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लेफ्ट और कांग्रेस का विरोधाभास

देश में आमतौर पर गठबंधन बनाने का काम विपक्षी पार्टियों का होता है और माना जाता है कि सत्ता पक्ष के खिलाफ गठबंधन बनाना विपक्ष के लिए ज्यादा आसान होता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि इस समय का विपक्ष इस काम में विफल हो रहा है। भाजपा ने ज्यादा पार्टियों का गठबंधन बनाया है लेकिन किसी भी राज्य में ऐसा नहीं है कि भाजपा की किसी राज्य की गठबंधन सहयोगी दूसरे राज्य में उसके खिलाफ चुनाव लड़ रही है। केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा ने जिन पार्टियों से तालमेल किया है उनके साथ परफेक्ट तालमेल है। लेकिन विपक्षी गठबंधन में कई पार्टियां एक राज्य में साथ में हैं तो दूसरे राज्य में खिलाफ लड़ रही हैं। इसका नुकसान यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को इसे मुद्दा बनाने का मौका मिल रहा है।

सोचें, यह कैसा विरोधाभास है कि कांग्रेस और सीपीएम के बीच त्रिपुरा में तालमेल हो रहा है, पश्चिम बंगाल में 16 सीटों की घोषणा करके सीपीएम अब भी कांग्रेस का इंतजार कर रही है और केरल में दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं! अब अगर कांग्रेस और सीपीएम के बीच एक राज्य में तालमेल होता है और दो राज्य में तालमेल नहीं होता है तो फिर क्या भाजपा को इस विरोधाभास का मुद्दा बनाने का मौका नहीं मिलेगा? इसी तरह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दिल्ली, हरियाणा, गोवा और गुजरात में मिल कर चुनाव लड़ रहे हैं लेकिन पंजाब में दोनों एक दूसरे खिलाफ लड़ रहे हैं और एक दूसरे को कमजोर कर रहे हैं। अभी आप ने कांग्रेस का एक विधायक तोड़ दिया, जबकि चंडीगढ़ नगर निगम में कांग्रेस के सहयोग से आम आदमी पार्टी का मेयर बना है। ऐसे में दोनों पार्टियों पर मतदाताओं का कैसे भरोसा बनेगा।

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