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राजनीति का नया इश्तिहार : परिवार पर वार…!

Lok Sabha election 2024

Lok Sabha election 2024

भोपाल।अपने भारत के राजनीतिक दलों की अग्नि परीक्षा की तिथियां अगले सप्ताह घोषित हो जाएगी, किंतु देश का आम मतदाता आज के राजनेताओं के नए-नए चुनावी पैंतरों और दांवों को लेकर आश्चर्य चकित है, उसे सबसे बड़ा आश्चर्य इस बात को लेकर है कि आजादी के बाद से लेकर अब तक के पचहत्तर सालों में जो नहीं हुआ, वह आज के राजनेता करने के मंसूबे बांध रहे है, अर्थात् अब तक के चुनाव आदर्श चुनाव संहिता के दायरे में लड़े जाते रहे है, किंतु अब न तो राजनीति में कोई ‘आदर्श’ रहा न ही चुनावों में, यही नहीं अब तो चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भी ऊंगलियां उठाई जाने लगी हैI Lok Sabha election 2024

दस साल बाद भी विमान लापता है!

जिस चुनाव आयोग को न्याय पालिका का दर्जा देकर निष्पक्ष माना जाता रहा, उस पर भी अब राजनीतिक हाथों में खेलने व ‘सत्ता’ के अनुरूप फैसले करने के गंभीर आरोप लगाए जाने लगे है, यह स्थिति पिछले कुछ वर्षों से ही नजर आ रही है, अर्थात् राजनीति व उसके संचालकों ने सत्ता की खातिर वह सब करना शुरू कर दिया है, जो हमारे पूर्वज नेताओं ने कभी नही किया।

हमारे देश की अब तक की यह राजनीतिक परम्परा रही है कि चुनाव हमेशा एक आचार संहिता के दायरें में रहकर लड़े गए और चुनाव के बाद आपसी वैमनस्या खत्म कर दिए जाते थे, किंतु अब इससे ठीक उल्टा होने लगा है, राजनेता स्थाई दुश्मनी पालकर उसी के अनुरूप व्यवहार करने लगे है और यही नहीं, हद तो यह हो गई कि अब राजनेताओं पर व्यक्तिगत व पारिवारिक हमले किए जाने लगे है, जिसका ताजा उदाहरण वरिष्ठ राजनेता लालू प्रसाद यादव द्वारा प्रधानमंत्री मोदी जी पर किया गया पारिवारिक हमला है, क्या विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र की राजनीति आज इस स्तर पर पहुंच गई है? Lok Sabha election 2024

….और सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि कृत्यों पर जिसे गंभीर आत्म चिंतन करना चाहिए वे अपनी तिकड़मों में व्यस्त है और देश का आम वोटर इन कृत्यों पर दुःख व्यक्त कर रहा है। यह स्थिति तभी पैदा होती है जब राजनीति पर कुर्सी हावी हो जाती है और अब हमारे देश में भी ऐसा ही कुछ लगने लगा है, यहां भी अब राजनेता अपनी सारी मर्यादाएंे ताक पर रखकर सिर्फ कुर्सी की दौड़ में ही अपनी सारी शक्ति खर्च कर रहे है, इसी का परिणाम है कि आज के बुद्धिजीवी मौन दर्शक मतदाताओं की राजनीति व राजनेताओं दोनों के प्रति धारणा बदल रही है, जो देश के लिए ठीक नहीं कही जा सकती। आज की राजनीति सिद्धांतों पर आधारित नहीं रह कर व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं की राजनीति बनकर रह गई है।

एक साथ चुनाव,आम सहमति जरूरी

आज की राजनीति का एकमात्र उद्देश्य लक्ष्य केवल व केवल सत्ता प्राप्ति ही रह गया है और इसी उधेड़बुन में राजनीतिक दल उसके सर्वेसर्वा अपना समय गुजारने लगे है। उन्हें अब न तो देश की कोई चिंता रही है और न ही देशवासियों की, चूंकि प्रजातंत्र में ‘मत’ या ‘वोट’ अहम् माना जाता है और वह आम जनता से जुड़ा है, इसलिए पांच साल में एक बार मतदाता की पूछ-परख अल्प समय के लिए होती है, शेष समय के लिए देश व देशवासी को भगवान के भरोसे छोड़ दिया जाता है, अब यही चलन आज की राजनीति का हो गया।

इसलिए अब वह समय आ गया है जब मतदाता को देश, समाज व स्वयं के हित में जागरूक होना पड़ेगा, वर्ना अब हमारे पचहत्तर साल पुराने अतीत की पुनरावृत्ति ज्यादा दूर नही है।

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