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यह एकजुटता कैसे आगे चलेगी?

मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर पर विपक्षी एकजुटता दिख रही है।  संसद में सभी पार्टियों ने मिल कर इस मामले में बहस की मांग की और चर्चा नहीं होने पर  संसद की कार्यवाही रोकी। सत्र के बाद भी कई विपक्षी पार्टियों ने इस मसले पर कांग्रेस के साथ एकजुटता दिखाई है और बिहार में चल रही राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा में उनके नेता शामिल हुए। लेकिन तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने इससे दूरी बनाई। उनकी पार्टी का कोई नेता यात्रा में शामिल नहीं हुआ और यह भी तय नहीं है कि एक सितंबर को पटना की सड़कों पर मार्च करके राहुल गांधी विपक्ष की ताकत दिखाएंगे तो उसमें भी तृणमूल का कोई नेता शामिल होगा या नहीं? इसी तरह आम आदमी पार्टी ने भी राहुल की यात्रा से दूरी बनाई है और अब तो अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस पर भाजपा से मिलीभगत के आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं। उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने भी संसद सत्र के बाद कांग्रेस के इस अभियान से दूरी बना रखी है।

अभी तक विपक्षी पार्टियां एसआईआर के सवाल पर कांग्रेस के साथ थीं। संसद के मानसून सत्र में सभी पार्टियों ने इस मसले पर विपक्ष को घेरने के अभियान में कांग्रेस का साथ दिया। इस पूरे अभियान का सारा क्रेडिट कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को देते रहे। तब भी विपक्ष साथ में रहा। विपक्ष ने कर्नाटक की महादेवपुरा विधानसभा सीट पर वोट की गड़बड़ियों का प्रजेंटेशन भी देखा और कांग्रेस के साथ निर्वाचन सदन तक मार्च भी किया। लेकिन अब समस्या इस एकजुटता को आगे ले जाने की है। तीन पार्टियों को छोड़ कर ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने बिहार में कांग्रेस का साथ दिया है। अब देखना है कि एक सितंबर के पटना मार्च में ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और उद्धव ठाकरे किसी को भेजते हैं या नहीं।

इसके बाद एकजुटता को प्रभावित करने वाला एक मुद्दा गिरफ्तारी या 30 दिन की हिरासत पर मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को हटाने वाले बिल पर बने जेपीसी का है। कांग्रेस अभी तक इस जेपीसी में शामिल होने के पक्ष में दिख रही है। लेकिन समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिव सेना ने इसमें शामिल होने से इनकार किया है। सीपीआई ने भी कहा है कि वह जेपीसी में शामिल नहीं होगी। हालांकि उसके इतने सांसद नहीं हैं कि उसे जेपीसी में जगह मिलेगी। फिर भी सैद्धांतिक रूप से उसने इसका विरोध किया है। अब कांग्रेस, डीएमके, सीपीएम, राजद आदि पार्टियों को तय करना है। यह भी देखने वाली बात होगी कि कांग्रेस दूसरे राज्यों में क्या करती है। तमिलनाडु में तो डीएमके और कांग्रेस मिल कर विरोध प्रदर्शन करेंगे। लेकिन पश्चिम बंगाल में क्या वह तृणमूल कांग्रेस के साथ मिल कर एसआईआर का विरोध करेगी? क्या ममता बनर्जी कांग्रेस और सीपीएम के साथ जाएंगी? ऐसे ही केरल में क्या कांग्रेस और सीपीएम साथ आकर लड़ेंगे या असम में भी क्या ममता कांग्रेस का साथ देंगी?

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