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गुमनाम चेहरों पर दाँव… क्या किनारे लग पाएगी नाव.?

भाजपा और कांग्रेस

भोपाल। हमारे प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र भाई मोदी का ‘कर्मयोग’ अब धीरे-धीरे सबके सामने आने लगा है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी संगठन से लेकर राज्य व केन्द्र सरकारों के कामकाज दिल्ली के मार्गदर्शन पर ही शुरू होने जा रहे है, अर्थात् देश धीरे-धीरे ‘एकतंत्र’ की ओर बढ़ता जा रहा है, इसी के चलते मोदी जी राजनीति में नए-नए प्रयोग भी शुरू कर रहे है, जिसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में नए गुमनाम चेहरों को राज्यों की बागडोर सौंपना। अर्थात् अब देश की राजनीति और कार्यनीति में वही होने वाला है जो आदरणीय मोदी जी चाहेंगे।

अब यहाँँ एक अहम् सवाल यह राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा में है कि क्या मोदी जी का नए चेहरों को कमान सौंपने का प्रयोग सफल सिद्ध होगा और क्या राज्यों के वे वरिष्ठ राजनेता जो अब तक राज्यों में सर्वेसर्वा बने हुए थे, वे अपने हाथ बांधकर और मुखड़ों पर पट्टी लगाकर बैठे रहेंगे या इनका अंर्तद्रोह खुलकर सामने आएगा?
….फिर यहां एक अहम् सवाल यह भी कि क्या अब इस तरह देश की शासन प्रणाली एकदम बदल दी जाएगी? और राज्यों के मुख्मंत्रीगण ‘सिंहासन बत्तिसी’ के अंग बने रहेगें?

खैर, इन सब सवालों के जवाब तो समय-समय पर मिलते ही रहेगें किंतु सबसे अहम् मुद्दा यही है कि राज्यों में अब वहीं कुछ होगा, जो दिल्ली का ‘तख्त’ चाहेगा, राज्यों के मुखिया अपनी मनमर्जी से कुछ भी नहीं कर पाएगें और ये सभी केन्द्र की कठपुतली की तरह काम करेगें। ….और राज्यों के वरिष्ठ नेताओं का भी वही हश्र होने वाला है, जो पार्टी संगठन में अडवानी-मुरली मनोहर जोशी का हुआ था। इसी के चलते अब मान्यवर मोदी जी ने नए-नए प्रयोग शुरू किए है, जिसका ताजा उदाहरण वरिष्ठों को दरकिनार कर नए चेहरों पर दांव। अब यह प्रयोग 2024 के आईनें में कितना खूबसूरती दिखाता है या बदनसीब बनकर उभरता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु यह प्रयोग तो है और ‘‘तीर लग जाए तो तीर वर्ना तुक्का’’।

लेकिन अब धीरे-धीरे यह भी स्पष्ट होने लगा है अब देश में अगले तीन महीनों तक चुनावी राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं होना है और जहां तक राज्यों का सवाल है, वह तो मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के चुनावों के बाद देखने में आ ही रहा है, नए चेहरों पर नित नए प्रयोग। अब राजनीतिक क्षेत्रों में चिंता इस बात की भी है कि मोदी जी द्वारा दरकिनार किए जा रहे वरिष्ठ नेता चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेगें या अपने अनुकूल समय का इंतजार करेंगे, अथवा मौजूदा माहौल या परिस्थिति के सामने आत्म समर्पण कर देगें? इस सवाल का जवाब भी भविष्य के गर्भ में है।

हाँ…, यह अवश्य है कि दरकिनार किए गए नेताओं की आत्म चिंतन शक्ति बढ़ रही है और उनमें धीरे-धीरे विद्रोह क्षमता का भी विस्तार हो रहा है, वे अब राजनीतिक घटनाओं व नेतृत्व की गतिविधि पर तीखी नजर भी रखने लगे है, यही नहीं मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ के दरकिनार किए गए वरिष्ठ नेताओं में आपसी सुगबुहाट भी शुरू हो गई है, फिलहाल इस सुगबुहाट को विद्रोह की श्रेणी में तो नहीं रखा जा रहा है, किंतु इसे ‘चिंगारी’ अवश्य कहा जा सकता है और साथ ही राजनीतिक प्रेक्षकों की तीक्ष्ण दृष्टि नित नए किए जा रहे राजनीतिक टोटकों पर भी है और यह जानने की भी तीव्र प्रतीक्षा है कि मोदी जी का ‘नए चेहरों’ वाला दांव 2024 में क्या गुल खिलाता है, उनकी नाव पार लगाता है या मझधार में डुबाता है?

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