बिहार चुनाव को लेकर आमतौर पर यह धारणा है कि असदुद्दीन ओवैसी को इस बार ज्यादा महत्व नहीं मिलेगा। पिछली बार उनकी पार्टी के पांच विधायक जीत गए थे लेकिन इस बार नहीं जीत पाएंगे। ऐसा मानने का एक बड़ा कारण यह है कि इस बार बिहार में एनडीए के जीतने पर भाजपा का मुख्यमंत्री बनने की संभावना जताई जा रही है। आमतौर पर एनडीए की ओर से नीतीश कुमार दावेदार होते तो मुस्लिमों को चिंता नहीं रहती थी। लेकिन भाजपा का मुख्यमंत्री बनने की संभावना ने उनकी चिंता बढ़ा दी है। इस बात को ओवैसी भी समझ रहे हैं तभी उनकी पार्टी ने राजद और कांग्रेस दोनों से एप्रोच किया था कि उसे गठबंधन में शामिल किया जाए। राजद और कांग्रेस दोनों ने प्रस्ताव ठुकरा दिया।
अब ओवैसी 30 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। वे सीमांचल की सभी 24 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वहां उन्होंने उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी है। उन्होंने बहादुरगंज से मोहम्मद तौसिफ आलम और बायसी से गुलाम सरवर को उम्मीदवार बनाया है। इसके अलावा उन्होंने पूर्वी चंपारण की ढाका सीट पर राणा रंजीत को टिकट दिया है। वे मिथिलांचल की चार सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा है कि दरभंगा की शहर सीट के अलावा जाले से उम्मीदवार देंगे तो मधुबनी में बिस्फी से भी चुनाव लड़ेंगे। उन्होनें केउटी सीट से भी उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है। सीमांचल, मिथिलांचल, तिरहुत और सारण में अगर मुस्लिम बहुल सीटों पर वे मुस्लिम या मजबूत हिंदू उम्मीदवार उतारते हैं तो वे राजद और महागठबंधन की दूसरी पार्टियों को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।