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कांग्रेस से उलट भाजपा की रणनीति

कांग्रेस की तरह भाजपा ने भी अगले लोकसभा चुनाव में लक्षित लड़ाई की रणनीति बनाई है। लेकिन कांग्रेस से उलट भाजपा का लक्ष्य ऐसे राज्य हैं, जहां वह पारंपरिक रूप से मजबूत नहीं रही है। एक तरफ कांग्रेस ने ऐसे राज्यों को लक्ष्य किया है, जहां वह अकेले या गठबंधन के साथ मजबूत है, जबकि भाजपा ने ऐसे राज्यों पर फोकस किया है, जहां वह पारंपरिक रूप से मजबूत नहीं है लेकिन जातीय, सामाजिक समीकरण ऐसा है, कि वह जीत सकती है। तभी ने सबसे पहले पश्चिम बंगाल को लक्ष्य बनाया है, जहां वह पिछली बार 18 सीटों पर जीती थी। इस बार पार्टी ने राज्य की 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। पार्टी कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मंगलवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह एक साथ बंगाल के दौरे पर पहुंचे।

भाजपा को उम्मीद है कि अगर वह अपने वोट आधार में एक से दो फीसदी का भी इजाफा कर लेती है तो 30 से ज्यादा सीटें जीत सकती है। भाजपा के जानकार नेताओं के मुताबिक पार्टी को लग रहा है कि अगर कुछ राज्यों में सीटों का नुकसान होता है तो उसकी भरपाई बंगाल से हो सकती है। इसके अलावा कांग्रेस दक्षिण भारत के चार राज्यों को लक्ष्य बना रही, जहां उसका आधार कमजोर है। यहां तक कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह  में से कोई दक्षिण भारत में चुनाव लड़ सकता है। कर्नाटक के अलावा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु की 101 लोकसभा सीटों में से भाजपा के पास चार सीटें हैं। इसे दो अंकों में पहुंचाने की रणनीति पर भाजपा राजनीति कर रही है। भाजपा को तमिलनाडु की कन्याकुमारी सीट पर चार लाख से ज्यादा वोट मिले थे और तिरुवनंतपुरम सीट पर तीन लाख से ज्यादा वोट मिले थे। इन दोनों सीटों पर इस बार जीत के इरादे से भाजपा लड़ेगी। आंध्र प्रदेश में पवन कल्याण की जन सेना पार्टी से भाजपा ने तालमेल कर लिया है और संभव है कि टीडीपी से भी तालमेल हो सकता है। वहां भी भाजपा खाता खुलने की उम्मीद कर रही है। तेलंगाना में पिछली बार उसे चार सीटें मिली थीं इस बार उसमें इजाफा करने के रणनीति पर पार्टी काम कर रही है।

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