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बंगाल है तो मतदान उत्सव है, त्योहार है।

कोलकाता। प्रदेश में आज पांचवे दौर के मतदान में शाम 5 बजे तक 73 प्रतिशत मतदान का आंकडा था। शेष भारत में चुनावी माहौल भले ठंडा, उदासीनता भरा हो, लोग अपने काम में व्यस्त रहे, चुनाव प्रचार भोंडा हो, मतदाताओं का मोहभंग दिखलाएं दे लेकिन बंगाल में हालात अलग हैं। पहले की तरह पश्चिम बंगाल में इस बार भी जनता मतदान का रिकार्ड कायम करने पर आमादा है। दरअसल बंगाल में महसूस होता है कि लोगों का वोट डालने का संबंध व्यक्तिगत उद्देश्यों से है तो सामूहिक पहचान से भी।

कोलकाता से श्रुति व्यास

बंगाल में मतदान का दिन छुट्टी, आराम या फुर्सत का दिन नहीं होता बल्कि एक उत्सव है, एक त्योहार है। मैं सोमवार को हावड़ा, सीरमपुर और हुगली में इसकी प्रत्यक्षदर्शी बनी।

अरबिन्दा मोंडोल आसनसोल में रहते हैं, जहां 13 मई को मतदान हुआ। लेकिन उनकी पत्नि का वोट हावड़ा में है। गर्म और चिपचिपी दोपहर है और अरबिन्दा अपनी पत्नि को मतदान के लिए हावड़ा लेकर आए है।दरअसल बंगाली अपने मताधिकार को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। तेज गर्मी, मूसलाधार बारिश, आग उगलता सूरज, टपकती छत और जीर्णशीर्ण दीवारों वाले 1862 में बने स्कूल के कमरे में जा कर वोट डालना उत्सव जैसा हो, यह सोचना जरा मुश्किल है। बूढे अंकल और आंटियां, गर्मी में पहने जाने वाले शानदार कुर्ते और साड़ियां पहने और नवीन (बुजुर्ग पीढ़ी के लिए बंगाली शब्द) और प्रवीन (नई पीढी के लिए बंगाली शब्द), पुरूष और महिलाएं, हाथों में हाथ डाले, मतदान के लिए लाईनों में लगे मिले।

मतदान महत्वपूर्ण कर्तव्य है,यह बंगाल में रहने वाला हर व्यक्ति मानता है और इसके अनुरूप आचरण करता है।सभी तरफ मतदान केन्द्रों पर जोश, आतुरता और उत्साह भरा माहौल दिखा।सन्मार्ग के एक स्थानीय पत्रकारन बताया कि उनका और उनके माता-पिता का नाम हुगली के भद्रेश्वर की मतदाता सूची में है।सो वे सुबह करीब 9.30 बजे एक कार में भरकर 40 किलोमीटर की यात्रा करके अपने अधिकार का प्रयोग करने पहुंचे। “यह दिन एक पिकनिक है जिसमें सब शामिल होते हैं और मिलकर छुट्टी का आनंद लेते हैं। लेकिन वोट देने के बाद।” प्रसन्नजीत कहते हैं। राज्य के बाहर रहने वाले परिवारजनों और मित्रों को कई दिन पहले ही फोन लगाकर पूछा जाता है कि वे मतदान के लिए कब पहुंच रहे हैं? मतदान केन्द्र पर मुलाकात करने का कार्यक्रम तय किया जाता है, और पुरानी यादें साझा की जातीं हैं।

दुर्गा पूजा और वोटिंग का दिन – ये दो ऐसे अवसर हैं जिन्हें बंगाल में रहने वाला बंगाली कभी नहीं चूकता।

दिल्ली और लखनऊ के मतदान केन्द्रों के उलट और निर्वाचन आयोग द्वारा मध्यप्रदेश या महाराष्ट्र में मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए किए गए प्रयासों के विपरीत, बंगाल में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया। मुझे एक भी पिंक मतदान केन्द्र नजर नहीं आया – इस तथ्य के बावजूद कि यहां 1000 पुरूष मतदाताओं के पीछे 969 महिला मतदाता हैं जो भारत के औसत 948 से अधिक है। स्याही लगी हुई उंगली दिखाने वाली फोटो खिंचवाने के लिए फोटो फ्रेम विंडो भी कहीं नहीं दिखे।

मैं पुरानी और मूल ग्रेंड ट्रंक रोड, जो अब सिकुड़ गई है, से गुजरी जो टीएमसी, भाजपा और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बोलबाले के दौर का गवाह रहा है। जीटी रोड पर अभी भी अंग्रेजी राज के समय की निशानियाँ मौजूद हैं। प्राचीन मंदिर भी हैं और तेजी से बदलते समाज के आधुनिक समय के प्रतीक भी। लेकिन मतदान के दिन आमतौर पर चहल-पहल भरी और ऐतिहासिक भव्यता वाली इस सड़क पर बहुत कम गाडीयां थीं जबकि अपना वोट डालने के लिए आतुर जनता का उत्साह देखते बनता था।

चुनावी जोश के बीच जो एक अन्य चीज नजर आ रही थी वह थी बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी और चैकिंग। कोलकाता कश्मीर जैसा लग रहा था। पहली बार सीआरपीएफ को मतदान केन्द्रों पर तैनात किया गया। साईरन और हार्न की आवाजें चुनावी जोश के बीच बार-बार सुनाई पड़ रही थीं। हावड़ा के एक मतदान केन्द्र तक जाने वाली एक छोटी सड़क की एक गली में कारों का एक काफिला घुसा जिसमें चुनाव प्रेक्षक, पुलिस, अतिरिक्त सुरक्षा बल, अतिरिक्त पोलिंग एजेंट, प्रेसकर्मी आदि शामिल थे।

“मैंने बहुत इलेक्शन देखा पर ऐसा सिक्युरिटी कभी नहीं देखा,” मेरे वाहन के 70 वर्षीय चालक महावीर कारों का यह काफिला देखकर बोले।

वैसे हुगली एक शांतिपूर्ण इलाका माना जाता है। लेकिन फिर भी चंदननगर में एक स्कूल में स्थित मतदान केन्द्र पर मुख्य द्वार पर सीआरपीएफ के दो जवान खड़े थे, मतदान केन्द्र के अंदर दो महिला पुलिसकर्मी एक और दो दूसरी ओर बैठी थीं और हर क्लासरूम के बाहर एक या दो सीआरपीएफ जवान तैनात थे। इस स्कूल, जो आमतौर पर ठसाठस भरा रहता है और बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है, में केवल चार बूथ थे।

हां, वोट देने के उत्साह के बीच लोगों में व्याप्त भय को भी महसूस किया जा सकता है। एबीपी आनंदा के अनुसार मतदान के शुरूआती दो घंटों के दौरान निर्वाचन आयोग को 471 शिकायतें भेजी गईं। तृणमूल कांग्रेस ने 30 शिकायतें दर्ज कराईं, सीपीएम ने 25 और भाजपा ने 22।

इसमें कोई संदेह नहीं कि इस चुनाव में टीएमसी के कार्यकर्ता आक्रामक व्यवहार कर रहे हैं, कई पत्रकारों के मुताबिक वे पहले से कहीं ज्यादा हिंसक और आक्रामक हैं। हावड़ा में जब मैं एक चाय की दुकान पर कुछ लोगों से चर्चा कर रही थी, तभी एक टीएमसी कार्यकर्ता चीख-चीखकर लोगों को धमकाने लगा। हवा में तनाव घुल गया। हावड़ा सीट के विभिन्न इलाकों से लगातार छिटपुट हिंसा की खबरें आती रहीं। निर्वाचन क्षेत्र के लिलहुआ इलाके में भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर मतदान केन्द्रों को जाम करने का आरोप लगाया जिसके बाद दोनों समूहों के बीच हिसंक संघर्ष हुआ।

लेकिन इन राजनैतिक आरापों-प्रत्यारोपों, भय और धमकियों का मतदाताओं के जोश पर कोई असर नहीं दिखा। जब मैं शाम को कोलकाता लौट रही थी, तब मैंने देखा कि उस सड़क पर माहौल सुबह जैसा ही था। मतदान केन्द्रों पर अब भी भीड़ जमा हो रही थी, लोगों की चाल जोश भरी थी, और वे उत्साह से लबरेज थे। क्योंकि बंगाल में चुनाव सचमुच अपने लोकतांत्रिक अधिकार का उपयोग करने का उत्सव होता है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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