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बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खतरे में

अंबेडकर

बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। उनकी पार्टी को इस बार एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली है। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में भी उनका सिर्फ एक विधायक है। लोकसभा में उत्तर प्रदेश में बसपा को 10 फीसदी से कम वोट मिला है और विधानसभा चुनाव में भी उसका वोट 12.88 फीसदी रह गया। उसका वोट टूट कर भाजपा और सपा व कांग्रेस की ओर गया है। इस बीच उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर आजाद के रूप में एक बड़ी चुनौती उभर कर आ गई है। इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए ही उन्होंने फेर से भतीजे आकाश आनंद को आगे किया है। 

अब नई चुनौती यह है कि बसपा का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खतरे में है। किसी भी दल के राष्ट्रीय पार्टी के होने के लिए जो तीन शर्तें हैं उनकी पार्टी कोई भी शर्त पूरी नहीं कर रही है।  गौरतलब है कि अभी भाजपा, कांग्रेस, सीपीएम, आम आदमी पार्टी, एनपीपी और बसपा को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा है। राष्ट्रीय पार्टी होने की पहली शर्त है कि उसे अखिल भारतीय स्तर पर छह फीसदी वोट मिले। लेकिन बसपा को सिर्फ 2.04 फीसदी वोट मिले हैं। दूसरी शर्त है कि कम से कम तीन राज्यों से चार सांसद जीतें। लेकिन बसपा का एक भी सांसद नहीं जीता है। तीसरी शर्त है कि तीन राज्यों में प्रादेशिक पार्टी का दर्जा मिले। लेकिन बसपा को सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही प्रादेशिक पार्टी का दर्जा है। पहले कई राज्यों में बसपा का आधार था और उसे प्रादेशिक पार्टी का दर्जा मिला हुआ था, लेकिन पिछले पांच साल में उसने सभी राज्यों में यह दर्जा गंवा दिया है। अभी जिन राज्यों में चुनाव हैं वहां बसपा के लिए कोई खास उम्मीद नहीं है।

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