यपाल के पास कोई वीटो पावर नहीं है। इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह आदेश 11 अप्रैल को सामने आया था। इसके बाद राष्ट्रपति ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे थे।
