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जदयू, राजद की नरम हिंदुत्व की राजनीति

बिहार में भारतीय जनता पार्टी के सामने नई परेशानी आ गई है। राज्य में सरकार चला रही गठबंधन की दोनों बड़ी पार्टियां- जदयू और राजद अब एक नए एजेंडे पर काम कर रहे हैं। पहले दोनों पार्टियों ने जाति गणना का एजेंडा सेट किया और उसक बाद ताजा आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ा कर 75 फीसदी पहुंचा दी। हालांकि वह मामला अदालत में चला गया है लेकिन लालू प्रसाद और नीतीश कुमार जिस मुद्दे को केंद्र में लाना चाहते थे वह उन्होंने कर दिया है। भाजपा बड़ी मुश्किल से उस एजेंडे के बीच अपने को स्थापित करने में लगी थी और इसी बीच राजद और जदयू ने नरम हिंदुत्व की राजनीति शुरू कर दी है। भाजपा के नेताओं को समझ में नहीं आया कि इस पर कैसे प्रतिक्रिया दें तो उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि ये दोनों पार्टियां मुस्लिम तुष्टिकरण करती हैं और अब हिंदुओं के लिए कुछ करने का दिखावा करके संतुलन बना रही हैं।

इस तरह भाजपा ने खुद ही माना कि राज्य की राजद और जदयू की सरकार हिंदुओं के लिए कुछ कर रही है। असल में बिहार सरकार ने सीता जन्मस्थली को विकसित करने की योजना घोषित की है। बिहार के सीतामढ़ी को सीता का जन्मस्थान माना जाता है। वहां मंदिर बनाने और विकास कार्यों के लिए राज्य सरकार ने 72 करोड़ रुपए का आवंटन किया है। सीतामढ़ी वैसे केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तावित रामायण सर्किट का एक हिस्सा है लेकिन अभी तक केंद्र या भाजपा ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया है।

माना जा रहा है कि अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के उद्घाटन और रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के भव्य कार्यक्रम की तैयारियों को देखते हुए उसके जवाब में राजद और जदयू ने सीता जन्मस्थली का मुद्दा उठाया है। दोनों पार्टियों ने यह भी कहा है कि भाजपा राम जन्मभूमि का ध्यान तो रखती है लेकिन सीता जन्मभूमि की अनदेखी किए रहती है। इस बहाने दोनों पार्टियां महिला मतदाताओं को मैसेज दे रही हैं। ध्यान रहे मिथिला के इलाके में अब भी लोग मानते हैं कि उनकी बेटी के साथ अयोध्या में न्याय नहीं हुआ। जो हो बिहार सरकार की इस पहल से भाजपा बैकफुट पर है।

इसके अलावा भी बिहार में कुछ और पहल हो रही है, जिसे लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। बिहार के हिंदू धार्मिक न्यास परिषद ने एक आदेश जारी करके मिथिला में श्यामा देवी मंदिर बलि पर रोक लगा दी है। माना जा रहा है कि भाजपा की ओर से शाकाहार को लेकर चल रहे अभियानों के मुकाबले इसे शुरू किया गया है। हालांकि इसका मिथिला में बहुत भारी विरोध हो रहा है। श्यामा मंदिर में झगड़ा भी हुआ है और कई जगह प्रदर्शन हुए हैं। शाक्त और शैव संप्रदाय के लोग इस फैसले का विरोध कर रहे हैं तो दूसरी ओर वैष्णव संप्रदाय के लोग इसका समर्थन कर रहे हैं। इस फैसले के विरोध में 25 दिसंबर को सामूहिक बलि की घोषणा की गई है।

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