Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

बाबू समझो इशारे

भोपाल। “बाबू समझो इशारे हौरन पुकारे” इन लाइनों के साथ ही फिल्म “चलती का नाम गाड़ी” में कलाकार किशोर कुमार और मन्ना डे की याद सबको आ गई होगी लेकिन अब वर्तमान में राजनीति में इशारों को समझना बेहद जरूरी हो गया है यह भी कह सकते हैं इशारों को अगर समझो राज को राज रहने दो।

दरअसल, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने मंगलवार को प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में आयोजित के शिल्पी सम्मेलन में कांग्रेस की तरफ से टिकट घोषित करने के सवाल पर उन्होंने कहा हमें कोई जल्दी नहीं है। जिन्हें इशारा करना था हमने कर दिया, इसी तरह होना है। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के ऐलान की खबरों पर कहा कि जिस देश में इतनी बड़ी परसेंटेज में हिंदू हो वहां कोई बहस की बात है। भारत में 82% हिंदू हैं और हम कहें कि यह हिंदू राष्ट्र है यह कहने की क्या आवश्यकता है यह तो आंकड़े बताते हैं।

उन्होंने जेडीयू नेता शिवानंद तिवारी द्वारा धीरज शास्त्री की कथा के आयोजन पर सवाल उठाए जाने पर कहा कि मैंने तो 15 साल पहले हनुमान मंदिर बनवाया था। यह कोई चुनाव के लिए बना है क्या? मैंने तो इसकी पब्लिसिटी भी नहीं की थी। जो है वह सामने सबको दिख रहा है कि सबसे बड़ा हनुमान मंदिर 15 साल पहले छिंदवाड़ा में बना था। वह मंदिर मैंने अपनी भावनाओं से बनवाया था।

कमलनाथ को शिवराज ने चुनावी भक्त कहा। इसके बाद यह सब प्रतिक्रिया आ रही है। इशारों में हो रही राजनीति को समझने के लिए अब और अधिक सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है। इस चुनाव में पिछली धारणाएं बदल जाएंगी। दोनों तरफ से हिंदुत्व के हिमायती होने की होड़ लग सकती है और कौन से हिंदुत्व को हिंदू पसंद करेगा यह तो चुनाव के बाद पता चलेगा।

बहरहाल, लंबे अरसे से कहा जा रहा था कि कांग्रेस इस बार अगस्त के आखिरी महीने तक टिकट घोषित कर देगी लेकिन घोषित करने की बजाय इशारों में प्रत्याशियों को संकेत दे दिए गए है और जिन सीटों पर संकेत नहीं दिए गए हैं वहां अभी भी सर्वे चल रहे हैं जबकि सत्तारूढ़ दल भाजपा में इस बार कौन सा फार्मूला चलेगा इसको लेकर अब तक असमंजस है। जिस तरह से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने प्रदेश की चुनावी कमान संभाल ली है उससे उन दावेदारों को इशारा जरूर हो गया है। इस बार किसी की सिफारिश पर टिकट नहीं मिलेगा और कोई भी कितना बड़ा नेता हो यदि उसकी जीतने की संभावना नहीं है उसको भी टिकट नहीं मिलेगा, क्योंकि 2018 के विधानसभा चुनाव में तेरह मंत्री चुनाव हारे थे। इसी कारण मंत्रियों को बहुत पहले से इशारा कर दिया गया है कि यदि सितंबर के पहले सप्ताह के सर्वे तक स्थिति अनुकूल नहीं हुई तो फिर टिकट किसी भी कीमत पर नहीं मिलेगा। यही कारण है कि अधिकांश मंत्री परिवार मित्रों सहित अपने-अपने क्षेत्र में डट गए हैं।

कुल मिलाकर प्रदेश में विधानसभा 2023 के चुनाव काफी दिलचस्प होने वाले हैं। राजनीतिक दलों के इशारे साफ बता रहे हैं कि वे कभी भी यू टर्न ले सकते हैं। केवल और केवल जीत का रास्ता किसके साथ जाने से तय होगा उसी पर चलेंगे। इसलिए कहा जा रहा है बाबू समझो इशारे

Exit mobile version