Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

बिहार में विपक्ष की बढ़ती चुनौतियां

बिहार विधानसभा चुनाव के चुनाव से पहले राजद के नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की चुनौतियां बढ़ रही हैं और साथ साथ विपक्षी महागठबंधन की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। बिहार चुनाव से पहले जितने असामान्य घटनाक्रम हो रहे हैं उन सबसे से किसी न किसी तरह की नई चुनौती विपक्ष के सामने आ रही है। अगर चुनाव सामान्य होता, तो विपक्ष और तेजस्वी यादव के लिए बहुत अच्छी संभावना दिख रही थी। नेतृत्व बदलाव के लिहाज से संक्रमण के दौर से गुजर रहे बिहार में तेजस्वी को नीतीश कुमार के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था। वे समान विचारधारा और सामान पृष्ठभूमि के साथ साथ समान राजनीतिक विरासत से निकले नेता हैं। पिछले 10 साल में दो बार उप मुख्यमंत्री और तीन बार नेता प्रतिपक्ष के तौर पर उन्होंने जो भूमिका निभाई है उससे उन्हें दूसरे नेताओं के मुकाबले बढ़त है। राजनीतिक व प्रशासनिक दोनों तरह से अनुभवों से लैस तेजस्वी बिहार की समाजवादी व मंडल राजनीति का बैटन संभालने के लिए तैयार दिख रहे हैं।

उनकी यह खास स्थिति इसलिए है क्योंकि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के बाद मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार ने उनको दो बार अपने साथ उप मुख्यमंत्री बनाया और अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी दी। इस तरह उन्होंने उनके नेतृत्व को वैधता दिलाई। अब उनके ऊपर भ्रष्टाचार या अक्षमता के आरोप लगाना आसान नहीं है क्योंकि नीतीश ने खुद उनको दो बार उप मुख्यमंत्री बनाया है। जब 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार फिर भाजपा के साथ गए तो तेजस्वी यादव के मंत्रालयों से जुड़ी चार सौ ज्यादा फाइलों की जांच कराई गई और तमाम खोजबीन के बाद भी कोई घोटाले या गड़बड़ी के सबूत नहीं मिले। दूसरा कारण यह है कि भाजपा या जनता दल यू ने नीतीश के विकल्प के तौर पर किसी नेता को प्रस्तुत नहीं किया। भाजपा ने सम्राट चौधरी को जरूर आगे किया है लेकिन उनको भी पार्टी आजमा ही रही है। खुले तौर पर उनको अपने सर्वोच्च नेता के तौर पर पेश नहीं किया जा रहा है। अगर भाजपा उनको अपना सर्वोच्च नेता बनाए और इसका स्पष्ट इशारा पार्टी के शीर्ष नेताओं की ओर से दिया  जाए तो वे तेजस्वी की बढ़त को चुनौती दे सकते हैं।

बहरहाल, तमाम सकारात्मक स्थितियां विपक्ष और तेजस्वी का पक्ष में तभी तक थीं, जब चुनाव सामान्य दिख रहा था और कोई असामान्य घटनाक्रम नहीं हुआ था। लेकिन पिछले एक महीने में दो ऐसे घटनाक्रम हुए हैं, जिनसे बिहार का चुनाव प्रभावित होगा। पहला घटनाक्रम पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला और उसका बदला लेने के लिए भारत की ओर से हुई सैन्य कार्रवाई है और दूसरा घटनाक्रम लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के एक विवाहेत्तर संबंध की कहानी का सामने आना है। ये दोनों घटनाक्रम चुनाव को प्रभावित करेंगे। इनसे तेजस्वी यादव और राजद के सामने चुनौतियां बढ़ गई हैं। हालांकि तेज प्रताप के विवाहेत्तर संबंधों की कहानी, तस्वीरें, वीडियो आदि सामने आने के बाद लालू प्रसाद ने उनको तत्काल परिवार और पार्टी से निकालने का ऐलान किया। लेकिन सबको पता है कि वह एक दिखावा है। इस घटनाक्रम ने धारणा के स्तर पर लोगों की सोच को खास कर महिलाओं के मनोविज्ञान को बहुत प्रभावित किया है। लालू प्रसाद ने नैतिक मूल्यों, लोक जीवन में लोक आचरण आदि जैसे भारी भरकम शब्दों के साथ तेज प्रताप को पार्टी से निकाला। लेकिन रिकॉर्ड है कि वे उन्होंने दो शादी करने वालों को भी टिकट दिए थे, सामूहिक हत्या करने वालों को भी टिकट दिए, बालू व पत्थर के तस्करों को साथ रखते हैं और टिकट देते हैं, आर्थिक घोटाले के आरोपियों को चुनाव लड़ाते हैं और बलात्कार के आरोपियों को भी टिकट देते हैं। सो, तेज प्रताप पर कार्रवाई से कोई उनको बड़े नैतिक मूल्यों वाला मान लेगा, ऐसा नहीं सोचा जा सकता है।

तेज प्रताप यादव के बारे में पहले से ही धारणा अलग किस्म की है। वे धुनी रमाते थे या अपने को कृष्ण भक्त बताते हुए कुछ अजीबोगरीब हरकतें करते थे या पार्टी व परिवार में अक्सर विवाद खड़ा करते रहते थे, वह सारी बातें अपनी जगह है। लेकिन अब जो कहानी सामने आई है उसके मुताबिक वे एक यादव युवती से 12 वर्षों से रिलेशनशिप में थे और इसके बावजूद 2018 में बिहार के मुख्यमंत्री रहे दारोगा प्रसाद राय की पौत्री ऐश्वर्या राय से शादी की। बाद में दोनों में झगड़े हुए और तलाक का मुकदमा चल रहा है। इस दौरान भी वे पहली युवती के संपर्क में रहे और अब दावा किया जा रहा है कि दोनों ने शादी कर ली है। इससे जो कानूनी विवाद छिड़ेगा वह अलग है। इसके अलावा भी एक तीसरी युवती के साथ उनके संबंधों की कहानी सामने आ रही है। इस पूरे प्रकरण से राजद और तेजस्वी यादव के सामने दो चुनौती खड़ी होती है।

पहली चुनौती तो महिलाओं के मनोविज्ञान की है। महिलाओं के मन में लालू प्रसाद के परिवार को लेकर दुर्भावना बढ़ेगी। ध्यान रहे पहले भी राजद और लालू प्रसाद के परिवार को लेकर कोई सकारात्मक धारणा महिलाओं के बीच नहीं रही है। राजद के यादव और मुस्लिम वोट आधार को छोड़ दें तो दूसरे समूहों की महिलाओं का समर्थन राजद को नगण्य रहा है। दारोगा प्रसाद राय की पौत्री और चंद्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय के साथ शादी के बाद जिस तरह का बरताव हुआ, जैसी मारपीट और भूखा रखने की खबरें आईँ और फिर तलाक का मामला चला उसमें भी लालू प्रसाद का पूरा परिवार विलेन बना था। इस मामले में भी लालू परिवार अपनी भूमिका से बच नहीं सकता है। ऐश्वर्या राय कह रही हैं कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को सब पता था फिर भी उन्होंने शादी कराके उनकी जिंदगी बरबाद की। सो, लालू परिवार महिलाओं के प्रति क्या नजरिया रखता है इसका प्रचार धारणा के स्तर पर राजद को नुकसान करेगा।

दूसरी चुनौती जंगल राज के टैग फिर से चिपक जाने की है। तेजस्वी यादव के नाम पर यह धारणा कुछ कम हुई थी। नौजवान पीढ़ी मानने लगी थी कि लालू और राबड़ी के समय जंगल राज रहा होगा लेकिन तेजस्वी अलग हैं, वे युवा हैं, क्रिकेटर रहे हैं और नीतीश के साथ काम किया है इसलिए उनको वोट देने में दिक्कत नहीं है। छोटा ही सही लेकिन एक समूह ऐसा मानने लगा था। यह समूह इस बात का विरोध भी करता था कि 2025 में 2005 से पहले के बिहार का मुद्दा बनाना ठीक नहीं है। कहने का मतलब है कि ‘राजद को वोट किया तो 2005 से पहले का राज लौट आएगा’, एक बड़ा तबका इस भय में वोट करने को तैयार नहीं था। लेकिन इस घटनाक्रम ने उनको भी सोचने पर मजबूर किया है। अब भाजपा और जदयू को यकीन दिलाना आसान होगा कि लालू प्रसाद का परिवार बदला नहीं है और अगर सत्ता उनको मिली तो 2005 से पहले का राज लौट आएगा। ध्यान रहे 2005 से पहले के राज में राजद की विधायक हेमलता यादव के बेटे द्वारा एक आईएएस अधिकारी की पत्नी के साथ बरसों तक बलात्कार करते रहने की यादें हैं तो शिल्पी-गौतम कांड भी है। महिलाओं के साथ साथ दूसरे समूहों में भी 2005 से पहले का राज लौटने का भय काम कर सकता है। इतना ही नहीं लालू प्रसाद के एक साले सुभाष यादव ने यादव समाज के अंदर भी लालू परिवार को कमजोर करने का दांव चला है। उन्होंने बताया है कि तेज प्रताप का शिकार बनी दोनों यादव लड़कियां कृष्णौठ समुदाय की हैं। उनका कहना है कि लालू परिवार हमेशा कृष्णौठ यादवों को कमतर समझता है और उनके साथ अन्याय करता है। ध्यान रहे बिहार में यादवों के अंदर कृष्णौठ और मजरौठ का विवाद किसी न किसी स्तर पर होता है।

इसके अलावा एक बड़ी चुनौती ऑपरेशन सिंदूर की वजह से है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार, 29 मई को पटना पहुंच रहे हैं और रोड शो करेंगे। उनकी पार्टी पाकिस्तान के आतंकवादी शिविरों को नष्ट करने के भारतीय सेना के पराक्रम को राजनीति का मुद्दा बना चुकी है। वे खुद हर जगह इस का श्रेय ले रहे हैं और देश के लोगों खासकर महिलाओं को सिंदूर सुरक्षित रखने का  वादा कर रहे हैं। पहलगाम कांड और उसके बाद हुआ ऑपरेशन सिंदूर भी चुनाव को प्रभावित करेगा। इससे भी महिलाओं को मनोविज्ञान पर बड़ा असर हुआ है और राष्ट्रवाद के साथ साथ हिंदुत्व की एक अंतर्धारा बहती दिख रही है। इन दो घटनाक्रमों के अलावा बाकी चीजें अपनी जगह है। भाजपा और जदयू का विकास का नैरेटिव और एनडीए का सामाजिक समीकरण भी विपक्षी गठबंधन की अपेक्षा बड़ा है।

Exit mobile version