जवाहरलाल के विरोध के बावजूद नवम्बर 1947 के मध्य में सरदार पटेल ने अपने प्रभास पाटन के दौरे के समय मंदिर का दर्शन किया। और एक सार्वजनिक सभा में घोषणा की कि नए साल के इस शुभ अवसर पर हमने फैसला किया है कि सोमनाथ का पुनर्निर्माण करना चाहिए। सौराष्ट्र के लोगों को अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने के लिए अपील करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक पवित्र कार्य है, जिसमें सभी को भाग लेना चाहिए।
31 अक्टूबर – सरदार पटेल जयंती पर विशेष
सरदार पटेल (31 अक्टूबर 1875 -15 दिसम्बर 1950) न सिर्फ भारत के स्वतंत्रता सेनानी, अधिवक्ता, राजनेता, देशी रियासतों के एकीकरण के लिए स्मरण किये जाते हैं, बल्कि अत्यंत वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार तोड़े व पुनर्निर्मित किये गये गुजरात के सोमनाथ मंदिर के वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ स्वतंत्र भारत में करने में अपने महान योगदान के लिए भी याद किये जाते हैं। भारतीय संस्कृति के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक गुजरात के सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आरंभ स्वतंत्रता के पश्चात प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरु के लाख विरोध के बाद भी लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ही करवाया। जिसके कारण पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद के द्वारा इसे राष्ट्र को समर्पित किया जा सका। सोमनाथ मंदिर आज विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है।
चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्त्व बताये जाने के कारण इन तीन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ लगती है। यहां तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होने के कारण यहां त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्त्व है। वर्तमान में सोमनाथ मंदिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबंध किया है। लेकिन पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर व ट्रस्ट को श्रद्धालुओं से होने वाली आय पर सरकारी पहरा लगा दिया गया है और इसे सरकारी हस्तगत करने का प्रावधान किया है।
प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरु को भारतीय संस्कृति, जीवन पद्धति, मंदिर, गाँव, ग्रामीण जिन्दगी से बेहद चिढ़ थी। उनकी इच्छा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति की प्राप्त करने की थी। और वे समाजवादी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। 1947 में भारत विभाजन के पश्चात सरदार पटेल उपप्रधानमंत्री के साथ प्रथम गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री भी बनांये गए थे। देश के 562 छोटी-बड़ी रियासतों का भारतीय संघ में विलीनीकरण करके भारतीय एकता का निर्माण करने में सरदार पटेल की महानतम देन थी। 5 जुलाई 1947 को एक रियासत विभाग की स्थापना की गई थी तथा देश के रियासतों को एक कर भारत में मिलाने का कठिन कार्य सरदार पटेल को सौंपा गया।
और 15 अगस्त 1947 तक केवल तीन रियासतें-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद छोड़कर अपने अथक प्रयासों से उस लौहपुरुष सरदार पटेल ने सभी रियासतों को भारत में मिला दिया। इन तीन रियासतों में भी जूनागढ़ को 9 नवम्बर 1947 को मिला लिया गया। जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 13 नवम्बर को सरदार पटेल ने सोमनाथ के भग्न मंदिर के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया, जो पंडित नेहरू के तीव्र विरोध के पश्चात भी बना। 1948 में हैदराबाद भी केवल 4 दिन की पुलिस कार्रवाई द्वारा मिला लिया गया।
भूमण्डल में दक्षिण एशिया में भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक राज्य में स्थित अत्यंत प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मंदिर सोमनाथ मंदिर को भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना, जाना व पूजा जाता है। मान्यतानुसार गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित इस मंदिर का निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था। यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। मान्यतानुसार श्रीकृष्ण के भालुका तीर्थ पर विश्राम करने के समय शिकारी ने उनके पैर के तलुए में पद्मचिह्न को हिरण की आंख समझकर अनजाने में तीर मार दिया। तब श्रीकृष्ण ने देह त्यागकर यहीं से बैकुंठ गमन किया। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्त्व बढ़ गया। इस स्थान पर बड़ा ही सुन्दर कृष्ण मन्दिर बना हुआ है।
पौराणिक मान्यतानुसार सोम अर्थात चंद्र ने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था। लेकिन उनमें से रोहिणी नामक अपनी पत्नी को अधिक प्यार व सम्मान दिया करता था। इस अन्याय को होते देख क्रोध में आकर दक्ष ने चन्द्रदेव को शाप दे दिया कि अब से प्रतिदिन तुम्हारा तेज अर्थात कांति, चमक क्षीण होता रहेगा। शाप के कारण हर दूसरे दिन चंद्र का तेज घटने लगा। शाप से विचलित और दुःखी सोम ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी। अन्ततःशिव प्रसन्न हुए और सोम-चंद्र के शाप का निवारण किया। इसलिए सोम के कष्ट को दूर करने वाले शिव का स्थापन यहां किया गया और सोमनाथ नामकरण किया गया।
ऐतिहासिक विवरणियों के अनुसार अति प्राचीन काल से ही दिव्य चमत्कारी व शिव के अत्यंत सिद्ध स्थान के रूप में प्रसिद्ध सोमनाथ महादेव शिवलिंग के स्थान पर सर्वप्रथम एक मंदिर अस्तित्व में था। ईसा पूर्व कई सदियों से उस स्थान पर अवस्थित मंदिर का पुनर्निर्माण द्वितीय बार सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने किया। उस स्थान के दर्शन और पूजन से व्यक्ति के कुंडली में विराजित चंद्र नीच होने, चंद्र दोष के दूर होने और जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति मिलने की मान्यता के कारण वहां होने वाली भीड़ और आय को कठिन बनाने के उद्देश्य से आठवीं सदी में सिंध के अरबी गवर्नर जुनायद ने इसे नष्ट करने के लिए अपनी सेना भेजी। गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने 815 ईस्वी में इसका तीसरी बार पुनर्निर्माण किया। इस मंदिर की महिमा और कीर्ति दूर-दूर तक फैली थी।
अरब यात्री अल-बरुनी ने अपने यात्रा वृतांत में इसका वर्णन किया, जिससे प्रभावित हो महमूद ग़ज़नवी ने सन 1025 में कुछ 5,000 साथियों के साथ सोमनाथ मंदिर पर हमला किया, उसकी सम्पत्ति लूटी और उसे नष्ट कर दिया। मंदिर के अंदरहाथ जोड़कर पूजा अर्चना कर रहे 50,000 लोग कत्ल कर दिये गए। इसके बाद गुजरात केराजा भीम और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण कराया। सन 1297 में दिल्ली सल्तनत के द्वारा गुजरात पर क़ब्ज़ा किये जाने के समय इसे पांचवीं बार गिराया गया। मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे पुनः 1706 में गिरा दिया। मंदिर का बार-बार खंडन और जीर्णोद्धार होता रहा पर शिवलिंग यथावत रहा। लेकिन सन 1026 में महमूद गजनी के द्वारा खंडित शिवलिंग ही आदि शिवलिंग था।
इसके बाद प्रतिष्ठित किए गए शिवलिंग को 1300 में अलाउद्दीन की सेना ने खंडित किया। इसके बाद कई बार मंदिर और शिवलिंग को खंडित किया गया। कहा जाता है कि आगरा के किले में रखे देवद्वार सोमनाथ मंदिर के हैं। महमूद गजनी सन 1026 में लूटपाट के दौरान इन द्वारों को अपने साथ ले गया था। सोमनाथ मंदिर के मूल मंदिर स्थल पर मंदिर ट्रस्ट द्वारा निर्मित नवीन मंदिर स्थापित है। राजा कुमार पाल द्वारा इसी स्थान पर अंतिम मंदिर बनवाया गया था। सौराष्ट्र के मुख्यमन्त्री उच्छंगराय नवलशंकर ढेबर ने 19 अप्रैल 1949 को यहां उत्खनन कराया था। इसके बाद भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने उत्खनन द्वारा प्राप्त ब्रह्मशिला पर शिव का ज्योतिर्लिग स्थापित किया है। सौराष्ट्र के पूर्व राजा दिग्विजय सिंह ने 8 मई 1950 को मन्दिर की आधारशिला रखी तथा 11 मई 1951 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर में ज्योतिर्लिग स्थापित किया। नवीन सोमनाथ मंदिर1962 में पूर्ण निर्मित हो गया।
1970 में जामनगर की राजमाता ने अपने पति की स्मृति में उनके नाम से दिग्विजय द्वार बनवाया। इस द्वार के पास राजमार्ग है और लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा है। सोमनाथ मंदिर निर्माण में पटेल का बड़ा योगदान रहा, क्योंकि उस समय जवाहरलाल नेहरू ने सोमनाथ मन्दिर के पुनर्निर्माण के प्रस्ताव का हिन्दू पुनरुत्थानवाद कहकर विरोध भी किया था। नेहरु की इच्छा का विरोधकर सोमनाथ मंदिर जाना और उसके पुनर्निर्माण की घोषणा करना व बनवाना उस समय कोई आसान कार्य नहीं था। इस संबंध में उस समय नेहरू से हुई बहस को कन्हैयालाल मुंशी ने अपनी पुस्तक पिलग्रिमेज टू फ़्रीडम में दर्ज किया है। वे लिखते हैं- कैबिनेट की बैठक के अंत में जवाहरलाल ने मुझे बुलाकर कहा- मुझे सोमनाथ के पुनरुद्धार के लिए किया जा रहा आपका प्रयास पसंद नहीं आ रहा। यह हिन्दू पुनरुत्थानवाद है।
हालांकि मंदिर स्थल की भयंकर दुरवस्था, अपवित्रता, जले हुए और ध्वस्त भग्नावशेषों और बिखरे पत्थरों को देखकर किसी भी भारतीय के अंदर अपमान की अग्निशिखा प्रज्जवलित हो उठना स्वाभाविक था, लेकिन यह जवाहरलाल के लिए कोई मायने नहीं रखती थी। वह इसे हिन्दू पुनरुत्थान कहकर भारतीयों के साथ हुई कृतघ्नता और अपमान को भुला देने का संदेश देने से भी हिचकिचा नहीं रहे थे। जवाहरलाल के विरोध के बावजूद नवम्बर 1947 के मध्य में सरदार पटेल ने अपने प्रभास पाटन के दौरे के समय मंदिर का दर्शन किया। और एक सार्वजनिक सभा में घोषणा की कि नए साल के इस शुभ अवसर पर हमने फैसला किया है कि सोमनाथ का पुनर्निर्माण करना चाहिए। सौराष्ट्र के लोगों को अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने के लिए अपील करते हुए उन्होंने कहा कि यह एक पवित्र कार्य है, जिसमें सभी को भाग लेना चाहिए। सोमनाथ का मंदिर कोई प्राचीन स्मारक नहीं, बल्कि प्रत्येक भारतीय के हृदय में स्थित पूजा स्थल था जिसका पुनर्निर्माण करने के लिए अखिल राष्ट्र प्रतिबद्ध था।
