भारत एक बाजार है! वजह भारत की 140 करोड़ आबादी है। तभी लोगों के लिए रोजगार, कमाई का सुलभ, आसान तरीका दुकान खोलना है। मेरे-आपके अनुभवों में हर शहर, कस्बा, गांव और रिहायसी बस्तियों में दुकानों का फैलाव वह फिनोमिना है जो शायद ही किसी दूसरे देश में हो। भारत में हर कोई दुकान खोल कर मुनाफा तलाशता है। दुकान एयरलाइंस, पॉवर की हो या परचून की! भारत के खरबपतियों अंबानी, टाटा, अडानी सभी दुकाने खोले हुए है।
ये सब क्या खरीद-बेच रहे है? इस दुकानदारी का क्या आधार है? जवाब है चाईनीज उत्पादन! जो सेवा क्षेत्र है, इंफास्ट्रक्चर आधार है वह सब भी, उसकी बुनियाद भी चीन से टरबाइन, मशीनरी आयात से ले कर मंदिर में कलाई लच्छा बांधने की सभी चीन से आती है। उसी को बेचने की दुकानदारी का धंधा, उसकी खरीदफरोख्त, इसकी आय ही वह रीढ़ की हड्डी या चने का झाड़ है जिस पर भारत कथित विकसित भारत हो रहा है!
140 करोड़ लोगों का बाजार ही भारत का सुपर पॉवर होना है। इसलिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘व्यापार महायुद्ध’ शुरू किया तो उन्होने भारत को भी नहीं छोड़ा। ट्रंप और इलान मस्क को गिला है कि भारत अमेरिका को व्यापार में घाटा दे रहा है जबकि चीन से रिकार्ड तोड़ घाटे के बावजूद उसी से खरीद बढाचे जा रहा है। इलान मस्क ने मोदी राज के ग्यारह सालों में हर कोशिश की लेकिन भारत के बाजार में एंट्री नहीं हुई जबकि चीन की बैटरी कारे भारत में धड़ले से बिक रही है!
अब डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में उस्तरा है। उनका और इलान मस्क का आंतक है। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाशिंगटन गए तो उन्होने महामहिम इलान मस्क के बच्चों को लाड़ किया। मस्क को खुश किया। और अचानक रिलायंस और एयरटेल उसके मार्केटिंग एजेंट हो गए। ये उसकी सेवा, उत्पाद बेचेंगे। शनिवार को मालूम हुआ कि प्रधानमंत्री ने इलान मस्क से फोन पर बात की। महामहिम मस्क ने बताया है कि अभी उनके पास समय नहीं है लेकिन वे साल के आखिर तक जरूर भारत आएगें।
मगर उनके चहेते, या उनके बनवाए उपराष्ट्रपति जे.ड़ी वांस कल भारत आ रहे है। वे प्रधानमंत्री से मुलाकात करेंगे। संभव है इस मुलाकात से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते का अंतिम खांका बने। उनके साथ उनकी पत्नी उषा चिलुकुरी वेंस और बच्चे भी होंगे। उषा भारतीय मूल की, आंध्र प्रदेश से हैं। इसलिए उम्मीद करनी चाहिए कि कम से कम भारतीयों के लिए ट्रंप की इमिग्रेशन और वीज़ा विशेषकर एच-1बी, एफ-1 वीज़ा और ग्रीन कार्ड की पुरानी स्थिति बहाल हो। हालांकि खुद वेंस ने कहा है कि “ग्रीन कार्ड अमेरिका में हमेशा रहने का अधिकार नहीं देता।”
असल मुद्दा है कि ट्रंप प्रशासन ने भारतीयों को हथकड़ी और बेडियों में बांध जिस तरह भारत भिजवाया उससे जाहिर हुआ रूख कायम रहेगा या बदलेगा?
भारत लंबे समय से अपने काबिल आईटीकर्मियों, पेशेवरों के लिए वीज़ा नीति में नरमी के लिए कह रहा है, और यह अमेरिकी आर्थिकी के लिए फायदेमंद भी है। मगर वाशिंगटन में भारत की कोई लॉबी नहीं है तो जो नरसिंहराव, डा मनमोहनसिंह के समय हुआ वह धीरे-धीरे घटता गया है। हाल फिलहाल यह स्थिति है कि भारतीय छात्रों, पेशेवरों को वहा रहते हुए घबराहट हो रही है।
व्यापार महायुद्ध’: भारत का अवसर या संकट?
अमेरिकी विश्वविद्यालयों से भारतीय छात्र तौबा करते लगते है। आपसी व्यापार का जहां सवाल है तो डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को दुनिया का ‘टैरिफ किंग’ कह कर उस पर नए टैरिफ में कोताही नहीं की। उपराष्ट्रपति वांस का भी एजेंड़ा भारत से अमेरिकी कृषि आयातों पर टैरिफ कम करवाने का होगा तो जीएम फसलों और डेयरी उत्पादों के लिए बाजार खुलवाने का भी होगा।
जाहिर है दुनिया के लिए भारत वह गाय है जिसे हर कोई फुसला रहा है या उसकी पूंछ मरोड़ रहा है। क्या गजब है जो डोनाल्ड ट्रंप चुनाव जीते नहीं कि चीन ने आगे के सिनेरियों को बूझते हुए भारत को पटाना शुरू किया। उसने जनवरी से नौ अप्रैल के बीच भारत के नागरिकों को चीन घूमने के लिए 85,000 से अधिक वीज़ा जारी किए। उसने भारतीय आवेदको के लिए ऑनलाइन अपॉइंटमेंट की अनिवार्यता खत्म की। इतना ही नहीं वीज़ा फीस घटाने के साथ 180 दिनों से कम अवधि के वीज़ा के लिए बायोमेट्रिक डेटा की जरूरत भी खत्म कर दी है।
चीनी राजदूत ने भारतीयों को “मित्र” के नाते न्यौता दिया है कि वे चीन घूमे और चीन को समझे! चीन 2020 में शुरू देपसांग और डेमचोक इलाके के सीमा विवाद को सुलटाने को सहमत हुआ तो वह भारत से आयात बढ़ाने की बात भी कर रहा है। आखिर अमेरिका के बाजार में चीन का सामान कम बिकेगा तो भारत ही वह बाजार है जहां उसके उत्पादनों की खपत बढ़ सकती है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग की होशियारी देखें जो उन्होने अमेरिका से पंगा शुरू होने के बाद अपने पड़ौसी विएतनाम, कंपूचिया और मलेशिया की यात्रा करके आसियान के मैन्यूफैक्चरिंग देशों में मैसेज बनाया कि वे अमेरिका के टैरिफ से घबराए नहीं। अमेरिका को हम मिलकर जवाब देंगे। हमसे दुनिया खरीदेगी भले अमेरिका खरीदे या न खरीदे।
चीन दुनिया की फैक्ट्री है और अमेरिका की नई नीति के कारण निश्चित ही वहा चीन का सामान कम बिकेगा। लेकिन जो उत्पादक होता है, उद्यमी होता है वह अपने बाजार अग्रिम में तलाशे होता है। फिर चीन तो दशकों से दुनिया को अपना बाजार बनाए हुए है। उसे पता है कि उसके सस्ते सामान के आगे वे सभी देश उससे और अधिक खरीदेंगे जो अमेरिकी डोनाल्ड़ ट्रंप से दुखी है या चिढ़ गए है। सोचे, ट्रंप प्रशासन ने अपने अगल-बगल के कनाड़ा और मेक्सिको पर टैरिफ लगाए, पुराने करारों, ऐतिहासिक संबंधों, भाईचारे को ताक में रखा तो इसका फायदा चीन ही तो उठाएगा।
दोनों देशों में अमेरिका से अनाज, कृषि उत्पादन, शराब आदि खरीदना बंद कर दिया है। अमेरिकी सामान का बहिष्कार हो रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप ने कनाड़ा को अपना एक प्रांत बनाने का जुमला बोल उसे अपमानित किया है। ऐसे में राष्ट्रपति शी जिन पिंग के लिए चाईनीज सभ्यता की डुगडुगी बनवाने का बेहतर दूसरा समय कौन सा होगा? तभी चीन ने खम ठोक अमेरिका से कहां है कि वह इस महायुद्ध में आखिर तक लड़ने को तैयार है!
चीन के मुंहतोड़ जवाब ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को निरूतर किया है। अमेरिका की डालर करेंसी खतरे में है तो वैश्विक वित्तिय व्यवस्था में भी उसके दीर्घकालीन बॉड्स को अब हल्का, असुरक्षित माना जाने लगा है। चीन और जापान द्वारा उनकी बिक्री से ही ट्रंप प्रशासन के हाथ-पांव फूले थे। ट्रंप ने घोषित टैरिफ को नब्बे दिनों के लिए टाला। सो अब ट्रंप प्रशासन बुरी तरह उन देशों के साथ व्यापार समझौते की उधेडबुन में है जहां अमेरिका का सामान बिक सकें और जो चीन को नापसंद करते है या जो अमेरिका खेमें के पुराने देश है।
इसमें ट्रंप प्रशासन को उम्मीद है कि भारत उससे गेंहू, मक्का, खाने-पीने का सामान खरीदेगा। आखिर भारत उसे ज्यादा बेच रहा है जबकि अमेरिका उसका सबसे व्यापार साझेदार है तो वह क्यों न उससे उन चीजों को खरीदे जिनके पुराने ग्राहक ( कनाडा, मेक्सिकों आदि) अभी उससे छिटक रहे है!
ट्रंप ने भारत को सार्वजनिक तौर पर “व्यापारिक रिश्तों का बड़ा दुरुपयोगकर्ता’ कहा हैं। उनका कहना था कि भारत अमेरिकी वस्तुओं पर ज्यादा कस्टम ड्यूटी लगाता है जबकि अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं के लिए कम टैरिफ लगा रखा है। बात गलत नहीं है। लेकिन भारत की दिक्कत है कि अमेरिकी सामान महंगा होता है और यदि वह उससे अनाज, दूध, डेयरी सामान खरीदने लगा तो भारत के किसान क्या करेंगे? अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लटनिक की इस तल्ख टिप्पणी को समझ सकते है कि भारत क्या कभी अमेरिकी मक्के की एक बाली भी खरीदेगा?
यह वह पेंच है जिसमें मोदी सरकार बुरी तरह फंसी है। उपराष्ट्रपति वांस इस पर सहमति करवाएंगे। जबकि भारत का स्टेंड होगा कि बाकि सब खरीदेंगे लेकिन अमेरिका से खेती की पैदावार खरीदेंगे तो भारत के किसानों के विरोध का क्या करेंगे? तय माने व्यापार महायुद्ध में भारत के लिए अवसर है तो एक तरफ कुंआ तो दूसरी और खाई भी है।
Pic Credit : ANI
Also Read: अनुराग कश्यप पर भड़कीं पायल घोष