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मोहन यादव कैसे बने और क्यों?

छत्तीसगढ़ में वोटों की गिनती के बाद से मुख्यमंत्री पद की रेस की चर्चा में आधा दर्जन नाम थे उसमें विष्णु देव साय का भी नाम शामिल था। तभी जब उनके नाम की घोषणा हुई तो ज्यादा हैरानी नहीं हुई। लेकिन मध्य प्रदेश में तो शिवराज सिंह चौहान से लेकर नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल से लेकर कैलाश विजयवर्गीय, ज्योतिरादित्य सिंधिया और यहां तक कि वीडी शर्मा तक के नाम की चर्चा हो रही थी तो उनमें मोहन यादव का नाम कहीं नहीं था। सोमवार को विधायक दल की बैठक से पहले विधायकों की ग्रुप फोटो हुई तो उसमें भी मोहन यादव को तीसरी कतार में जगह मिली थी। लेकिन उसके दो घंटे बाद ही वे मुख्यमंत्री बन गए।

सोचें, विधायक दल की बैठक में कैसा दृश्य रहा होगा? भाजपा कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे भवन के बाहर एक जत्था ‘मामा-मामा’ के नारे लगा रहा था।दूसरा जत्था‘प्रहलाद पटेल जिंदाबाद’ के नारे लगा रहा था और उसी समय खबर आई कि मोहन यादव मुख्यमंत्री होंगे। मौके पर मौजूद लोगों का कहना था नारे ऐसे बंद हुए और बैठक के भीतर और बाहर ऐसा सन्नाटा हुआ कि सुई गिरने की आवाज भी सुनाई दे जाती। बताया जा रहा है कि केंद्रीय पर्यवेक्षक मनोहर लाल खट्टर ने पहले शिवराज चौहान को और उनके बाद तमाम वरिष्ठ नेताओं से बात करने हुए उन्है केंद्रीय नेतृत्व के नाम के प्रस्ताव का समर्थन करने को कहा। बारी बारी से सभी नेताओं को यही कहा गया कि जो भी नाम बताया जाएगा उसका समर्थन करना है।जब सबकी सहमति हो गई तो पर्यवेक्षक मनोहर लाल खट्टर को ऐन वक्त जेपी नड्डा ने फोन करके मोहन यादव के नाम की सूचना दी गई।

जानकार लोगों का कहना है कि किसी भी नेता को इसकी खबर नहीं थी। हालांकि एक चर्चा है कि नतीजे आने के तीन दिन बाद छह दिसंबर को मोहन यादव को दिल्ली बुलाया गया था। रात 11 बजे के बाद किसी समय उनकी मुलाकात जेपी नड्डा से हुई थी और उस मुलाकात में भूपेंद्र यादव भी मौजूद थे। बताया जा रहा है कि एबीवीपी, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले मोहन यादव के लिए संघ के बड़े पदाधिकारी रहे और फिलहाल रिटायर से सुरेश सोनी का सुझाव था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वोटों की जातिय राजनीति के हिसाब में फैसला करते हुए उनके बारे में रिपोर्ट मंगा कर उनके नाम को हरी झंडी दी। उसके बाद जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव को इस पर अमल का जिम्मा दिया गया।

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