Naya India-Hindi News, Latest Hindi News, Breaking News, Hindi Samachar

चुनाव आयोग के लिए देश से अलग है बिहार!

यह लाख टके का सवाल है कि क्या भारत सरकार और चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं का आधार से मोहभंग हो रहा है? आधार की मान्यता समाप्त की जा रही है? यह सवाल बिहार में चल रहे मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण के अभियान से उठा है। बिहार में आठ करोड़ मतदाताओं का गहन पुनरीक्षण हो रहा है। सभी मतदाताओं को फिर से अपना नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने को कहा गया है। राज्य चुनाव आयोग की ओर से छह हजार रुपए पर नियुक्त बूथ लेवल ऑफिसर यानी बीएलओ सबके घर फॉर्म पहुंचा रहे हैं और उसके बाद भरा हुआ फॉर्म, फोटो और जन्म प्रमाणित करने वाले सर्टिफिकेट कलेक्ट करेंगे। चुनाव आयोग ने जन्म प्रमाणित करने वाले दस्तावेज के तौर पर आधार को प्रमाण मानने से इनकार कर दिया  है। आधार, मनरेगा कार्ड और राशन कार्ड के आधार पर बिहार में कोई भी व्यक्ति मतदाता नहीं बन सकता है।

क्या यही नियम दिल्ली में या दूसरे किसी राज्य में भी है? क्या दिल्ली में कोई व्यक्ति आधार कार्ड के जरिए मतदाता सूची में नाम नहीं दर्ज करा सकता है? अगर आधार के दम पर दिल्ली या देश के किसी दूसरे हिस्से में कोई व्यक्ति मतदाता बन सकता है तो बिहार में क्यों नहीं बन सकता है? क्या बिहार के 14 करोड़ लोगों को चुनाव आयोग ने एलियन माना है, जिनको अपनी नागरिकता प्रमाणित करने के लिए आधार से अलग दूसरे दस्तावेज देने होंगे? सोचें, एक तरफ चुनाव आयोग पूरे देश में वोटर आई कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की मुहिम चला रहा है। 40 करोड़ से ज्यादा लोग अपना वोटर आई कार्ड आधार से जोड़ चुके हैं। सरकार ने इसे अनिवार्य बनाया हुआ है। कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति अपने वोटर आई कार्ड को आधार से नहीं जोड़ता है तो उसे इसके वाजिब कारण बता कर चुनाव आयोग के अधिकारी को संतुष्ट करना होगा। अन्यथा उसका नाम वोटर लिस्ट से कट जाएगा। लेकिन दूसरी ओर बिहार में उसी आधार को मतदाता सत्यापन का दस्तावेज नहीं माना जा रहा है।

बिहार के 14 लोगों के साथ हो रहे इस भेदभाव को खत्म करने का तरीका यह है कि चुनाव आयोग या तो बिहार के लोगों के आधार को भी मतदाता सूची के सत्यापन का दस्तावेज माने या देश भर में आधार की जरुरत खत्म करे। यह नहीं हो सकता है कि देश के दूसरे हिस्सों में तो आधार के दम पर लोग मतदाता बन सकते हैं लेकिन बिहार में नहीं बन सकते हैं। साथ ही मतदाता सूची को आधार कार्ड के साथ लिंक करने का अभियान भी चुनाव आयोग को तत्काल रोक देना चाहिए और देश भर के लिए मतदाता बनने के लिए आवश्यक दस्तावेजों की नई सूची जारी करनी चाहिए। यह भी साफ कर देना चाहिए कि अब अगर किसी का नाम मतदाता सूची में है और उसके पास वोटर आई कार्ड नहीं है तो वह आधार, राशन कार्ड और मनरेगा कार्ड के आधार पर मतदान नहीं कर सकता है। अगर चुनाव आयोग ऐसा नहीं करता है तो यह माना जाएगा कि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग दोनों बिहार के नागरिकों को दोयम दर्जे का मानते हैं, उन पर संदेह करते हैं और उनको देश के अन्य नागरिकों से अलग मानते हैं।

Exit mobile version