Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

घाटी की सीटों से भाजपा की तौबा हैरानी वाली!

लोकसभा चुनाव

Lok Sabha Elections 2024

कश्मीर की तीनों लोकसभा सीटों पर अपना कोई भी प्रत्याशी चुनाव में खड़ा न करके भारतीय जनता पार्टी पार्टी ने कश्मीर के लोगों को पार्टी के साथ जोड़ने की अपनी ही तमाम कोशिशों पर खुद ही पानी फेर दिया है। यही नही उसके इस निर्णय से कहीं न कहीं उसके दावों पर भी सवाल उठने लगे हैं। कश्मीर घाटी में श्रीनगर, बारामुला और अनंतनाग के रूप में कुल तीन लोकसभा क्षेत्र हैं। पिछले लगभग सभी लोकसभा चुनाव में पार्टी कश्मीर घाटी की सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारती रही है।

भारतीय जनता पार्टी ने एक हैरान कर देने वाला फैसला लेते हुए कश्मीर घाटी की तीनों लोकसभा सीटों-श्रीनगर, बारामूला और अनंतनाग के लिए अपना कोई भी उम्मीदवार चुनाव में नही उतारा है। यह एक ऐसा निर्णय है जिससे भारतीय जनता पार्टी के कई विरोधाभास तो उजागर हुए ही हैं वहीं आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति में इसका दूरगामी प्रभाव पड़ने वाले हैं। 

भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में पांव जमाने की कोशिशें कर रही है। पार्टी के लिए कश्मीर प्राथमिकता पर रहा है और पार्टी व केंद्र सरकार की तरफ से लगातार यह दावे भी किए जाते रहे हैं कि अनुच्छेद-370 को हटाए जाने के बाद से हालात बहुत तेज़ी के साथ सुधरे हैं। यह भी दावा किया जाता रहा है कि कश्मीर में विकास की एक नई गाथा लिखी जा रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश भर की तरह कश्मीर में भी बेहद लोकप्रिय हैं। 

कश्मीर को लेकर भारतीय जनता पार्टी की गंभीरता इससे भी पता चलती है कि  16 मार्च को लोकसभा चुनाव की घोषणा होने से ठीक पहले, सात मार्च को  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी  ने श्रीनगर में एक रैली को संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने अपने दौरे के दौरान 6400 करोड़ की लागत की 53 विभिन्न परियोजनाओं का ऐलान भी किया था। प्रधानमंत्री का यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री पहली बार श्रीनगर आए थे। प्रधानमंत्री के इस दौरे के बाद ही यह कयास लगने लगे थे कि भारतीय जनता पार्टी इस बार के लोकसभा चुनाव को लेकर कश्मीर में कोई बड़ा राजनीतिक दांव खेल सकती है।

लेकिन कश्मीर की तीनों लोकसभा सीटों पर अपना कोई भी प्रत्याशी चुनाव में खड़ा न करके भारतीय जनता पार्टी पार्टी ने कश्मीर के लोगों को पार्टी के साथ जोड़ने की अपनी ही तमाम कोशिशों पर खुद ही पानी फेर दिया है। यही नही उसके इस निर्णय से कहीं न कहीं उसके दावों पर भी सवाल उठने लगे हैं। कश्मीर घाटी में श्रीनगर, बारामुला और अनंतनाग के रूप में कुल तीन लोकसभा क्षेत्र हैं। पिछले लगभग सभी लोकसभा चुनाव में पार्टी कश्मीर घाटी की सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारती रही है। खराब से खराब हालात में भी घाटी की तीनों सीटों  पर पार्टी की ओर से उम्मीदवार चुनाव लड़ते रहे हैं। 

दिया गया था आरक्षण

सबसे अधिक हैरानी अनंतनाग लोकसभा सीट को लेकर है। इस सीट के लिए भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार की ओर से बकायदा एक लंबी-चौड़ी कवायद की गई थी। हाल ही में हुए परिसीमन में कश्मीर घाटी की अनंतनाग लोकसभा सीट में जम्मू संभाग के दो जिलों – पुंछ व राजौरी को भी शामिल कर दिया गया   गया था। यह एक बेहद अहम फैसला था जिसमें सांस्कृतिक, भाषाई व भौगोलिक बाधाओं के बावजूद दो हिस्सों को एक ही लोकसभा सीट में सम्मिलित किया गया। 

यही नही भाषा के आधार पर पुंछ व राजौरी की अधिसंख्य पहाड़ी भाषी आबादी को अनुसूचित जाति का दर्जा व आरक्षण देकर भारतीय जनता पार्टी द्वारा जो राजनीतिक पासा फेंका गया था उससे भी यह पक्के तौर पर माना जा रहा था कि भारतीय जनता पार्टी कम से कम अनंतनाग लोकसभा सीट पर लोकसभा चुनाव ज़रूर लड़ेगी। इसी साल सात फरवरी को लोकसभा में पहाड़ी भाषी लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने संबंधी विधेयक संसद में पारित किया गया था। 

उल्लेखनीय है कि पहाड़ी भाषी लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे थे। भारतीय जनता पार्टी ने जब इस मांग को स्वीकार करते हुए पहाड़ी भाषियों को अनुसूचित जनजाति व आरक्षण का दर्जा दिए जाने की घोषणा की थी तो पार्टी के आलोचक तक मानने लगे थे कि पार्टी ने एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है और एक बड़ी आबादी को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की है।

पहाड़ी-भाषी लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने में हालांकि बड़ा जोखिम भी था क्योंकि गुज्जर-बक्करवाल समुदाय लगातार पहाड़ी-भाषी लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने का विरोध करता आ रहा था। मगर बावजूद इसके भारतीय जनता पार्टी ने पहाड़ी भाषी लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर एक बड़ा कदम उठाया था। अक्तूबर 2022 में बकायदा राजौरी में एक विशाल रैली में आकर जब गृहमंत्री अमित शाह ने पहाड़ी भाषी लोगों की मांग को मानने का औपचारिक ऐलान किया तो पूरे राजौरी-पुंछ जिलों के साथ-साथ कश्मीर घाटी के पहाड़ी-भाषी इलाकों में कई दिनों तक जश्न का माहौल बना रहा था।

 पहाड़ी-भाषियों के लिए अनुसूचित जनजाति व आरक्षण दिए जाने की घोषणा कर भारतीय जनता पार्टी ने उस एक बड़े वर्ग को साधने की कोशिश की थी जिनके लिए पार्टी लंबे समय से राजनीतिक रूप से अछूत मानी जाती थी। अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने से जो माहौल बना उसकी बदौलत पार्टी को भी यह आस बंधी थी कि बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता भी पार्टी की तरफ झुकेंगे। 

यह चर्चा भी आम थी कि पार्टी किसी हिन्दू को अनंतनाग से चुनाव मैदान में उतार कर देश भर में एक बड़ा संदेश देना चाहती है। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष रविन्द्र रैणा की अनंतनाग क्षेत्र में सक्रियता ने इन चर्चाओं को बल भी दिया और लगभग मान भी लिया गया था कि रैणा ही उम्मीदवार होंगे। 

मगर पहाड़ी-भाषियों को अनुसूचित जनजाति व आरक्षण का दर्जा दिए जाने जैसा बड़ा व दूरगामी परिणाम देने वाला निर्णय लेने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी द्वारा अनंतनाग लोकसभा सीट से भी किसी उम्मीदवार को न उतारा जाना पार्टी के समर्थकों तक के भी गले नही उतर रहा है। 

राजौरी-पुंछ के मतदाता उलझन में

पहाड़ी-भाषियों को अनुसूचित जनजाति व आरक्षण का दर्जा मिलने से जो खुशी की लहर राजौरी-पुंछ जिलों के लोगों में थी उसे लोकसभा चुनाव में व्यक्त करने को लेकर मतदाता परेशान है। केंद्र द्वारा उन्हें अनुसूचित जनजाति व आरक्षण का दर्जा दिए जाने के कारण पहाड़ी भाषियों का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की ओर दिखाई दे रहा था। दर्जा मिलने के बाद दोनों ज़िलों में पहाड़ी आबादी एकाएक भारतीय जनता पार्टी की मुरीद हो गई थी। बड़ी संख्या में विभिन्न दलों के पहाड़ी नेता भी पहाड़ियों को दर्जा मिलने के बाद अपने-अपने दलों को छोड़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़ने लगे थे।

मगर बदली राजनीतिक परिस्थितियों में सबसे अधिक उलझन में अब राजौरी व पुंछ ज़िलों के मतदाता ही हैं। भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार मैदान में नही होने के कारण पहाड़ी भाषी पसोपेश में है। राजौरी-पुंछ जिलों के लोगों की दिक्कत यह है कि कश्मीर केंद्रीत राजनीतिक दलों के साथ उनका कोई खास लगाव नही है, इसका बड़ा कारण यह है कि पहाड़ी भाषियों को अनुसूचित जनजाति व आरक्षण का दर्जा दिए जाने का कश्मीर केंद्रीत राजनीतिक दलों की ओर से विरोध किया जाता रहा है। 

लेकिन अब दोनों ज़िलों के मतदाताओं के पास कोई विकल्प नही है, मजबूरी में कश्मीर केंद्रित राजनीतिक दलों में से किसी के लिए ही उन्हें मतदान करना पड़ेगा क्योंकि भारतीय जनता पार्टी की तरह अनंतनाग लोकसभा सीट से कांग्रेस ने भी अपना कोई उम्मीदवार खड़ा नही नही किया है। कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस को अपना समर्थन दे रखा है।

उल्लेखनीय है कि परिसीमन होने के बाद राजौरी व पुंछ ज़िले अब कश्मीर घाटी की अनंतनाग लोकसभा सीट का हिस्सा बन चुके हैं। हालांकि दोनों ज़िलों के लोग परिसीमन से हुए बदलाव से खुश नहीं हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि भौगोलिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, व्यापारिक व प्रशासनिक दृष्टि से राजौरी व पुंछ के लोग जम्मू संभाग के साथ जुड़े हुए हैं। दोनों ज़िलों के लोगों का कश्मीर के मुकाबले जम्मू के साथ एक स्वभाविक जुड़ाव है और अपनी रोज़मर्रा जरूरतों के लिए भी जम्मू पर निर्भर हैं।

ऐसे में सिर्फ लोकसभा क्षेत्र के लिए राजौरी व पुंछ को कश्मीर घाटी की अनंतनाग सीट से जोड़े जाने से दोनों ज़िलों के लोग अपने आप को राजनीतिक रूप से कमजोर महसूस कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि अनंतनाग लोकसभा सीट के साथ जोड़े जाने से उनके साथ राजनीतिक रूप से अन्याय हुआ है और इस वजह से वे राजनीतिक रूप से कमजोर हुए हैं। राजौरी व पुंछ के लोगों की राजनीतिक आकांक्षाएं जम्मू संभाग के साथ जुड़े रहने से ही पूरी होती रही हैं। हालांकि यह भी सही है कि परिसीमन के समय राजौरी-पुंछ के लोगों ने अनंतनाग लोकसभा सीट के साथ जोड़े जाने का बहुत ताकत के साथ विरोध दर्ज नही करवाया था। 

दरअसल परिसीमन का विरोध न करने की एक बड़ी वजह पहाड़ी भाषियों को केंद्र सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाना था। उल्लेखनीय है कि सबसे अधिक पहाड़ी भाषी लोग राजौरी व पुंछ ज़िलों में ही रहते हैं। अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से इसी क्षेत्र के लोगों को सबसे अधिक लाभ मिलने वाला है।  लेकिन अब जब कि वास्तविक राजनीति से सामना हो रहा तो राजौरी व पुंछ के लोग राजनीतिक तौर पर कश्मीर घाटी के आगे अपने आप को कमजोर महसूस कर रहे हैं।  

अनंतनाग लोकसभा क्षेत्र के समीकरण भी ऐसे हैं कि राजौरी-पुंछ के लोग कश्मीरी भाषियों के आगे अल्पसंख्या में हैं। कुल 18 विधानसभा क्षेत्रों में फैली अनंतनाग लोकसभा सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 18.29 लाख है। क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कश्मीर संभाग के तीन ज़िलों की कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 12 लाख के करीब है जबकि राजौरी व पुंछ ज़िलों के मतदाताओं की संख्या छह लाख के आसपास ही है। इन छह लाख में भी पहाड़ी भाषी मुस्लिम, हिन्दू व सिख वर्ग के साथ-साथ गुज्जर समुदाय भी बड़ी संख्या में है। ऐसे में राजौरी व पुंछ के लोगों को डर है कि अनंतनाग लोकसभा सीट के साथ जुड़ने से उन्हें कश्मीर की राजनीतिक शक्ति व दबदबे का शिकार होना पड़ेगा।

Exit mobile version