देश की वित्तीय राजधानी मुंबई में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने ‘मराठी विजय रैली’ की। इस रैली पर पूरे देश की नजर थी क्योंकि इससे महाराष्ट्र की राजनीति में एक बदलाव का संकेत मिल रहा था। कम से कम मुंबई की राजनीति तो निश्चित रूप से बदलती दिख रही है। इस राजनीतिक बदलाव के केंद्र में भाषा का विवाद है। यह बहुत पुराना विवाद है। कम से कम 75 साल पहले जब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पहले उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भाषा के नाम पर राज्यों के विभाजन की मांग ठुकरा दी थी और मराठी नेताओं ने इसके खिलाफ एक संगठन बना कर लड़ाई शुरू करने का ऐलान किया था। शिव सेना के संस्थापक बाल ठाकरे के पिता प्रबोधंकर ठाकुर उस संगठन के नेताओं में से एक थे। बाद में इन लोगों को कामयाबी मिली और भाषा के आधार पर राज्यों का विभाजन हुआ। अब ठाकरे परिवार की तीसरी पीढ़ी मराठी भाषा की लड़ाई लड़ रही है।
किसी जमाने में यह लड़ाई सैद्धांतिक और अस्मिता से जुड़ी हुई थी। लेकिन अब इसमें से वो सारे तत्व गायब हो गए हैं। अब भाषा की लड़ाई राजनीतिक प्रासंगिकता बचाने की लड़ाई बन गई है। पिछले दो दशक में महाराष्ट्र की राजनीति में हाशिए से भी बाहर धकेल दिए गए राज ठाकरे को पार्टी और परिवार की राजनीति बचानी है तो शिव सेना के विभाजन और विधानसभा चुनाव में लगे झटके से उबरने के लिए उद्धव ठाकरे को भी ऐसे किसी भावनात्मक मुद्दे की जरुरत है। दोनों को यह मौका दिया महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़नवीस की सरकार ने, जिन्होंने हिंदी को पहली से पांचवीं कक्षा तक अनिवार्य करने का फैसला किया। हालांकि बाद में उनकी सरकार ने फैसला रद्द कर दिया लेकिन तब तक ठाकरे बंधुओं को अपने पूर्वजों की लड़ाई की याद आ गई थी और उन्होंने भाषा का मुद्दा उठा दिया था।
यह हैरान करने वाली बात है कि फड़नवीस सरकार ने हिंदी की अनिवार्यता का फैसला क्यों किया? क्या संघ का दबाव था या दिल्ली को अपनी ताकत दिखानी थी? ध्यान रहे भाषा के आधार पर विभाजन नहीं करने के नेहरू और पटेल के फैसले को आरएसएस के तत्कालीन प्रमुख माधव सदाशिवराव गोलवलकर का भी समर्थन हासिल था। हालांकि बाद में संघ और दिल्ली की सत्ता दोनों को भाषायी आधार पर विभाजन की मांग करने वालों को सामने झुकना पड़ा था। बहरहाल, चाहे जिसके कहने पर फड़नवीस ने फैसला किया और बदला हो लेकिन उससे राजनीति के नए दौर की शुरुआत हो गई। इसे शिव सेना के एक होने और भाजपा की ओर लौटने की शुरुआत भी मान सकते हैं।
बहरहाल, उद्धव और राज ठाकरे की ‘मराठी विजय रैली’ में भाषा के आधार पर गुंदागर्दी का गौरवगान हुआ। उद्धव ठाकरे ने कहा कि अगर मराठी भाषा के लिए सम्मान की बात करना गुंडागर्दी है तो वे गुंडा हैं। इसी बात को थोड़ा ज्यादा विस्तार देकर राज ठाकरे ने अपनी बात कही। उन्होंने अपने समर्थकों को भाषा के नाम पर गुंडागर्दी करने की सलाह देते हुए कहा कि अगर वे किसी को कान के नीचे बजाएं यानी उसको मारें तो उसकी वीडियो नहीं बनाएं। इसका मतलब है कि मारपीट करने और गुंडागर्दी करने में कोई समस्या नहीं है, समस्या उसकी वीडियो से है क्योंकि वीडियो वायरल होने पर देश भर में इस पर प्रतिक्रिया होती है। कुछ दिन पहले ही राज ठाकरे के गुंडों ने गुजरात के एक दुकानदार के मराठी नहीं बोल पाने के कारण उसके साथ मारपीट की थी। उद्धव ठाकरे की पार्टी के एक नेता का भी ऐसा ही एक वीडियो सामने आया था। इसके बाद उद्धव और राज ठाकरे का भाषण हुआ है। दोनों ने गुंडागर्दी को सांस्थायिक रूप दिया है। उन्होंने भाषा के सम्मान के नाम पर गुंडागर्दी को जायज ठहराया।
इसे लेकर देश के अलग अलग राज्यों के कई व्यक्तियों और समूहों की ओर से सलाह दी जा रही है कि भाषा के नाम पर यह गुंडागर्दी नहीं होनी चाहिए। लेकिन इसमें सबसे दिलचस्प सलाह भाजपा के नेता और फड़नवीस सरकार के मंत्री नीलेश राणे ने दी। उन्होंने कहा कि अगर ठाकरे बंधुओं में हिम्मत है तो मोहम्मद अली रोड पर जाकर मुसलमानों पर गुंडागर्दी दिखाएं क्योंकि वे भी मराठी नहीं बोलते हैं। यह भाषा के आधार पर होने वाली गुंडागर्दी के ऊपर धर्म के आधार पर होने वाली गुंडागर्दी को ज्यादा महान बताने की सोच का प्रतीक है। नीलेश राणे को लग रहा है कि मराठी नहीं बोलने वाले हिंदुओं की बजाय अगर मराठी नहीं बोलने वाले मुसलमानों के साथ मारपीट हो तो वह न्यायसंगत है।
ध्यान रहे इस नए भाषा विवाद से पहले या उससे ज्यादा पूरे देश में धर्म के आधार पर गुंडागर्दी हो रही है और उस पर गर्व किया जा रहा है। सावन का महीना शुरू होने वाला है और दिल्ली, एनसीआर से होकर कांवड़ यात्रा गुजरने वाली है। उससे पहले कांवड़ के रास्ते में दुकानदारों के खिलाफ गुंडागर्दी शुरू हो गई है। सरकार की चेकिंग चल रही है लेकिन उससे अलग बिना किसी कानूनी अधिकार के गुंडों का गिरोह दुकानदारों से नाम पूछ रहा है, उनकी आईडी चेक कर रहा है, उनके यूपीआई लिंक पर पेमेंट के जरिए असली नाम चेक किया जा रहा है और दुकानें बंद करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यह धर्म के आधार पर होने वाली गुंडागर्दी का एक नमूना है। पिछले ही महीने उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में गोमांस के शक में एक भीड़ ने चार लोगों को बुरी तरह से पीटा। उनकी गाड़ी पलट दी और उसमें आग लगा दी। बाद में पता चला कि वे गोमांस लेकर नहीं जा रहे थे। इस सिलसिले में तीन लोग गिरफ्तार किए गए। लेकिन व्यापक हिंदू समाज उनको अपराधी या गुंडा नहीं मानता है। वे छूटेंगे तो नायक की तरह उनका स्वागत होगा। ठीक वैसे ही जैसे भाषा के आधार पर मारपीट करने वाले गुंडों का सम्मान मुंबई में किया जाता है।
भाषा और धर्म की तरह जाति के आधार पर गुंडागर्दी का भी गौरवगान इन दिनों खूब हो रहा है। उत्तर प्रदेश के इटावा में कथा बांचने वाले दो लोगों के साथ इसलिए मारपीट हुई क्योंकि वे गैर ब्राह्मण थे। बाद में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उनका सम्मान किया क्योंकि वे यादव थे। इस घटना के बाद बिहार के एक गांव के बाहर कुछ लोगों ने बोर्ड लगा दिया कि इस गांव में ब्राह्मणों का पूजा पाठ कराना सख्त मना है। सोचें, क्या ब्राह्मण खुद से घर घर घूम कर पूजा पाठ कराते हैं, जो उनको रोकने का बोर्ड लगाया गया? अनेक वस्तुएं और सेवाएं हैं, जो घर घर घूम कर पहुंचाई या बेची जाती हैं लेकिन पूजा पाठ उनमें से नहीं है।
यजमान के बुलावे पर ही पंडित उनके यहां पूजा पाठ कराने जाते हैं। फिर भी जाति के आधार पर गुंडागर्दी इसलिए क्योंकि उससे राजनीति सधती है। जैसे भाषा और धर्म से सधती है वैसे ही जाति से भी सधती है। एक पार्टी की महिला प्रवक्ता ने मीडिया के सामने ‘मनुस्मृति’ के पन्ने फाड़े क्योंकि उसको जल्दी से जल्दी अपनी पार्टी के नेताओं की नजरों में चढ़ना है, अपनी आक्रामकता से पिछड़ा पहचान को बुलंद करना है और कोई पद या चुनाव में टिकट आदि हासिल करना है। बहरहाल, जाति के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले तमाम लोग अपनी अपनी जातियों के नायक हैं।
धर्म, जाति और भाषा के आधार पर गुंडागर्दी करने वालों को इन दिनों फायर ब्रांड नेता का नाम दिया जाता है। हर पार्टी के अपने अपने फायर ब्रांड नेता हैं, जो जाति, भाषा या धर्म के नाम पर भड़काऊ भाषण देते हैं, हिंसा के लिए लोगों को उकसाते हैं, खुद भी मारपीट करते हैं और समाज को बांटते हैं और अपना उल्लू सीधा करते हैं। अपनी हिंसा का गौरवगान करते हैं और दूसरी ओर जनता उनको अपनी भाषा का रहनुमा, अपनी जाति का मसीहा और अपने धर्म का रक्षक मान कर उनकी जय जयकार करती है।