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सामाजिक न्याय की पार्टी बनेगी कांग्रेस!

कांग्रेस

राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को सामाजिक न्याय वाली पार्टी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि इसमें स्वाभाविकता नहीं है। यह एक कृत्रिम प्रयास है, जिसमें कामयाबी की गुंजाइश कम है। फिर भी कांग्रेस में चल रहे प्रयोगों और इसे सामाजिक न्याय वाली पार्टी बनाने के प्रयासों को देखना दिलचस्प है। यह प्रयास दो स्तरों पर हो रहा है। पहला, वैचारिक स्तर पर और दूसरा संगठन के स्तर पर। विचार के स्तर पर राहुल गांधी आक्रामक तरीके से भाजपा को काउंटर कर रहे हैं। भाजपा व आरएसएस को मनुवादी या मनुस्मृति को मानने वाली पार्टी ठहरा कर कांग्रेस को बहुजन की पार्टी बता रहे हैं। जाति जनगणना का श्रेय ले रहे हैं और आरक्षण बढ़ाने के सबसे बड़े पैरोकार बने हैं। वे सुप्रीम कोर्ट को निशाना बना रहे हैं और आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को समाप्त करने का ऐलान कर रहे हैं। उन्होंने संविधान बनाम मनुस्मृति की बहस बनवाई है, जिसमें उनकी सहयोगी पार्टियों के प्रवक्ता टेलीविजन की बहसों के दौरान मनुस्मृति के पन्ने फाड़ रहे हैं। कोई ढाई साल पहले राहुल ने भाजपा को टक्कर देने के लिए कांग्रेस का कायाकल्प करने और इसे सामाजिक न्याय की पार्टी बनाने का अभियान शुरू किया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस समय विपक्षी गठबंधन का हिस्सा थे और उन्होंने दिल्ली में राहुल व मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात में जाति गणना कराने, आरक्षण की सीमा बढ़ाने, संविधान पर खतरा बताने आदि का पाठ पढ़ाया था। उसके बाद वे खुद तो भाजपा के साथ चले गए और राहुल को सामाजिक न्याय की राजनीति करने के लिए छोड़ दिया।

एक बार राहुल के मन में सामाजिक न्याय की राजनीति का विचार बैठ गया तो उन्होंने अपनी पार्टी का पूरी संरचना बदले की शुरुआत कर दी। संयोग से अक्टूबर 2022 में अशोक गहलोत के इनकार के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए थे। इससे भी राहुल को एक दिशा मिली। उन्होंने कांग्रेस संगठन के पुराने स्वरूप को बदल कर दलित और पिछड़ों को संगठन में स्थान देना शुरू किया। इसमें थोड़ा समय लगा क्योंकि पुराना ढांचा तोड़ना और उसे बिल्कुल नया स्वरूप देना किसी के लिए आसान नहीं होता है। इस काम में राहुल को उनकी मां सोनिया गांधी का पूरा समर्थन मिला है। उन्होंने एक एक करके राज्यों में नेतृत्व बदलना शुरू किया। राष्ट्रीय स्तर पर भी पहले के मुकाबले पिछड़ी और दलित जातियों को ज्यादा महत्व दिया। अब यह नहीं कहा जा सकता है कि कांग्रेस का संगठन अगड़ी जातियों के नेताओं से भरा है। कांग्रेस में केंद्रीय संगठन में अगड़ी जातियों के नेता कम हो रहे हैं तो राज्यों में लापता होते जा रहे हैं।

कांग्रेस ने हाल के दिनों में जहां भी प्रदेश अध्यक्ष बदला है वहां अगड़ी जाति के अध्यक्ष को हटा कर पिछड़ा या दलित अध्यक्ष बनाया है। बिहार में अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह दलित समाज के राजेश राम अध्यक्ष बने हैं तो झारखंड में अगड़ी जाति के राजेश ठाकुर की जगह पिछड़ी जाति के केशव महतो कमलेश को अध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह ओडिशा में निरंजन पटनायक की जगह दलित समाज से आने वाले भक्त चरण दास प्रदेश अध्यक्ष बने हैं। महाराष्ट्र में पिछड़ी जाति के नाना पटोले हटे तो पिछड़ी जाति के ही हर्षवर्धन सपकाल को अध्यक्ष बनाया गया। मध्य प्रदेश में अगड़ी जाति के कमलनाथ की जगह पिछड़ी जाति के जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज के दीपक बैज को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह दिल्ली में अरविंदर सिंह लवली के इस्तीफे के बाद पिछड़ी जाति के देवेंद्र यादव को पार्टी की कमान सौंपी गई है। गुजरात में अगड़ी जाति के शक्ति सिंह गोहिल प्रदेश अध्यक्ष थे लेकिन दो सीटों का उपचुनाव हारने के बाद उनका इस्तीफा हो गया है और कहा जा रहा है कि वहां भी कोई पिछड़ी जाति का नेता अध्यक्ष बनेगा। हरियाणा में दलित नेता उदयभान प्रदेश अध्यक्ष हैं। राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा जाट हैं तो विधायक दल का नेता दलित समाज के टीकाराम जूली को बनाया गया है। कर्नाटक में पिछड़ी जाति के सिद्धारमैया, वोक्कालिगा समुदाय के डीके शिवकुमार और दलित जाति के जी परमेश्वरा के हाथ में राज्य की राजनीति है। कुछ राज्यों में अब भी अगड़ी जाति के अध्यक्ष बचे हैं लेकिन जल्दी ही उनमें से कुछ राज्यों में बदलाव होगा।

इसी तरह अगर कांग्रेस के केंद्रीय संगठन की बात करें तो शीर्ष पर मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, जो दलित समाज से आते हैं। हाल के दिनों में पार्टी ने पिछड़ी जातियों के दो बड़े नेताओं को महासचिव बनाया है और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी भी दी है। छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश  बघेल और राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को महासचिव बनाया गया है। कर्नाटक से आने वाले अल्पसंख्यक नेता सैयद नासिर हुसैन को भी महासचिव बनाया गया है।  मोहन प्रकाश, राजीव शुक्ला जैसे ब्राह्मण नेताओं की संगठन से छुट्टी हो गई है। कांग्रेस के 13 में से लगभग आधे यानी छह महासचिव दलित, पिछड़ा व अल्पसंख्यक हैं। इनमें दो दलित, कुमारी सैलजा और मुकुल वासनिक हैं। दो मुस्लिम, गुलाम अहमद मीर और सैयद नासिर हुसैन हैं। दो पिछड़े, भूपेश बघेल और सचिन पायलट हैं। बाकी एक तो प्रियंका गांधी वाड्रा हैं, जो जाति से ऊपर हैं। एक रणदीप सिंह सुरजेवाला हैं, जो जाट हैं और एक दीपा दासमुंशी हैं। इनके अलावा बचे हुए चार महासचिवों में से केसी वेणुगोपाल, जयराम रमेश, अविनाश पांडे तीन ब्राह्मण हैं और एक जितेंद्र सिंह राजपूत हैं। संसदीय नेताओं में भी राहुल गांधी लोकसभा में तो मल्लिकार्जुन खड़गे राज्यसभा में नेता हैं। कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्रियों में से एक रेड्डी, एक पिछड़ा और एक राजपूत हैं।

जाहिर है राहुल गांधी वैचारिक और सांगठनिक स्तर पर कांग्रेस को सामाजिक न्याय की पार्टी बनाने की जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं। इसी कोशिश के तहत वे कभी मोटर मैकेनिकों से मिलने जाते हैं तो कभी ट्रक डाइवरों से मिलते हैं। कभी किसानों से मिलने खेत में चले जाते हैं तो जूता सिलाई करने वाले मोची के साथ जाकर बैठते हैं तो कभी कुलियों से मिलते हैं। इन सबसे अच्छा ऑप्टिक्स बनता है। तस्वीर अच्छी बनती है। कांग्रेस के नेता और सोशल मीडिया में कांग्रेस के इकोसिस्टम के लोग इन तस्वीरों के इर्द गिर्द एक नैरेटिव बनाते हैं। राहुल को पिछड़े, दलितों का मसीहा बनाते हैं। लेकिन मुश्किल यह है कि राहुल अपनी पहचान का क्या करेंगे? उन्होंने कहा हुआ है कि वे दत्तात्रेय गोत्र के कौल ब्राह्मण हैं। क्या गांधी परिवार की इस पहचान लेकर वे पिछड़े, दलितों के मसीहा बन पाएंगे? ध्यान रहे इस देश में पिछड़ी जातियां कभी भी किसी अगड़ी जाति के नेता को अपना नेता नहीं मानती हैं। जैसे मुसलमान गैर मुस्लिम को नेता मान लेते हैं वैसे पिछड़े किसी गैर पिछड़े को नेता नहीं मानते हैं। कुछ दशक पहले तक दलित भी गैर दलित को अपना मसीहा मान लेते थे लेकिन अब वे भी नहीं मानते हैं। पिछड़ों और दलितों के पास अपने नेता हैं। फिर वे राहुल को नेता क्यों मानेंगे? क्या इसलिए वे जाति गणना की बात कर रहे हैं या आरक्षण बढ़ाने की बात करर रहे हैं? लेकिन यह बात को अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, एमके स्टालिन जैसे नेता भी कह रहे हैं।

यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि राष्ट्रीय स्तर पर राहुल का मुकाबला नरेंद्र मोदी से है, जो अति पिछड़ी जाति से आते हैं और उन्होंने हिंदुत्व की पहचान के ऊपर इसका आवरण चढ़ा कर देश के लोगों के सामने प्रस्तुत किया है। वे जाति गणना भी करा रहे हैं और उन्होंने आरक्षण के दायरे का विस्तार भी किया है। राहुल से अलग उन्होंने अगड़ी जाति से दुश्मनी का भाव नहीं पाला है, बल्कि उनके लिए भी 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया है। सो, भले राहुल दलित और पिछड़ी जातियों की कितनी भी बात करें अगर मुकाबला नरेंद्र मोदी से है तो मोदी का पलड़ा भारी होगा। हां, मोदी के बाद भाजपा का जो नेता होगा, उससे मुकाबला कैसा होगा, यह देखने वाली बात होगी।

लेकिन क्या तब तक राहुल गांधी इंतजार में बैठे रहेंगे? ऐसा नहीं लग रहा है। उन्होंने राज्यों में जो नेतृत्व परिवर्तन किया है उससे कांग्रेस को उम्मीद है। कांग्रेस को लग रहा है कि राज्यों के पिछड़े और दलित नेता वहां कांग्रेस को मजबूती दिलाएंगे। इस उम्मीद का आधार यह भी है कि राज्यों में भाजपा ने कमजोर नेताओं को आगे किया है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने मेरिट की बजाय निष्ठा के आधार पर नेता चुने हैं, जिनसे मुकाबला कांग्रेस नेताओं के लिए अपेक्षाकृत आसान है। अगर कांग्रेस का प्रयोग राज्यों में कामयाब होता है और जिन राज्यों में कांग्रेस बिल्कुल हाशिए पर जा चुकी है वहां उसकी वापसी होती है तो राष्ट्रीय राजनीति में भी कांग्रेस के लिए मौका बनेगा। भले पोस्ट मोदी राजनीतिक दौर में बने लेकिन बनेगी। उसके लिए जरूरी है कि राज्यों में राहुल का प्रयोग कामयाब हो। ओडिशा में भक्त चरण दास, बिहार में राजेश राम, झारखंड में केशव महतो कमलेश, मध्य प्रदेश में जीतू पटवारी, महाराष्ट्र में अभिषेक सपकाल, छत्तीसगढ़ में दीपक बैज, कर्नाटक में सिद्धारमैया, तेलंगाना में रेवंत रेड्डी, आंध्र प्रदेश में वाईएस शर्मिला जैसे नेता कांग्रेस को मजबूत करते हैं तो उसका लाभ राहुल को भी मिलेगा। हालांकि इन राज्यों में कांग्रेस को अलग अलग चुनौतियों का सामना करना है।

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