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सहयोगियों को शाह का संदेश

Amit Shah

Bhopal, Feb 25 (ANI): Union Home Minister Amit Shah addresses the audience during the closing ceremony of Global Investors Summit 2025, at Indira Gandhi Rashtriya Manav Sangrahalaya in Bhopal on Tuesday. (ANI Photo)

अमित शाह ने वैसे तो महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टियों को संदेश दिया है लेकिन वह संदेश देश भर की सभी उन पार्टियों के लिए है, जो भाजपा के साथ एनडीए में शामिल हैं। अमित शाह सोमवार को एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने मुंबई पहुंचे थे, जहां उन्होंने बहुत साफ अंदाज में कहा कि भाजपा को महाराष्ट्र में अब किसी बैसाखी की जरुरत नहीं है। यह बात उन्होंने स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी के संबंध में कही। जाहिर है कि अमित शाह ने साफ कर दिया कि भाजपा अपने दम पर स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है इसलिए उसकी सहयोगी पार्टियों यानी शिव सेना और एनसीपी को अपना रास्ता देखना चाहिए। शाह ने भाजपा के कार्यकर्ताओं को स्थानीय निकाय चुनाव में अपनी ताकत दिखान का आह्वान भी किया।

गौरतलब है कि भाजपा महाराष्ट्र में पहले शिव सेना की बैसाखी के सहारे चलती थी। बाद में उसने वह बैसाखी तोड़ दी। अब दो दो शिव सेना हैं, जिसमें से एकनाथ शिंदे वाली शिव सेना को चुनाव आयोग ने असली माना है और वह भाजपा के साथ है। पिछला विधानसभा चुनाव शिंदे के मुख्यमंत्री रहते उनके नेतृत्व में लड़ा गया था। चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे को उप मुख्यमंत्री बनाया गया और भाजपा के देवेंद्र फड़नवीस मुख्यमंत्री बने। चुनाव नतीजों के कारण ऐसी स्थिति बनी कि भाजपा को किसी की जरुरत नहीं रह गई। महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत के लिए 145 सीट की जरुरत होती है और भाजपा ने अकेले 132 सीटें जीत लीं। उसका स्ट्राइक रेट करीब 93 फीसदी रहा। चुनाव के बाद अगर एकनाथ शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी साथ नहीं देते तब भी भाजपा सरकार बनाती। यही बात अमित शाह ने सरकार बनने के एक साल बाद अपनी सहयोगी पार्टियों को बता दिया है। उनको कह दिया है कि भाजपा को शिव सेना या एनसीपी की बैसाखियों की जरुरत नहीं रह गई है। कुछ समय पहले तो भाजपा ने यह बात राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के लिए कह दी थी और आज तक उससे पीछा नहीं हटी है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि भाजपा को कभी संघ की जरुरत थी लेकिन अब भाजपा अपने दम पर इतनी मजबूत हो गई है कि उसे संघ की जरुरत नहीं है।

इसका मतलब है कि भाजपा इस कहावत पर अक्षरशः अमल करती है कि पैर ठीक होने के बाद इंसान सबसे पहले बैसाखी को एक बोझ मान कर फेंकता है। महाराष्ट्र का यह संदेश देश के बाकी राज्यों के लिए भी है। हालांकि ऐसा नहीं है कि सहयोगी पार्टियां इस बात को नहीं समझती हैं। उनको पता है कि गठबंधन में उनका स्थान उपयोगिता के लिहाज से ही है। जैसे आज केंद्र में जरुरत है तो चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों की पूछ है। बिहार में भाजपा नीतीश कुमार की बैसाखी फेंक कर अपने अपने पैरों पर चलने के लिए कब से बेचैन है। लेकिन कामयाबी नहीं मिल पा रही है। पिछले चुनाव में उसने चिराग पासवान को अलग लड़ा कर यह कोशिश की थी और इस बार चुनाव बाद ऐसा कुछ करने का तानाबाना बुन रही है। हालांकि बिहार और झारखंड दोनों राज्यों में भाजपा कामयाब नहीं हो पा रही है। नीतीश के बिना भाजपा 2015 में लड़ कर देख चुकी है। उसने चार पार्टियों का गठबंधन बना कर लड़ा लेकिन पूरा एनडीए 59 ही सीट जीत पाया। इसी तरह झारखंड में 2019 में आजसू को निपटा कर भाजपा अकेले लड़ी तो सत्ता गंवा दी थी और उसके बाद से उसका प्रदर्शन लगातार खराब ही होता जा रहा है।

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