चुनाव आयोग ने जब से मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के दूसरे चऱण का ऐलान किया और 12 राज्यों व केंद्र शासित राज्यों में इसकी शुरुआत हुई है तब से पश्चिम बंगाल में विवाद खत्म ही नहीं हो रहा है। एक तरफ चुनाव आयोग का दावा है कि 75 फीसदी मतदाताओं के पास मतगणना प्रपत्र पहुंच गया है तो दूसरी ओर ममता बनर्जी की पार्टी इसके विरोध में या इससे लड़ने में लगी है। ताजा विवाद बूथ लेवल एजेंट्स की नियुक्ति को लेकर छिड़ा है। चुनाव आयोग ने बूथ लेवल एजेंट्स यानी बीएलए की नियुक्ति की शर्तों में थोड़ी ढील दी है। अब ममता बनर्जी और उनकी पार्टी का कहना है कि ऐसा भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए हुआ है।
गौरतलब है कि अभी तक बूथ लेवल एजेंट्स की नियुक्ति के लिए यह शर्त थी कि पार्टियां, जिसे बीएलए बनाएंगी वह उसका नाम वहां की मतदाता सूची में होना चाहिए। यानी जिस बूथ पर नाम होगा उसी बूथ के इलाके में कोई व्यक्ति बीएलए बन सकता है। अब चुनाव आयोग ने इसमें बदलाव करके कहा है कि एक विधानसभा क्षेत्र का व्यक्ति उस पूरे क्षेत्र में कहीं का भी बीएलए नियुक्त हो सकता है। ममता बनर्जी की पार्टी का कहना है कि जब नाम में ही बूथ लेवल एजेंट है तो बूथ से बाहर के किसी व्यक्ति को कैसे एजेंट बनाया जा सकता है। हालांकि उनकी पार्टी के कई नेताओं का यह भी कहना है कि भले भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए यह नियम बदला गया है लेकिन इससे यह भी पता चल गया है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा के पास हर बूथ पर एजेंट बनाने के लिए लोग नहीं हैं। अगर सचमुच ऐसा है तो यह सवाल है कि भाजपा कैसे चुनाव लड़ेगी।
