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अब परिवारवाद का सहारा

खट्टर ने सिर्फ मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर ही ताकत नहीं दिखाई। कहा जा रहा है कि वे अमित शाह के साथ भी जोर आजमाइश कर चुके हैं। बताया जा रहा है कि अमित शाह की इच्छा के विरूद्ध जाकर खट्टर ने जननायक जनता पार्टी और दूसरी पार्टियों के नेताओं, विधायकों को भाजपा में शामिल कराया। उन्हें न सिर्फ भाजपा में शामिल किया गया, बल्कि उन को टिकट भी दी गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक एक सितंबर को जींद में भाजपा की सभा थी, जिसमें अमित शाह को शामिल होना था। खट्टर ने उसमें दुष्यंत चौटाला की पार्टी के नेताओं को शामिल करने का कार्यक्रम रख दिया, जिसके अमित शाह ने विरोध किया। लेकिन खट्टर अड़े रहे और अंत में शाह का दौरा रद्द हुआ। उस दिन एक सितंबर को बिना अमित शाह के जींद में भाजपा की सभा हुई, जिसमें दुष्यंत चौटाला की पार्टी के नेता शामिल हुए और पूर्व केंद्रीय मंत्री विनोद शर्मा की पत्नी शक्ति रानी शर्मा भी शामिल हुईं।

इसके अगले दिन दो सितंबर को भी चौटाला की पार्टी के तीन नेता भाजपा में शामिल हुए। इसके बाद चार सितंबर को जब उम्मीदवारों की सूची आई तो दूसरी पार्टी से भाजपा में आए सभी नेताओं का नाम उसमें था। शक्ति रानी शर्मा को कालका से टिकट मिली तो कांग्रेस में टिकट की कोशिश कर रहे चौटाला की पार्टी के विधायक देवेंद्र बबली को टोहाना से टिकट दी गई। ध्यान रहे खट्टर के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद सैनी सरकार को बहुमत साबित करना था तो जननायक जनता पार्टी में टूट हुई थी और तब बबली के नेतृत्व में जजपा के तीन विधायकों ने पानीपत में खट्टर से मुलाकात की थी। हालांकि बाद में बबली का विरोध होने लगा था और उनको भाजपा की टिकट न मिले इसके लिए नेताओं ने खूब दिल्ली दौड़ लगाई थी। तभी बबली कांग्रेस से भी टिकट ट्राई करने लगे थे। कांग्रेस ने उनके लिए दरवाजे बंद कर दिए तो वे फिर खट्टर के पास लौटे और भाजपा की टिकट हासिल कर ली।

ऐसा नहीं है कि दूसरी पार्टियों के नेताओं को भाजपा में शामिल कराने और टिकट देने के मामले में ही खट्टर ने मालिक वाली भूमिका निभाई। राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद भी उन्होंने एक दिन के लिए भी प्रदेश नहीं छोड़ा। इसकी भी शिकायत पार्टी के नेताओं ने दिल्ली पहुंचाई। उनका कहना था कि अगर खट्टर का चेहरा नहीं हटेगा तो उनके करीब साढ़े नौ साल के राजकाज की जिस एंटी इन्कम्बैंसी को खत्म करने के लिए उनको हटाया गया है वह खत्म नही होगी। फिर मुख्यमंत्री बदलने का कोई फायदा भाजपा को नहीं मिलेगा। इसके बावजूद खट्टर की हरियाणा में सक्रियता बनी रही और वे हर कार्यक्रम में शामिल होते रहे। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद से उनके करीबियों ने लगातार यह चर्चा चलवा रखी है कि वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हो सकते हैं। केंद्र सरकार में दो भारी भरकम मंत्रालयों के मंत्री बन जाने के बाद भी उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की चर्चा थमी नहीं है।

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