उत्सव है या मखौल?
स्पष्टतः एग्जिट पोल एजेंसियों, टीवी चैनलों और मीडिया संस्थानों को तनिक जरूरत महसूस नहीं हुई है कि हाल में जिस तरह वे झूठे साबित हुए हैं, उस पर ईमानदार आत्म-परीक्षण करें। मतदान में बढ़ता अवांछित हस्तक्षेप उनकी चिंता के दायरे से बाहर है। चुनावों को लोकतंत्र का उत्सव कहा जाता है। लेकिन अपने देश में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उनके बीच वो समय दूर नहीं, जब इन्हें जम्हूरियत का मखौल कहा जाने लगेगा। उत्तर प्रदेश में उप चुनावों के दौरान जिस तरह पुलिस ने अल्पसंख्यक मतदाताओं के वोट डालने में रुकावट डाली, वह कम-से-कम इस राज्य एक...