ऐसा नहीं है कि दुनिया में स्वयं सर्वसत्ता की आकांक्षा रखने वाले ट्रंप ही अकेले राष्ट्राध्यक्ष हैं। रूस में पुतिन, इजरायल में नेतन्याहू, ईरान में अली खामेनेई, यूक्रेन में जेलेंस्की, चीन में शी जिनपिंग, उत्तर कोरिया में किम जोंग उन और भारत में मोदी ऐसे ही नेता हैं जो सर्वसत्ता की आकांक्षा में अपने ही लोगों को झुलसने दे रहे हैं।
आज दुनिया जिस दौर से गुजर रही है उसमें कई देश और उनमें बसने वाला समाज भयभीत व भौचक्का होकर दर्शक बना दिया गया हैं। परमाणु शक्ति बने देश, युद्ध को परास्त करने के लिए युद्ध कर रहे हैं। महाशक्ति देशों की सत्ता ने समाज को संवादहीन सुगबुगाहट में छोड़ दिया है। टीवी पर युद्ध ही देखे जा रहे हैं। और उसके सत्य-असत्य से ही मनोरंजन की आशा भी जगाई जा रही है। आज इन युद्धों का सत्य जब तक पानी भरता है तब तक असत्य की बाड़ सब कुछ बहा देती है।
सत्ता के इस खेल में जिस समाज को खोना-पाना है उस समाज को सिरे से, सत्ता के ये सिरफिरे नजरअंदाज करते आए हैं। रूस-यूक्रेन के बीच में हुए भारत-पाक संघर्ष विराम के बाद अब इजरायल-ईरान युद्ध छिड़ गया है। क्या बनावटी बुद्धिमता के प्रकोप ने अपनी साधारण बुद्धिमता को भी ग्रहण लगा दिया है?
तो हर तरह से एक-दूसरे के आसपास होते हुए भी दुनिया आज साधारण समझ से इतनी दूर क्यों लग रही है? आज दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर खड़ा देखा जा रहा है। क्या इसको महाशक्ति हुए देशों का परमाणु पराक्रम भर माना जाए या महान बनने की कुश्ती का दंगल? या फिर महाशक्ति देशों के स्वयंभू नेताओं की सर्वसत्ता के लिए पंजा लड़ाना भर माना जाए? अणुशक्ति बने देश किस अधिकार से ईरान को अणुशक्ति बनने से रोक सकते हैं? या ऐसे देशों की सत्ता पर जो सिरफिरे बैठे हैं, क्या अमेरिका सिर्फ उनका दादा बनाना चाहता है? सूचना प्रौद्योगिकी के समय में ऐसे सवालों का जवाब मिलना आज मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी लग रहा है।
आज हर बेगाने व्यापार, लड़ाई या युद्ध के बीच में अब्दुल्लाह दिवाना बने अमेरिकी राष्ट्रपति खड़े देखे जा सकते हैं। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ के नारे से लोगों का दिल और वोट जीतने वाले डोनाल्ड ट्रंप दुनिया की सत्ता में खुद को ही ग्रेट बनाने में लगे हैं। ट्रंप के ‘मागा’ की माया, दुनिया के लोगों के लिए जी का जंजाल बनी है। सर्वसत्ता के लिए सुधबुध खो बैठे बेलगाम हाथी की तरह ट्रंप दुनिया में अपनी वाली, या मनमानी करने पर उतारू हैं।
सत्ता में आने के बाद एक दिन में रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करने का दावा करने वाले ट्रंप भारत-पाक सीजफायर कराने के लिए पन्द्रह बार जिम्मेदारी ले चुके हैं। अशांत भाव और असत्य भाषा लिए ट्रंप खुद को दुनिया में शांति-दूत कहलवाना चाहते हैं। अपनी महानता जताने में बाकी दुनिया को कुछ न समझने की भूल कर रहे हैं। क्यों सर्वसत्ता का जो दंभ दर्शाया जा रहा है उसके परिणाम खुद अमेरिका और पूरी दुनिया को भुगतने नहीं पड़ेंगे?
ट्रेड के भूखे ट्रंप बार-बार दुनिया में टैरिफ वॉर दोहरा व दर्शा रहे है। अमेरिका के लोग तो अमेरिका के फिर से महान हो जाने के लिए ट्रंप के झांसे में आए। और दुनिया भर के देशों को ट्रेड व व्यापार के नाम पर बहलाना चाहते हैं या फिर मिसाइल के नाम पर धमकाने में लगे हैं। भुगतभोगी देशों के राष्ट्राध्यक्ष न तो ट्रंप को चुप करा पाए हैं और न ही औकात दिखाने की हिम्मत जुटा पाए हैं। ट्रंप के हर तरह के बड़बोलेपन से अनेक देश त्रस्त हैं। आज डोनाल्ड ट्रंप स्वयं की सर्वसत्ता से अभिभूत दुनिया के लोकप्रिय नेता होने को लालायित हैं। क्या आज लोक भी समाजोन्मुखी होने की बजाए सत्तान्मुखी हुआ है?
आज ऐसा नहीं है कि दुनिया में स्वयं सर्वसत्ता की आकांक्षा रखने वाले ट्रंप ही अकेले राष्ट्राध्यक्ष हैं। रूस में पुतिन, इजरायल में नेतन्याहू, ईरान में अली खामेनेई, यूक्रेन में जेलेंस्की, चीन में शी जिनपिंग, उत्तर कोरिया में किम जोंग उन और भारत में मोदी ऐसे ही नेता हैं जो सर्वसत्ता की आकांक्षा में अपने ही लोगों को झुलसने दे रहे हैं। इसलिए ही अमेरिका को फिर से महान बनना है। रूस को पुराना वैभव पाना है। इजराइल को अस्तित्व बचाना है। ईरान को अणुशक्ति बनना है। यूक्रेन को सीमा बचानी है। चीन व उत्तरी कोरिया को महाशक्ति होना है। और भारत को हिन्दूराष्ट्र होना है। इन सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों की महत्वाकांक्षा में इनका समाज और इनके लोग समानता, सम्मान व सद्भाव के लिए तरसने पर मजबूर हैं।
आज जैसा दूल्हा, वैसी ही बरात है। ऐसे युद्धों में समाज को नेताओं की सर्वसत्ता की ललक को समझना होगा। समाजहित समझाना होगा।