बिहार में विपक्षी पार्टियां बिखरी हुई दिख रही थीं। कांग्रेस पार्टी के सारे कार्यक्रम अकेले हो रहे थे। इस साल के पहले छह महीने में राहुल गांधी पांच बार बिहार दौरे पर पहुंचे और हर बार उनका कार्यक्रम अकेले हुआ। उसमें राजद या कम्युनिस्ट पार्टियों को नहीं शामिल किया गया। पहली बार एक साझा कार्यक्रम हुआ। बिहार में चुनाव आयोग की ओर से कराए जा रहे मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के खिलाफ सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर सड़क पर उतरी। अब तक अलग राजनीति कर रहे कम्युनिस्ट पार्टियों के नेता भी राजद और कांग्रेस के साथ मंच पर आए। इतना ही नहीं विकासशील इंसान पार्टी के नेता मुकेश सहनी भी विपक्ष के साथ सड़क पर उतरे, जिनके बारे में कई तरह की चर्चाएं चल रही थीं और कहा जा रहा था कि वे भारतीय जनता पार्टी के भी संपर्क में हैं। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, दीपांकर भट्टाचार्य और मुकेश सहनी के एक साथ खुली जीप में पटना की सड़कों पर निकलने से एक बहुत पावरफुल तस्वीर बनी है।
विपक्षी पार्टियां इसके लिए चुनाव आयोग को धन्यवाद दे रही हैं कि उसने सबको एकजुट कर दिया और बिहार की जनता को भी मैसेज पहुंचा दिया कि कुछ गड़बड़ हो रही है, जिसके विरोध में सबी विपक्षी पार्टियां सड़क पर उतरी हैं। राहुल गांधी के पटना पहुंचने और विपक्ष गठबंधन की रैली का नेतृत्व करने से भी इसकी गंभीरता का अहसास बिहार के लोगों को हुआ है। बिहार से बाहर रहने वाले लोगों को भी लगा है कि वे जो परेशानी झेल रहे हैं उसे विपक्षी पार्टियां मुद्दा बना रही हैं। इतना ही नहीं पटना में साझा प्रदर्शन और उसके बाद भाषण के बाद यह खबर भी आई कि सभी पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे पर मोटामोटी सहमति बन गई है। बुधवार की देर रात को खबर आई कि कांग्रेस पार्टी 70 सीटों से नीचे उतर कर 55 सीट पर समझौता करने को तैयार हो गई है। हालांकि अब भी राजद का कहना है कि कांग्रेस को 50 से ज्यादा सीटों पर नहीं लड़ना चाहिए। उस पर भी आगे बात होगी लेकिन कांग्रेस के 15 सीटें छोड़ने की खबर अगर सही है तो यह भी गठबंधन के लिए अच्छी खबर है।
