नई दिल्ली। नए वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दूसरे दिन बुधवार को केंद्र सरकार ने कहा कि वक्फ निश्चित रूप से इस्लाम की अवधारणा है लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य अंग नहीं है। इसके साथ ही केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा है कि वक्फ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्य रहेंगे, जो हमेशा अल्पसंख्या में ही होंगे। बुधवार को लगातार दूसरे दिन चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।
सुप्रीम न्यायालय में वक्फ कानून पर केंद्र की दलील
पहले दिन याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल ने दलील पेश की थी। दूसरे दिन केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि सरकारी जमीन पर किसी का कोई हक नहीं हो सकता, चाहे वो ‘वक्फ बाय यूजर’ के आधार पर ही क्यों न हो। मेहता ने कहा कि अगर कोई जमीन सरकारी है तो सरकार को पूरा अधिकार है कि वह उसे वापस ले ले, भले ही उसे वक्फ घोषित कर दिया गया हो।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है, इस पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। जब तक यह साबित न हो जाए, बाकी तर्क विफल हो जाते हैं’। मेहता कहा कि ऐसा नहीं है कि कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय की ओर से नहीं बोल सकते। अदालत के पास जो याचिकाएं आई हैं, वे ऐसे लोगों ने दायर की हैं जो सीधे इस कानून से प्रभावित नहीं हैं।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि ऐसा नहीं है कि सरकार ने एक बिल बना दिया और बिना सोचे विचारेर उस पर वोटिंग हो गई। उन्होंने यह भी कहा कि किसी ने यह नहीं कहा कि संसद को यह कानून बनाने का अधिकार नहीं था। मेहता ने कहा कि संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की 96 बैठकें हुईं और 97 लाख लोगों से सुझाव मिले, जिस पर बहुत सोच समझकर काम किया गया।
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