मां के अपमान पर जनमत संग्रह का नतीजा
जब-जब धर्म की हानि होती है, अवतार होते हैं। इस बार अवतार स्वयं धर्म की हानि करने के लिए आए हैं। उन्हें एक नए धर्म की स्थापना करनी है। उस धर्म में दया का नहीं, दमन का बोलबाला है। करुणा का नहीं, कमीनगी का दौरदौरा है। क्षमा का नहीं, क्षुद्रता का प्राधान्य है। जब ‘सब के साथ’ का नहीं, ‘जिसे, जो करना है, कर ले’ का टोना-टोटका इस्तेमाल हो रहा हो तो वही होता है, जो आज भारतमाता के आंगन में हो रहा है। सियासत के चिराग़ की लौ बुझने के पहले पूरे ज़ोर से लपलपा रही है। बिहार से...