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भाजपा को जा रहा बसपा का वोट

मायावती का वोट सपा या कांग्रेस की बजाय भाजपा के साथ जाने का सिलसिला पिछले साल के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भी दिखा था। पिछला विधानसभा चुनाव बसपा ने बहुत बेमन से लड़ा था। मायावती ने बहुत कम प्रचार किया था और पहले दिन से यह मैसेज हो गया था कि वे लड़ाई में नहीं हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि चुनाव में बसपा को वोट का बहुत नुकसान हुआ और उसे सिर्फ एक विधानसभा सीट मिली। सो, मायावती को पता है कि अगर वे लोकसभा का चुनाव अकेले लड़ती हैं तो फिर 2014 वाली स्थिति हो सकती है। 2014 में तो उनको 20 फीसदी वोट मिल गए थे लेकिन इस बार अकेले लड़ने पर उनको पिछले साल विधानसभा चुनाव में मिले 13 फीसदी से भी कम वोट हो जाएंगे। 

तभी सवाल है कि क्या वे सचमुच अकेले लड़ेंगी या वोट ट्रांसफर वगैरह की बात करके उन्होंने संभावित सहयोगी पार्टियों को मैसेज दिया है? समाजवादी पार्टी फिर से सहयोगी हो सकती है क्योंकि दोनों को पता है कि इस बार लोकसभा चुनाव में पहले से खराब स्थिति हो सकती है। क्योंकि इस बार अयोध्या में राममंदिर के उद्घाटन के बाद चुनाव होना है। काशी कॉरिडोर बना है और ज्ञानवापी का विवाद चल रहा है। भाजपा ने हिंदुत्व की राजनीति की पकड़ मजबूत की है। योगी आदित्यनाथ की बुलडोजर कार्रवाई ने भी हिंदू मतदाताओं को एकजुट किया है। इसलिए सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों के सामने तालमेल के सिवा कोई रास्ता नहीं है। इसलिए मायावती की बात का असर अगले कुछ दिन में देखने को मिलेगा। 

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