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तब अनुशासन पर्व में काम

देश में घोषित इमरजेंसी बनाम अघोषित इमरजेंसी की बहस है। इमरजेंसी के 50 साल पूरे हुए तो नरेंद्र मोदी ने इसे एक मौके की तरह लपका। और उसके आयोजनों से दिखाया कि उनके नेतृत्व में लोकतंत्र फलफूल रहा है। उन्होने इमरजेंसी के लिए ‘संविधान हत्या दिवस’ का जुमला बोला। उधर संभवतः पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष ने इमरजेंसी की बरसी के दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस की। कांग्रेस को यह ताकत इसलिए मिली है क्योंकि इमरजेंसी की ज्यादतियां झेलने वाले आरएसएस व तब की जनसंघ के कुछ लोगों को छोड़ दें तो ज्यादातर लोग आज भाजपा विरोध की मजबूरी में कांग्रेस के साथ हैं। सोचें, इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण का मुकदमा लड़ने वाले शांति भूषण के बेटे प्रशांत भूषण भी अब सीधे इमरजेंसी की आलोचना नहीं कर रहे हैं। वे भी अगर मगर लगा कर 50 साल पहले की इमरजेंसी से ज्यादा अभी की अघोषित इमरजेंसी पर हमला कर रहे हैं।

कांग्रेस और उसके समर्थकों का कहना है कि उस समय तो संविधान के प्रावधानों का इस्तेमाल करके आपातकाल लगा था लेकिन अब तो ऐसे ही आपातकाल लगा हुआ है। उस समय 21 महीने में इमरजेंसी खत्म हो गई थी लेकिन अब 11 साल से इमरजेंसी चल रही है। यह भी सुनने को मिला कि वह आपातकाल अलोकतांत्रिक था लेकिन असंवैधानिक नहीं था। इंदिरा गांधी को लेकर लेख लिखे गए हैं, जिसमें उनको ‘दुर्गा, डिक्टेटर और डेमोक्रेट’ तीनों बताया गया है।

इमरजेंसी के बचाव में सबसे बड़ा तर्क विनोबा भावे का अनुशासन पर्व का बयान था। अर्थात  उस इमरजेंसी में राजनीति से लेकर समाज और सरकार के कामकाज में कहीं भी उच्छृंखलता नहीं दिखी थी। सारा सिस्टम ठीक तरीके से काम करता था। सरकारी दफ्तरों में रिश्वतखोरी बंद हो गई थी या उसमें बड़ी कमी आई थी। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी समय से कार्यालय पहुंचते थे और आम आदमी के काम निपटाते थे। चूंकि विपक्षी पार्टियों के सारे बड़े नेता जेल में बंद थे इसलिए राजनीतिक गतिविधियां, हड़ताल, प्रदर्शन आदि बंद थे। स्कूल और कॉलेजों में पढ़ाई अच्छे तरीके से होने लगी थी, परीक्षाएं समय पर होने लगी थीं और नतीजे भी समय पर आने लगे थे। ट्रेनें समय पर चलती थीं।

यह कोई मामूली बात नहीं है क्योंकि भारत की ट्रेनें देरी से चलने के लिए बदनाम रही हैं। और ऐसा नहीं है कि ये बातें सही नहीं हैं। नरेंद्र मोदी की सरकार में जब सुरेश प्रभु रेल मंत्री थे, तब ट्रेनों के समय पर नहीं चलने की बहुत सारी शिकायतें सांसदों और विधायकों से मिलीं थीं। उन शिकायतों में से कई में कहा गया था कि इमरजेंसी के समय ट्रेनें समय पर चलती थीं। एक खबर के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी ने इसका हवाला देकर सुरेश प्रभु को निर्देश दिए थे, जिसके बाद रेल मंत्रालय ने यह पता लगाने का प्रयास किया था कि इमरजेंसी के समय कैसे ट्रेनें समय पर चलती थीं। कहा जाता है कि 90 फीसदी ट्रेनें समय पर चला करती थीं।

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